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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पाण्डव www.kobatirth.org ( १९४ ) उपाख्यान सुनाना (वन० अध्याय २७४ से २९९ तक ) । ब्राह्मणकी अरण एवं मन्थनकाष्ठका पता लगाने के लिये पाण्डवोंका मृगके पीछे दौड़ना और दुखी होना ( वन० ३११ अध्याय ) | पानी लानेके लिये गये हुए चार पाण्डवोंका सरोवर के तटपर अचेत होकर गिरना ( वन० ३१२ अध्याय ) | युधिष्ठिर के उत्तरसे संतुष्ट हुए यक्षका चारों पाण्डवों के जीवित होनेका वरदान देना और उन सबको जिलाकर उसका धर्मके रूपमें प्रकट हो युधिष्ठिरको वर देना (वन० अध्याय ३१३ से ३१४ तक ) । अज्ञातवासके निमित्त पाण्डवका परस्पर परामर्शके लिये बैठना ( वन० ३१५ अध्याय | द्रौपदीसहित पाण्डवोंका विराटनगर में अज्ञातवास तथा उनके द्वारा त्रैगर्तों एवं कौरवोंको पराजित करके विराटके गौओं की रक्षा ( विराट० अध्याय १ से ६८ तक ) । अपने घर में पाण्डवका परिचय पाकर राजा विराटके द्वारा उनका सत्कार और इन्हें अपना राज्य समर्पित करके इनकी रुचिके अनुसार उनका अर्जुनकुमार अभिमन्युके साथ उत्तराका विवाह करना ( विराट० अध्याय ६९ से ७२ तक ) । द्रुपदके संदेशसे राजाओंका पाण्डवपक्षकी ओरसे युद्धके लिये आगमन ( उद्योग० ५ अध्याय ) । पाण्डवपक्ष में आयी हुई सेनाका संक्षिप्त विवरण ( उद्योग० १९ । ११४ ) | दुर्योधनद्वारा पाण्डवोंके अपकर्षका वर्णन ( उद्योग० ५५ अध्याय ) | संजयद्वारा पाण्डवोंकी युद्धकी तैयारीका वर्णन ( उद्योग० ५७ । २-२५ ) । कुन्तीका विदुलोपाख्यान सुनाकर पाण्डवोंके लिये शौर्यका संदेश देना ( उद्योग० अध्याय १३२ से १३७ तक ) । पाण्डवपक्ष के सेनापतिका चुनाव, पाण्डवसैन्यका कुरुक्षेत्र में प्रवेश, पड़ाव तथा शिविर निर्माण ( उद्योग० अध्याय १५१ से १५२ तक ) | बलरामजीका पाण्डवोंसे विदा लेकर तीर्थयात्रा के लिये प्रस्थान ( उद्योग० १५७ अध्याय ) । दुर्योधनका उलूकको दूत बनाकर पाण्डवों के पास संदेश भेजना ( उद्योग० १६० अध्याय ) । पाण्डवोंके शिविर में पहुँचकर उलूकका दुर्योधनके संदेशको सुनाना (उद्योग ० १६१ अध्याय ) । पाण्डवपक्षकी ओरसे दुर्योधन के संदेशका उत्तर । पाँचों पाण्डवोंका संदेश लेकर उलूकका लौटना ( उद्योग० १६३ अध्याय ) । पाण्डवसेनाका युद्धके मैदानमें जाना ( उद्योग० १६४ अध्याय ) | पाण्डवपक्ष के रथी - अतिरथी आदिका वर्णन ( उद्योग० अध्याय १६९ से १७२ तक ) । पाण्डवसेनाका युद्धके लिये प्रस्थान (उद्योग० १९६ अध्याय) । पाण्डवोंका कौरवोंके साथ युद्ध ( भीष्मपर्व से शल्यपर्वतक ) । पाण्डवोंका मणि देकर द्रौपदीको शान्त करना ( ऐषीक ० १६ अध्याय) । पाण्डवोंका धृतराष्ट्रसे मिलना, धृतराष्ट्र के द्वारा भीमकी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पाण्डु