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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ब्रह्मा ( २२२ ) प्रादुर्भाव ( आदि० ६६ । १०-११ ) । इनके दाहिने स्तनका भेदन करके मनुष्यरूपमें भगवान् धर्मका प्राकट्य ( आदि० ६६ । ३१ ) । इनके हृदयका भेदन करके भृगुका प्रकट होना ( आदि० ६६ । ४१ ) । इनकी प्रेरणा से शुक्राचार्य समस्त लोकोंका चक्कर लगाते रहते हैं ( आदि० ६६ । ४२ ) । इनके दो पुत्र और हैं, जो मनुके साथ रहते हैं; उनके नाम हैं—धाता और विधाता ( आदि० ६६ । ५० ) । मनुष्यों की मृत्यु रुक जानेसे चिन्तित हुए देवताओंको इनका आश्वासन ( आदि ० १९६ । ७ ) । इनके द्वारा सुन्द और उपसुन्दको वरदान ( आदि० २०८ । १७ - २५ ) । सुन्द और उपसुन्दके अत्याचारसे दुखी हुए महर्षियोंका इनके प्रति उनके अत्याचारों का वर्णन ( आदि० २१० । ४-८ ) । तिलोत्तमाका निर्माण करनेके लिये इनका विश्वकर्माको आदेश ( आदि० २१० । ९-११ ) । तिलोत्तमाको इनका वरदान ( आदि ० २११ । २३-२४ ) । अपने अजीर्ण रोगको मिटानेके लिये अग्निकी इनसे प्रार्थना ( आदि० २२२ । ६९-७१ ) । अग्निकी ग्लानिका कारण बताते हुए खाण्डववनको जलानेके लिये इनका उन्हें आदेश ( आदि० २२२ । ७२–७७ | खाण्डववनको जलाने के कार्य में श्रीकृष्ण तथा अर्जुनसे सहायताकी प्रार्थना करनेके लिये इनकी अग्निको प्रेरणा (आदि० २२३ । ५११ ) । इनके द्वारा पूर्वकालमें गाण्डीव धनुषका निर्माण ( आदि० २२४ । १९ ) । एक सहस्र युग बीतने पर ये हिरण्यशृङ्ग पर्वतपर बिन्दुसर के समीप यज्ञ करते हैं ( सभा० ३ । १५ ) । नारदजीद्वारा इनकी दिव्य सभाका वर्णन ( सभा० ११ अध्याय ) । इनके द्वारा हिरण्यकशिपुको शाप या किसी भी अस्त्र-शस्त्र से न मरनेका वरदान ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७८५-७८६ ) । प्रजापति ब्रह्माने इन्द्रके लिये एक दिव्य शङ्ख धारण किया था ( सभा० ५३ । १४-१५ ) । इनके द्वारा धर्मारण्य में ब्रह्मसरके समीप एक यूपकी स्थापना ( वन० ८४ । ८६ ) । ब्रह्माने प्रयाग में यज्ञ किया था वन० ८७ । १९ ) । प्रजापति ब्रह्माजीने पुष्कर तीर्थके लिये एक गाथा गायी है ( वन० ८९ । १७-१८ ) । इनका देवताओंको दधीचिके पास उनकी हड्डियोंकी याचनाके लिये भेजना ( वन० १०० । ८ ) । प्रजापति ब्रह्माजीने कुरुक्षेत्र में इष्टीकृत नामक सत्रका एक सहस्र वर्षोंतक अनुष्ठान किया था ( वन० १२९ । १ ) । वाराहरूपधारी विष्णुद्वारा पृथ्वीको ऊपर उठाये जानेसे क्षुब्ध हुए देवताओंको इनके द्वारा सान्त्वना प्रदान ( वन० १४२ । ५४५७ ) । ब्रह्माजीके द्वारा कालकेयोंके लिये हिरण्यपुर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ब्रह्मा नामक नगरका निर्माण और मनुष्यके हाथसे उनके विनाशका निर्देश वन० १७३ । ११ – १५ ) । भगवान् विष्णु के नाभिकमलसे इनकी उत्पत्तिका वर्णन ( वन० २०३ । १० – १५ ) । इनके द्वारा धुन्धुको वरदान ( वन० २०४ । २-४ ) । इन्द्र के प्रति देवसेनाके पतिका निर्धारण ( वन० २२४ । २४ ) | ये पुलस्त्य के पिता और रावणके पितामह थे ( वन० २७४ । ११-१२ ) । इनका देवताओंको वानर और रीछ -योनियों में अपने अंश से संतान उत्पन्न करनेके लिये आदेश ( वन० २७६ । ६-७ ) । इनके द्वारा सीताजीकी शुद्धिका समर्थन ( वन० २९१ । ३५ ) । ययातिसे अभिमानको अधःपतनका बताना ( उद्योग० १२३ । १४-१५ ) । इनके द्वारा भगवत्स्तुति ( भीष्म० ६५ । ४७ --७३ )। देवताओंको नर-नारायणका परिचय देना ( भीष्म० ६६ । ६ - २३ ) । प्राणियोंके संहारके विषय में उपाय सोचते समय इनका कोप द्रोण ० ५२ । ४० ) । रुद्रसे अपने क्रोधका कारण बताना ( द्रोण० ५३ ॥ ३ - ५ ) । इनके शरीर से मृत्युकी उत्पत्ति (द्रोण० ५३ । १७-१८ ) । मृत्युको जगत् के संहारका कार्य सौंपना ( द्रोण० ५३ । २१-२२ ) । मृत्युकी तपस्यासे प्रसन्न होकर उसे वर देना (द्रोण० ५४ । ३३ - ३६) । मृत्युको आदेश ( द्रोण० ५४ । ३९-४३ ) । वृत्रासुरके भय से भीत देवताओंको साथ लेकर शिवजीके पास जाना ( द्रोण० ९४ । ५३ ५८ ) । त्रिपुरोंके संहारके समय ये भगवान् रुद्रके सारथि बने थे (द्रोण० २०२ । ७६) । इन्द्र आदि देवताओं सहित त्रिपुर-वध के लिये शिवजीके पास जाकर उनको प्रसन्न करना ( कर्ण० ३३ । ४१--- ६२ ) । शिवजीसे त्रिपुरवधके लिये याचना करना ( कर्ण ० ३४ । २-५) | देवताओं की प्रार्थनासे त्रिपुरबधके समय शिवजीका सारथि बनना ( कर्ण० ३४ । ७५— ७५ ) । कर्ण और अर्जुनके द्वैरथ-युद्ध में इन्द्रके पूछने पर इनके द्वारा अर्जुनकी विजय घोषणा ( कर्ण० ८७ । ६९८५ ) । इनके द्वारा स्कन्दको पार्षद-प्रदान ( शल्य ० ४५ । २४-२५ ) । स्कन्द के लिये काले मृगचर्मका दान ( शल्य० ४६ । ५२ ) । इनकी सृष्टि रचनाका वर्णन ( सौप्तिक ० १७ । १० - २० ) । इनका चार्वाकको वर-प्रदान ( शान्ति ० ३९ 1 (५) । arasat मृत्युका उपाय बताना ( शान्ति० ३९ । ८ - १० ) । इनके नीतिशास्त्रका वर्णन ( शान्ति० ५९ । २९-८६ । इनका खङ्ग उत्पन्न करके रुद्रदेवको देना ( शान्ति० १६६ । ४५-४६ ) । देवताओंको आश्वासन ( शान्ति० २०० । ३०-३५ शान्ति० २०९ । ३१– ३६ ) । इन्द्रको बलिका पता बताना और वध करने से
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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