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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पाताल www.kobatirth.org ( १९६ ) अविद्या पारंगत होकर अपने पिताके वधका बदला लेनेके लिये द्वारकापुरीको विध्वंस करना चाहते थे; परंतु इनके सुहृदोंने इन्हें ऐसा दुःसाहस करनेसे रोक दिया, तबसे वैर छोड़कर ये अपने राज्यका शासन करते थे । महाभारतकालमें ये ही पाण्ड्यदेश के शासक थे ( द्रोण० २३ । ७०-७२ । ये द्रौपदीके स्वयंवर में गये थे (आदि० १८६ । १६ )। ये युधिष्ठिरकी सभा में बैठा करते थे ( सभा० ४ । २४ ) । इन्होंने राजसूय यज्ञमें भेंट अर्पण की थी ( सभा० ५२ । ३५ ) | ये अपनी सेना के साथ युधिष्ठिरकी सेवामें आये थे ( उद्योग० १९ । ९ ) । इनके रथपर मागर के चिह्न से युक्त ध्वजा फहराती थी । बलवान् राजा पाण्ड्यने अपने दिव्य धनुषकी टङ्कार करते हुए वैदूर्यमणिकी जालीसे आच्छादित चन्द्रकिरण के समान वेत घोड़ोंद्वारा द्रोणाचार्य र भावा किया था ( द्रोण० २३ । ७२-७३ ) । इनका वृषसेनके साथ युद्ध ( द्रोण० २५ । ५७ ) । इनका महान् पराक्रम और अश्वत्थामाद्वारा वध ( कर्ण ० २० । ४६ ) । पाताल - नागलोकके नाभिस्थान में स्थित एक प्रदेश या नगर; इसका नारदजीद्वारा विशेष वर्णन ( उद्योग० अध्याय ९९ से १०० तक ) पापहरा - एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २२ ) । पारद - ( १ ) एक प्राचीन जातिका नाम ( आधुनिक मतके अनुसार यह उत्तर-बलूचिस्तानकी एक जाति थी ) । इस जाति के लोग भाँति-भाँति की भेंटें लेकर युधिष्ठिर के राजसूययज्ञमें आये थे ( सभा० ५१ । ५२ ) । ( २ ) एक देश, जहाँके लोग द्रोणाचार्यके साथ भीष्मजी के पीछे-पीछे चल रहे थे ( भीष्म० ८७ । ७) । पारशव-शूद्रा के गर्भ से ब्राह्मणद्वारा उत्पन्न बालक । इसीलिये विदुरजी भी पारशव कहलाते थे (आदि० १०८ । २५; अनु० ४८ । ५ ) । पारसिक - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ६६ ) । पारा - कौशिकी नदीका नामान्तर ( आदि० ७१ । ३२ ) । पारावत- ऐरावत के कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था ( आदि० ५७ । ११ ) । पाराशर्य - एक मुनि, जो व्याससे भिन्न हैं । ये युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे ( सभा ० ४ । १३ ) | ये ही इन्द्रसभाके भी सदस्य हैं ( सभा० ७ । १३ ) । हस्तिनापुर जाते समय मार्ग में श्रीकृष्णसे भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दा० पाठ ) । पारिजात - ( १ ) समस्त कामनाओंको देनेवाला एक दिव्य वृक्ष, जो समुद्र मन्थनसे प्रकट हुआ था ( आदि० १८ । पार्वती ३६ के बाद दा० पाठ) । ( २ ) ऐरावतकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में जल मरा था ( आदि० ५७ । ११ ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारिजातक - एक जितात्मा मुनि, जो युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । १४ ) । पारिप्लव-कुरुक्षेत्रकी सीमा में स्थित एक तीर्थ, जिसके सेवनसे अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञोंका फल मिलता है ( वन० ८३ । १२ ) । पारिभद्रक - कौरव पक्षके वीर योद्धाओंका एक दल, जो सम्भवतः परिभद्र देशका निवासी था ( भीष्म० ५१ । ९)। पारियात्र - एक पर्वत, जिसका अधिष्ठाता चेतन कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना करता है ( सभा० १० । (३१) । मार्कण्डेयजीने भगवान् बालमुकुन्दके उदरमें इस पर्वतका दर्शन किया था ( वन० १८८ । ११५ ) । यहाँ महर्षि गौतमका महान् आश्रम था ( शान्ति० १२९ । ४)। पार्थ - कुन्तीके पुत्रोंका नाम ( इन्हें कौन्तेय भी कहते हैं ) । इनकी उत्पत्तिकी कथाका दिग्दर्शन ( आदि० १ । १४ ) | ( यद्यपि यह शब्द कुन्तीके तीन पुत्रोंका ही मुख्यतया वाचक है तथापि कहीं कहीं माद्रीकुमार नकुलसहदेव के लिये भी इसका प्रयोग हुआ है । प्रायः यह युधिष्ठिर तथा अर्जुन के लिये ही प्रयुक्त हुआ है । उद्योग० १४५ । ३ में 'पार्थ' नामका प्रयोग कर्णके लिये भी आया है । ) पार्वती - पर्वतराज हिमवान्की पुत्री तथा भगवान् शिवकी धर्मपत्नी ( आदि० १८६ । ४) । ये ब्रह्माजी की सभा में भी विराजमान होती हैं ( सभा० ११ । ४१ ) | द्रौपदीद्वारा अर्जुनकी रक्षा के लिये देवी उमाका कीर्तन एवं स्मरण ( वन० ३७ । ३३ ) । युधिष्ठिरद्वारा इनके दुर्गारूपका स्तवन और इनका दर्शन देकर उन्हें अनुगृहीत करना ( विराट० ६ अध्याय ) अर्जुनद्वारा इनके दुर्गारूपका स्मरण और स्तवन । इनका प्रत्यक्ष दर्शन देकर उन्हें वर देना ( भीष्म० २३ । ४ – १६ )। एक समय ये भगवान् शङ्करको जो पाँच शिखावाले बालकके रूपमें प्रकट हुए थे, गोद में लेकर आयीं और देवताओंसे बोलीं, पहचानो यह कौन है ? (द्रोण० २०२ । ८४ ) । इनके द्वारा स्कन्दको पार्पद-प्रदान ( शल्य० ४५ । ५१-५२ ) । दक्षयज्ञके विषय में शिवजीके साथ इनका वार्तालाप ( शान्ति० २८३ । २३ – २९ ) । दक्षयज्ञमें शिवजीका भाग न देखकर इनकी चिन्ता ( शान्ति ० २८४ । २३ ) । उशना पर कुपित हुए शिव For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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