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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहद्ब्रह्मा ( २१९ ) बृहदन्त देशके राजा हैं। इन्हें पूर्वदिग्विजयके समय भीमसेनने कन्याओंके साथ इनका विवाह हुआ था । इन्होंने एकान्तमें केया था ( सभा० ३०। १)। इनके द्वारा अपनी दोनों पत्नियोंके साथ प्रतिज्ञा की थी कि मैं तुम राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिरको चौदह हजार उत्तम अश्वोंकी। दोनोंके साथ कभी विषम व्यवहार नहीं करूँगा । विषयों में भेंट दी गयी थी (सभा० ५१ । ७ के बाद दा० पाठ)। डूबे हुए ही इनकी जवानी बीत चली; पर इनके कोई पाण्डवोकी ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका विचार पुत्र नहीं हुआ (सभा. १० । १७-२१)। तब ये किया गया था (उद्योग०४ । २२)। ये कौरवपक्षसे लड़ने पत्नियोसहित चण्डकौशिक मुनिके पास गये और उन्हें सब आये थे । दुर्योधनने सैन्यसमुद्रमें इनकी उपमा ज्वारसे प्रकारके रत्नोंसे संतुष्ट किया। मुनिके अपने पास आनेका दी है (उद्योग० १६१ । ३९ ) । प्रथम दिनके युद्ध में कारण पूछनेपर इन्होंने अपना पुत्राभावजनित कष्ट बताया अभिमन्युके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५। और वनमें तपस्या करनेका विचार प्रकट किया । मुनिने १४-१८)। घटोत्कचद्वारा इनकी पराजय (भीष्म० इन्हें आमका एक फल दिया और इससे पुत्र होनेका विश्वास ५२ । ४५)। अभिमन्युके साथ इनका घोर युद्ध । दिलाकर पुत्रको राज्यपदपर अभिषिक्त करनेके पश्चात् वनमें (भीष्म० ११६ । ३१-३६, द्रोण. ३७ । ५-६)। तपस्याके लिये जानेका आदेश दिया । मुनिने इनके भावी अभिमन्युके साथ युद्ध और उनके द्वारा इनका वध पुत्रके लिये आठ वरदान दिये थे । इसके बाद राजा (द्रोण. ४७ । २०-२२)। इनकी स्त्रियोंका इन्हें मुनिको प्रणाम करके अपने घर गये (सभा० १७ । सब ओरमे घेरकर रोदन (स्त्री० २५ । १०)। २२-३१)। राजाने वह फल दो भागोंमें विभक्त करके महाभारतमें आये हुए बृहद्बलके नाम-कौसल्य, एक-एक भाग पत्नियों को खिला दिया। दोनोंके गर्भ रहा । कोसलेन्द्र, कोसलक, कोसलाधिपति, कोसलभर्ता, कोसल प्रसवकाल आनेपर दोनोंके गर्भसे शरीरका आधा-आधा राज आदि । भाग उत्पन्न हुआ। उन निर्जीव टुकड़ोंको रानियोंने बाहर बृहदब्रह्मा-महर्षि अङ्गिराके द्वारा सुभाके गर्भसे उत्पन्न फैकवा दिया। जरा नामक राक्षसीने उन दोनों टुकड़ोंको सात पुत्रों से एक (वन० २१८ । २)। जोड़ दिया । उससे बलवान् कुमार सजीव हो उठा । बृहदभानु-वेदोंके पारगामी विद्वान् भाननामक अग्निको राक्षसीने वह बालक राजाको अर्पित कर दिया । तब राजाने ही बृहद्भानु कहते हैं (वन० २२१ । ८)। उससे परिचय पूछा । राक्षसी परिचय देकर अन्तर्हित हो गयी । राजा कुमारको लेकर महलमें आये । बालकका बृहदभास-महर्षि अङ्गिराके द्वारा सुभाके गर्भसे उत्पन्न जातकर्म आदि किया और उसका नाम जरासंध रखा और सात पुनोमेसे एक (वन० २१८ । २)। मगधदेशमें राक्षसीपूजनका महान् उत्सव मनानेकी आज्ञा बृहदभासा-ये सूर्यकी कन्या तथा भानु (मनु) नामक दी (सभा० १७ । ३२ से १८ अध्यायतक)। इनका अग्निकी भार्या है (वन० २२१ । ९)। जरासंधको अपने राज्यपर अभिषिक्त करके दोनों पत्नियोंके बृहद्रथ-(१) एक प्राचीन राजा ( आदि०१। साथ तपोवनको जाना (सभा. १९। १७-१८)। इन्होंने २३५)। ये यमकी सभा में विराजमान हो सूर्यपुत्र यमकी ऋषभ नामक राक्षसका वध करके उसकी खालसे तीन उपासना करते हैं (सभा०८।१०)। ये अनदेशके नगाड़े बनवाये थे, जिनपर चोट करनेसे महीनेभर आवाज राजा थे । श्रीकृष्णद्वारा इनके दानका वर्णन (शान्ति होती रहती थी (सभा० २१ । १६)। (३) एक २९ । ३१-३०)। ये परशुरामजीके क्षत्रियसंहारसे बच राजा, जो 'सूक्ष्म' नामक देयके अंशसे उत्पन्न हुआ था गये थे । इन्हें गृध्रकूट पर्वतपर लंगूरोंने बचाया था (आदि. ६७ । १९)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया (शान्ति० ४९। ८१-८२)। इन्हें पौरव भी कहा था ( आदि० १८५। २१)। (४) एक अग्नि, जो जाता था। पौरव नामसे इनके यज्ञ, दान आदिकी वसिष्ठपुत्र होने के कारण वासिष्ठ भी कहलाते हैं (वन० २२० । प्रशंसा ( द्रोण. ५७ अध्याय ) । इन्हें १)। इनके प्राणाध नामक पुत्र हुआ (बन. २२० । मान्धाताने जीता था ( दोण. ६२ । १०)। ५)। (२) चेदिराज सम्राट उपरिचरके पुत्र, जिसे पिताने बृहद्वती-एक प्रधान नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं मगधदेशके राज्यपर अभिषिक्त किया था ( आदि० ६३ । (भीष्म० ९ । ३०)। ३०)। ये मगध देशके बलवान् राजा, तीन अक्षौहिणी बृहदन्त-(१) उलूक देशके राजा । इनका अर्जुन के साथ सेनाके स्वामी और समरामाणमें अभिमानपूर्वक लड़नेवाले युद्ध और उनके द्वारा पराजय, सब प्रकारके रत्नोंकी भेंट थे (सभा० १७ । १३)। इनके पराक्रम आदि गुणोंका लेकर इनका अर्जुनकी सेवामें उपस्थित होना (सभा० २७ । वर्णन ( सभा० १७ । १४-१६)। काशिराजकी दो ५-९)। ये द्रौपदीके स्वयंवरमें भी गये थे (आदि. For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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