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पाण्डु
पाण्ड्य
तथा धनुर्विद्यामें इनकी अद्वितीयता (आदि. १०८ ।। महिमा सुनाकर किसी श्रेष्ठ देवताके आवाहनके लिये १९-२१)। धृतराष्ट्र के जन्मान्ध होनेके कारण इनका इनसे आज्ञा माँगना (आदि० १२१ । १०-१६)। राजपदपर अभिषेक (आदि० १०८ । २५)। कुन्ती- धर्मराजके आवाहनके लिये इनका कुन्तीको आदेश द्वारा स्वयंवरमें इनका वरण और उनके साथ इनका (आदि० १२१ । १७-२०)। बली पुत्रकी कामनासे विधिपूर्वक विवाह ( आदि० १११ । ८-९)। भीष्मके वायुदेवके आवाहनके लिये कुन्तीको इनकी आज्ञा प्रयत्नसे माद्रीके साथ इनका विवाह (आदि० ११२। (आदि० १२२ । १० के बाद दा० पाठ)। इनके द्वारा १८)। इनकी दिग्विजययात्रा ( आदि० ११२। सर्वोत्तम पुत्र-प्राप्सिके लिये इन्द्र की आराधना और इन्द्र२१) । दशापर इनका पहला आक्रमण और विजय द्वारा इनको आश्वासन (आदि० १२२ । २६-२८)। (आदि. ११२ । २५)। इनके द्वारा मगधराज दीर्घका सर्वश्रेष्ठ पुत्रके हेतु इन्द्रके आवाहनके लिये इनकी कुन्तीवध ( आदि० ११२ । २७)। विदेहवंशी क्षत्रियोंकी को प्रेरणा (आदि. १२२ । ३४ )। कुन्तीद्वारा पुत्रपराजय (आदि. ११२ । २८)। काशी, सुझ तथा प्राप्तिके लिये इनसे माद्रीकी प्रार्थना ( आदि० १२३ । पुण्ड्रदेशोंपर इनकी विजय (आदि. ११२। २९)। ६)। माद्रीके पुत्रलाभके लिये इनका कुन्तीसे अनुरोध विभिन्न देशोंको जीतकर लाये हुए धनसमूहका इनके द्वारा (आदि० १२३ । ९-१४ )। माद्रीके साथ समागम अपने बन्धु बाधवोंमें वितरण (आदि. ११३ । १-२)। करके इनकी असामयिक मृत्यु ( आदि० १२४ । इनके पराक्रमसे धृतराष्ट्रद्वारा सौ अश्वमेधयज्ञोंका अनुष्ठान १२)। इनके परलोकवासी होनेपर कुन्ती, माद्री तथा तथा प्रति यज्ञमें लाख-लाख स्वर्णमुद्राओंकी दक्षिणाका दान पाण्डवोंका विलाप ( आदि. १२४ । १७-२२ )। (आदि. ११३। ५)। इनका वनविहार (आदि. इनके आकस्मिक निधनपर शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंको ११३ । ७-११)। अपनी मृगीरूपधारिणी पत्नीके साथ शोकका अनुभव ( आदि० १२४ । २२ के बाद दा० मृगरूप धारण करके मैथुन करनेवाले किंदम ऋषिका इनके पाठ)। काश्यप ऋषिद्वारा इनका अन्त्येष्टि-संस्कार द्वारा वध (आदि. ११७ । ३४)। इनको मृगरूपधारी (आदि० १२४ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। किंदम ऋषिका शाप ( आदि. ११७ । २७)। कौरवोद्वारा राजोचित ढंगसे इनका अस्थिदाह ( आदि. महर्षि किंदमकी मृत्युके कारण इनका पश्चात्ताप एवं १२६ । ५-२३)। कौरवोद्वारा इनको जलाञ्जलि-दान संन्यास लेकर अवधूतकी तरह रहनेका अपना निश्चय (आदि० १२६ । २८-२९)। इनके देहावसानपर हस्तिना( आदि०११८ । २-२२)। वानप्रस्थाश्रममें रहकर । पुरके नागरिकोंका शोक ( आदि० २२७ । ४)। तपस्या करनेके लिये इनसे कुन्तीका हठ (आदि. ११८ । ये यमकी सभामें उपस्थित होते हैं ( सभा० ८। ३०)। वानप्रस्थाभममें पालन करनेके लिये इनके कठोर २५)। इन्होंने देवर्षि नारदद्वारा राजसूययश करनेके नियम ( आदि. ११८। ३२-३७)। इनके द्वारा लिये युधिष्ठिरको संदेश भेजवाया था ( सभा० १२ । अपने तथा पत्नियोंके भूषणोंका ब्राह्मणोंको दान (आदि. २४-२६)। इनका इन्द्रलोकमें निवास (आश्रम ११८ । ३९)। वानप्रस्थ लेनेके विषयमें सेवकोंद्वारा २० । १७)। अपनी दोनों पत्नियों-कुन्ती और इनका धृतराष्ट्रको संदेश (आदि. ११८ । ४०)। माद्रीके साथ इनका इन्द्रभवनमें जाना (स्वर्गारोहण कालकूट, हिमालय, गन्धमादन आदि पर्वतोंको लाँघकर ५।१५)। तपस्याके लिये इनका पत्नियोंस हत शतशृङ्गपर्वतपर जाना
महाभारतमें आये हुए पाण्डुके नाम-भारत, भरतर्षभ ( आदि. ११४ । ५०) । इनको ब्रह्मलोक जानेके लिये भरतमत्तम, कौरव, कौरवनन्दन, कौरवर्षभ, कौरव्य,
ऋषियोंद्वारा निषेध ( आदि. ११९ । १४-१५)। कौरव्यदायाद, कौसल्यानन्दवर्धन, कुरूद्वह, कुरुकुलोद्वह, पितृ ऋणसे उद्धार होनेके लिये इनकी शतशृङ्गनिवासियोंसे कुरुनन्दन, कुरुपति, कुम्प्रवीर, नागपुराधिप, नागपुरप्रार्थना ( आदि० ११९ । १५-२३)। ऋषियोंद्वारा सिंह आदि । इन्हें पुत्रप्राप्तिका आश्वासन ( आदि० ११९ । २३- (२) कुरुकुमार जनमेजयके द्वितीय पुत्र (आदि० २६)। इनके द्वारा दत्तक आदि पुत्र-भेदोंका विश्लेषण ९४ । ५६)। तथा किसी श्रेष्ठ पुरुषसे संतानोत्पादनके लिये कुन्तीको पाण्डर-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५ । ७३)। आदेश (आदि० ११९ । २७-३७)। मानसिक संकल्पसे
दि० ११९। २७-३७)। मानासक सकल्पसे पाण्डुराष्ट्र-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४४)। पुत्रोत्पादनके लिये इनसे कुन्तीकी प्रार्थना (आदि०१२०१ पाण्ड्य-दक्षिण भारतका एक जनपद तथा वहाँके एक ३७)। इनके द्वारा ब्राह्मणसे संतानप्राप्तिके लिये पुनः. राजा, जो कभी श्रीकृष्णद्वारा मारे गये थे (द्रोण० २३ । कुन्तीसे आग्रह तथा कुन्तीका दुर्वासासे प्राप्त हुए मन्त्रकी ६९)। इनके पुत्रका नाम मलयध्वज था । मलयध्वज
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