SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवाग पक्षालिका नीवारा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय जनता १)। नैमिषारण्यमें आकर अर्जुनने उत्पलिनी (कमलपीती है (भीष्म० ९ । १८)। मण्डित गोमती ) नदीका दर्शन किया (आदि० २१४ । नृग-एक प्रसिद्ध एवं प्राचीन दानी राजा, जो यमराजकी ६)। इस सिद्धसेवित पुण्यमय तीर्थमें देवताओंके साथ समामें विराजमान होते हैं (सभा०८।८)। नृगने ब्रह्माजी नित्य निवास करते हैं। नैमिषकी खोज करनेवाले वाराहतीर्थमें पयोष्णी नदीके तटपर यज्ञ किया था, जिसमें पुरुषका आधा पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है और उस इन्द्र सोमपान करके मस्त हो गये थे और प्रचुर दक्षिणा तीर्थ में प्रवेश करते ही वह सारे पापोंसे छुटकारा पा पाकर ब्राहाणलोग भी हर्षोल्लाससे परिपूर्ण हो गये थे जाता है । वहाँ तीर्थसेवनमें तत्पर हो एक मासतक (वन० ८८ । ५-६, वन० १२१ । १-२) । इन्हें निवास करना चाहिये । पृथ्वीर जितने तीर्थ हैं, वे सभी भारतवर्ष बहुत प्रिय था (भीष्म०९।७-९)। ये नैमिषमें विद्यमान हैं । जो वहाँ स्नान करके नियम-पालनशौर्यसे सुयश एवं सम्मानके भागी होकर उत्तम लोकोंको पूर्वक नियमित भोजन करता है, वह गोमेध यज्ञका फल प्राप्त हुए थे (भीष्म० १७ । ९-१०)। श्रीकृष्ण पाता और अपने सात पीढ़ियोका उद्धार कर देता है। द्वारा गिरगिटकी योनिसे उद्धार (अनु०७० । ७)। जो नैमिषमें उपवासपूर्वक प्राणत्याग करता है, वह समस्त श्रीकृष्णके पूछनेपर इनका अपनी आत्मकथा सुनाना पुण्यलोकॊमें आनन्दका अनुभव करता है। नैमिषतीर्थ (अनु०७०।१०-२८)। श्रीकृष्णकी आज्ञासे इनका नित्य पवित्र और पुण्यजनक है। (वन० ८४ । ५९स्वर्गलोकमें गमन (अनु०७० । २९)। गोदानमहिमाके ६४)। देवर्षिसेवित प्राची दिशामें नैमिष नामक तीर्थ प्रसंगमें इनका नामनिर्देश (अनु० ७६ । २५)। है, जहाँ भिन्न-भिन्न देवताओंके पृथक पृथक पुण्यतीर्थ मांस-भक्षणका निषेध करनेके कारण इनको परावरतत्त्वका हैं। वहाँ देवर्षिसेवित परम रमणीय पुण्यमयी गोमती शान ( अनु० ११५ । ६०)। नदी है। देवताओंकी यज्ञभूमि और सूर्यका यज्ञ-पात्र विद्यमान है (वन० ८७ । ६-७)। भाइयोसहित नृत्यप्रिया-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । राजा युधिष्ठिरने नमिषारण्य तीर्थमें आकर गोमतीके पुण्य १०)। तीर्थों में स्नान, गोदान एवं धन दान किया (वन० नृसिंह-भगवान् विष्णुके अवतार । इनके द्वारा हिरण्य ९५ । १-२)। कशिपुके वधकी कथा (सभा० ३८।२९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७८५ से ७८९ तक)। नैमिषकक्ष-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक प्राचीन तीर्थ, जिसका निर्माण नैमिषारण्यनिवासी मुनियोंने किया था। नेपाल-हिमालयकी तराईका एक जनपद । कर्णने अपनी वहाँ स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है दिग्विजयके समय यहाँके राजाको जीता था (वन (वन० ८३ । १०९)। २५४ । ७)। . नेमिहंसपथ-एक स्थान, जो श्रीकृष्णके ही राष्ट्रभूत नैमिषेय-एक तीर्थ, जहाँ नैमिषारण्यवासी मुनियोंके दर्शनार्थ आनर्तदेशके भीतर अक्षप्रपतनके समीप था । यहीं __ सरस्वतीकी धारा पश्चिमसे पूर्वको लौट आयी थी। यहाँ भगवान् श्रीकृष्णने गोपति एवं तालकेतुका वध किया सरस्वतीकी धारा पलटनेका विशेष विवरण (शल्य०३७ । था (सभा०३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८२४)। . ३५-५७)। नैकपृष्ठ-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४१)। नैऋत-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५१)। नैगमेय-(१) कुमार कार्तिकेयके तृतीय भ्राता । पिताका नैति-एक राक्षस । पृथ्वीके प्राचीन शासकोंमें इसका नाम है ( शान्ति० २२७ । ५२)। नाम अनल (आदि. ६६ । २४) । (२) कुमार औकी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । २९)। कार्तिकेयकी चार मूर्तियोमेसे एक मूर्ति । दोके नाम थेशाख और विशाख (शल्य ४४।३७)। नौबन्धन-हिमालयका एक शिखर । यहाँ मत्स्य भगवानके सींगसे खोलकर सप्तर्षियोंने नौका बाँधी थी (वन. नैमिष-( इसे नैमिष एवं नैमिषारण्य भी कहा जाता है। आजकल लोग इसे नीमसार' कहते हैं। यह स्थान १८७ । ५०)। सीतापुर जिलेमें है। ) नैमिषारण्य तीर्थ में औनको अपना न्यग्रोधतीर्थ-उत्तराखण्डका दृषद्वती-तटवर्ती एक आश्रम द्वादश वार्षिक यज्ञ किया था (भादि.१।१: आदि (वन० ९०।१५)। ४.)। ऋषियोंकी प्रेरणासे सौतिने यहाँ महाभारतकी सम्पूर्ण कथा सुनायी थी (आदि० १।९-२५)। पक्षालिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । इस तीर्थ में देवताओंने यज्ञ किया था (आदि. १९६। १९)। म० ना० २४ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy