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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहता वृहदबल बृहता-शिशु ( स्कन्द ) की सप्तमातृकाओंमेंसे एक (वन. के लिये भेजा था ( वन०६०। ४-५) दमयन्ती१२८ । १०)। के आदेशसे बृहत्सेनाने विश्वसनीय पुरुषोंद्वारा वार्णय सूत को बुलवाया था (वन० ६० । ११)। बृहक-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (आदि०१२२ । ५७)। बृहदम्बालिका स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य. बृहज्ज्योति-महर्षि अङ्गिराके द्वारा सुभाके गर्भसे उत्पन्न सात पुत्रोंमेंसे एक (वन० २१८।२)। बृहदश्व-(१) एक प्राचीन महर्पि ।ये युधिष्टिरका अधिक सम्मान करते थे (वन० २६ । २४-२५)। बृहत्-(१) यह शब्द विवस्वान्का बोधक है (आदि. इनका काम्यकवनमें युधिष्ठिरके पास आगमन (वन. १। ४२-४३)। (२) कालेयोंमें जो आठवाँ था, ५२ । ४०) । युधिष्ठिरद्वारा इनका सत्कार तथा इनके उसके अंशसे उत्पन्न हुआ एक राजा (आदि० ६७ । प्रति अपने दुःख दैन्यका वर्णन करना (वन० ५२ । ५५)। (३) एक साम, जो पाञ्चजन्य ऋषिके मूर्धा ४१-५०) । युधिष्ठिरको समझाते हुए इनका नलोपास्थानमे प्रकट हुआ । उन्हीं ऋषिके मुखसे प्रकट हुए ख्यान सुनाना (वन० ५२। ५४ से ७९ अध्यायसामको रथन्तर' कहते हैं। ये दोनों वेगपूर्वक आयु आदि तक)। इनके द्वारा युधिष्ठिरको आश्वासन तथा उन्हें को हर लेते हैं, इसलिये तरसाहर' कहलाते हैं (वन० अक्षहृदय और अश्वशिरका उपदेश देकर स्नान आदिके २२० । ७)। लिये प्रस्थान (वन० ७५ । ।१-२१) । (२) बृहत्कीर्ति-महर्षि अङ्गिराके द्वारा सुभाके गर्भसे उत्पन्न ये इक्ष्वाकुवंज्ञीराजा श्रावस्तके पुत्र थे । इनके पुत्रका नाम सात पुत्रों से एक (वन० २१८ ।२)। कुवलाश्व था (वन० २०२। ४-५)। ये यथासमय बृहत्केतु-प्राचीन कालके एक नरेश ( आदि०१।। अपने पुत्र कुवलाश्वको राज्यपर अभिषिक्त करके स्वयं तपस्याके लिये तपोवनमें चले गये ( वन० २०२ । २३७)। ७८)। बृहत्क्षत्र-(१)भगीरथवंशी एकराजा, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें गये थे (आदि. १८५ । २३)। (२) केकय. बृहदुक्थ-ये तप (पाञ्चजन्य ) के पुत्र है । इस पृथ्वीपर नरेश प्रथम दिनके युद्ध में कृपाचार्यके साथ इनका इन्दू- जब अग्निहोत्र होने लगता है, उस समय इस भूतलपर युद्ध ( भीष्म० ४५ । ५२-५४) । इनके घोड़ोंका स्थित श्रेष्ठ पुरुषोंद्वारा इन्हीकी पूजा होती है ( वन. वर्णन, जो इनके रथको लेकर युद्ध-मैदानमें गये थे २२० । १८)। (द्रोण० २३ । २३-२४ ) । इनका क्षेमधूर्तिके साथ बृहद्गर्भ-राजा शिबिका पुत्र, जिसे एक ब्राह्मणके आतिथ्यके द्वन्द्वयुद्ध करना (द्रोण. १०६ । ७-८)। क्षेमधूर्तिके लिये उन ब्राह्मणदेवके कहनसे राजाने स्वयं मार डाला साथ इनका घोर युद्ध तथा इनके द्वारा उसका वध (द्रोण और उसका दाह-संस्कार कर दिया । फिर विधिपूर्वक १०७॥ १-६)। बृहत्क्षत्रका द्रोणके साथ युद्ध और रसोई तैयार करके उसे बटलोई में डालकर सिरपर रख द्रोणाचार्यद्वारा इनका मारा जाना (द्रोण०१२५ । २२) लिया और वे उस ब्राह्मणकी खोज करने लगे (वन० १५८ ॥ (३) निषधदेशका राजा । कौरवपक्षका योद्धा। १८)। धृष्टद्युम्नद्वारा इसका वध हुआ (द्रोण. ३२। . बृहहरु प्राचीन कालके एक नरेश ( आदि० ।। ६५-६६)। २३३)। बृहत्त्वा-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (आदि० १२२ । ५७)। बृहद्युम्न-एक महान् सौभाग्यशाली एवं प्रतापी नरेश, जिन्होंने अपने यज्ञमें रैभ्यपुत्र अर्वावसु और परावसुको बृहत्सेन-क्रोधवशसंज्ञक एक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए । सहयोगी बनाया था ( वन० १३८ । १-२)। एक राजा (आदि. ६७ । ६४) । पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था (उद्योग बृहदध्वनि-एक प्रधान नदी, जिसका जल भारतवामी पीते ४ । २१)। हैं (भीम. ९ । ३२)। बृहत्सेना-यह दमयन्तीकी धाय थी और अत्यन्त यशस्विनी, बृहद्बल-(१) प्राचीन कालके एक नरेश ( आदि० परिचर्याके काममें निपुण, समस्त कार्यसाधनमें कुशल, १ । २३७)। (२) गान्धारराज सुबलके पुत्र । ये हितैषिणी: अनुरागिणी और मधुरभाषिणी थी। जूएमें अपने भाई शकुनि और वृषकके साथ द्रौपदी के स्वयंवरमें राजा नलको हारते जान दमयन्तीने इसे मन्त्रियोको बुलाने- आये थे (आदि.१८५ । ५)। (३) ये कोसल For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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