लोहमयी प्रतिमाका भङ्ग होना तथा श्रीकृष्ण के फटकारने से शान्त हुए धृतराष्ट्रका पाण्डवोंको हृदयसे लगाना ( स्त्री० अध्याय १२ से १३ तक ) । पाण्डवको शाप देनेके लिये उद्यत हुई गन्धारीको व्यासजीका समझाना ( स्त्री० १४ अध्याय ) । पाण्डवका गान्धारीकी आज्ञा लेकर अपनी माता से मिलना ( स्त्री० १५ । ३२-३५ ) । व्यासजी तथा भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञासे पाण्डवोंका नगरमें प्रवेश तथा पुरवासियोंद्वारा इनका सत्कार (शान्ति० अध्याय ३७ से ३८ तक ) । पाण्डवोंके रहनेके लिये विभिन्न भवनों का विभाजन ( शान्ति० ४४ अध्याय ) | युधिष्ठिर आदि पाण्डवों का भीष्मजीका उपदेश सुनना ( शान्ति० अध्याय ५६ से अनु० १६५ अध्यायतक ) | पाण्डवों का भीष्मजीको जलाञ्जलि देना ( अनु० १६८ अध्याय ) | पाण्डवों का हिमालयसे धन लेकर आना ( आश्व० अध्याय ६३ से ६५ तक ) । पाण्डवोंका हस्तिनापुर के समीप आगमन, श्रीकृष्ण आदिके द्वारा इनका स्वागत तथा इनका नगरमें आकर सबसे मिलना ( आश्व० अध्याय ७० से ७१ तक ) । पाण्डवोंका धृतराष्ट्र और गान्धारीके अनुकूल बर्ताव (आश्रम ० अध्याय १ से २ तक ) । गान्धारी और धृतराष्ट्र के साथ वनको जाती हुई कुन्तीखे घरको लौटने के लिये पाण्डवोंका अनुरोध और कुन्तीद्वारा उनके अनुरोधका उत्तर (आश्रम० अध्याय १६ से १७ तक) । धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्तीके लिये पाण्डवोंकी चिन्ता, इनका कुरुक्षेत्र में पहुँचना तथा कुन्ती, गान्धारी एवं धृतराष्ट्र के दर्शन करना ( आश्रम ० अध्याय २१ से २४ तक | संजयका ऋषियोंसे पाण्डवोंका परिचय देना ( आश्रम० २५ अध्याय ) | द्रौपदीसहित पाण्डवों का महाप्रस्थान ( महाप्र०१ अध्याय ) । मार्ग में द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीमसेनका गिरना तथा युधिष्ठिरका प्रत्येक के गिरने का कारण बताना ( महाप्र० २ अध्याय ) | पाण्डवका स्वर्ग में पहुँचकर धर्म आदि अपने मूल स्वरूपोंमें मिलना ( स्वर्गा० ४ । २–१३, स्वर्गा० ५। २२ ) । पाण्डवप्रवेशपर्व - विराटपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय १ से १२ तक ) । पाण्डु - ( १ ) विचित्रवीर्यके क्षेत्रज पुत्र । महर्षि व्यासके द्वारा विचित्रवीर्य पत्नी अम्बालिका के गर्भ से उत्पन्न (आदि० ६३ | ११३; आदि० १०५ | २१ ) । पाण्डुकी वंशपरम्पराका वर्णन ( आदि० ९५ । ५८-८७ 1 ) । इनके रंग-रूप तथा पाण्डु नाम होनेका कारण (आदि० १०५ । (१७-१८) । ये पाण्डवोंके पिता थे ( आदि० १०५ | (२२) । भीष्मद्वारा इनका पालन-पोषण एवं उपनयनादिसंस्कार ( आदि० १०८ । १७-१८ ) । इनका अध्ययन
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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