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निषध
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( १८४ )
निध - ( १ ) भरतवंशी महाराज कुरुके पौत्र एवं जनमेजयके चतुर्थ पुत्र, जो धर्म और अर्थ में कुशल तथा समस्त प्राणियों के हित में संलग्न रहनेवाले थे ( आदि० ९४ । ५६) । (२) एक पर्वत, जो हरिवर्ष और इलावृतवर्ष के बीचमें है । अर्जुनने दिग्विजयके समय यहाँके निवासियोंको जीतकर अपने अधीन किया था ( सभा० २८ । ६ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७४६ ) । एक पर्वत, जो हिमवान् और हेमकूटसे भी आगे है। मार्कण्डेयजीने भगवान् बालमुकुन्दके उदरदेशमें इसका दर्शन किया था ( वन० १८८ । ११२) । ( आधुनिक मतके अनुसार मन्त्रमादन के पश्चिम और काबुल नदीके उत्तरका पर्वत हिंदूकुश ही 'निषेध' है ) । ( ३ ) प्राचीन देश, जहाँ वीरसेन नामसे प्रसिद्ध राजा राज्य करते थे । इन्हींके पुत्र नल हुए ( वन० ५२ । ५५ ५ ) । निषाद - ( १ ) एक भारतीय जनपद ( भीष्मः ९ । ५१ ) । ( २ ) की दाहिनी जाँघसे उत्पन्न एक पुरुष, जो ऋषियोंके निषीद (बैठ जाओ ) कहने से 'निषाद' कहलाया तथा जिससे वनमें रहनेवाले निपादकी उत्पत्ति हुई ( शान्ति ० ५९ । ९७ )।
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निषादनरेश एक राजा, जो कालेय एवं क्रोधहन्तासंज्ञक दैत्यके अंश से उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ५० )।
निष्कुट - एक प्राचीन प्रदेश, जहाँके अधिपतियों को अर्जुनने जीता था ( सभा० २७ । २९ ) ।
निष्कुटिका - स्कन्दको अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । १२)।
निष्कृति एक अग्नि, जो बृहस्पति के पुत्र हैं और लोगों को संकट से निष्कृति ( छुटकारा ) दिलाने के कारण 'निष्कृति' नामसे प्रसिद्ध हैं (वन० २२९ । १४ ) । निष्ठानक - कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न हुए एक प्रमुख नागका नाम (आदि० ३५ । ९ )। निष्ठुरिक-एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग० १०३ । १२)
निसुन्द - एक दैत्य, जो श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था ( वन० १२ । २९ ) ।
नीथ - एक वृष्णिवंशी राजकुमार ( वन० १२० | १९ ) । नीप- ( १ ) एक प्राचीन जनपद, जहाँके राजा राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिरको भेंट देनेके लिये आये थे ( सभा० ५१ । २४ ) | ( २ ) एक क्षत्रियवंश, जिसमें जनमेजय नामक कुलाङ्गार राजा प्रकट हुआ था ( उद्योग० ७४ । १३ ) ।
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नीली
नील- ( १ ) कश्यप और कसे उत्पन्न हुआ प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । ७) । ( २ ) ( दुर्योधन ) माहिष्मती नगरीके एक राजा, जो क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ६१) । ये द्रौपदीके स्वयंवर में गये थे ( आदि० १८५ । १० ) । सहदेवके साथ इनका भीषण युद्ध ( सभा० ३१ । २१ ) । अग्निदेवद्वारा राजा नीलकी सहायता ( सभा० ३१ । २३) । इनके द्वारा अग्निदेवको अपनी कन्याका दान ( सभा० ३१ । ३३ ) । अग्निदेवद्वारा राजा नीलकी सेनाको अभय-दान ( सभा० ३१ । ३५ ) । पराजित नीलद्वारा सहदेवका पूजन ( सभा० ३१ । ५८-५९ कर्णने दिग्विजय के समय इन्हें पराजित किया था (वन ०२५४ | १५) पाण्डवोंकी ओर से इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था (उद्योग ० ४ । १६ ) । दुर्योधनकी सहायता में इनका सेनासहित आगमन ( उद्योग० १९ । २३-२४)। दुर्योधन सेना में एक रथियोंकी गणनामें इनका भी नाम था ( उद्योग ० १६६ । ४ ) । इन्होंने नर्मदाको भार्यारूप में पाकर उसके गर्भ से सुदर्शना नामक कन्या उत्पन्न की, जिसे अग्निदेव चाहने लगे । राजाने इस बातको जानकर वह कन्या उनके साथ ब्याह दी। उससे सुदर्शन नामक पुत्र हुआ ( अनु० २ अध्याय ) | ( ३ ) एक पर्वत, जो उत्तर में गन्धमादन और मन्दराचलके बाद आता है ( वन० १८८ । ११३ ) । गङ्गाद्वारमें भी एक नील पर्वत है, जहाँ स्नान करके पापरहित हुआ मनुष्य स्वर्गको जाता है ( अनु० २५ | १३) । ( ४ ) एक वानर सेनापति, इसके द्वारा दूषण के छोटे भाई प्रमार्थाका वध ( वन० २८७ । २७ ) | ( ५ ) पाण्डवपक्षका एक योद्धा, जो उदार रथी, सम्पूर्ण अस्त्रोंका ज्ञाता और महामनस्वी था ( उद्योग० १७१ । १५ ) । अनूपदेशका राजा, जिसे अश्वत्थामाने मूच्छित किया था ( भीष्म० ९४ । ३६ ) । इसके रथ के घोड़ोंका वर्णन ( द्रोण० २३ | ६५ ) | दुर्जयके साथ युद्ध ( द्रोण० २५ । ४५ ) । अश्वत्थामाद्वारा वध ( द्रोण० ३१ । २५ ) | इसके कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी कन्याके स्वयंवर में जाने की चर्चा ( शान्ति ० ४ । ६ ) । नीलगिरि - भद्राश्व वर्षकी सीमापर स्थित एक पर्वत, जिसे लाँघनेर रम्यक वर्ष आता है ( सभा० २८ । ६ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७४९ ) ।
नीला एक मुख्य नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं। ( भीष्म० ९ । ३१ ) ।
नीली- महाराज अजमीढकी द्वितीय पत्नी । इनके गर्भ से दुष्यन्त तथा परमेष्ठीका जन्म हुआ था ( आदि० ९४ । ३२) ।