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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्रुवक ( १७२ ) नकुल के भ्राता ( आदि० ७५ । ३०)। (३) एक राजा, जो यमसभामें बैठकर सूर्यपुत्र यमकी उनासना करते हैं (सभा०८। १०)। (४) कौरवपक्षका एक योद्धा। भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १५५ । २७)। (५) युधिष्ठिरका सम्बन्धी और सहायक राजा (द्रोण. १५८ । ३९)। (६) प्रातःसायं स्मरण करनेयोग्य एक राजा, जो महारान उत्तानपादके पुत्र थे ( अनु० १५० । ७८)। ध्रुवक-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य. ४५। ६५)। ध्रुवरत्ना-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ४)। ध्वजवती-सूर्यदेवकी आज्ञासे आकाशमें ठहरनेवाली हरिमेधामुनिकी कन्या ( उद्योग० ११० । १३)। ध्वजिनी-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६१)। नकुल-(१)पाण्डुके क्षेत्रज पुत्र । अश्विनीकुमारोंके द्वारा माद्रीके गर्भसे उत्पन्न दो पुत्रों से एक ये दोनों भाई जुड़वें उत्पन्न हुए थे। दोनों ही सुन्दर तथा गुरुजनोंकी सेवामें तत्पर रहनेवाले थे ( आदि०१।११४, आदि० ६३ । ११७; आदि० ९५। ६३)। अनुपम रूपशाली तथा परम मनोहर नकुल और सहदेव अश्विनीकुमारोंके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि० ६७ । १११-११२)। इनकी उत्पत्ति तथा शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा इनका नामकरण संस्कार ( आदि. १२३ । १७-२१)। वसुदेवके पुरोहित काश्यपद्वारा इनके उपनयन आदि संस्कार तथा राजर्षि शुकद्वारा इनका अस्त्रविद्याका अध्ययन और ढाल-तलवार चलानेकी कलामें निपुणता प्राप्त करना ( आदि. १२३ । ३१ के बाद दा. पाठ)। पाण्डुकी मृत्युके पश्चात् माद्रीका अपने पुत्रों नकुलसहदेवको कुन्तीके हाथोंमें सौंपकर पतिके साथ चितापर आरूढ़ होना ( आदि. १२४ अध्याय)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंका पाँचों पाण्डवोंको कुन्तीसहित हस्तिनापुर ले जाना और उन्हें भीष्म आदिके हाथोंमें सौंपना (आदि० १२५ अध्याय)। द्रोणाचार्यका पाण्डवोंको नाना प्रकारके दिव्य एवं मानव अस्त्र-शस्त्रोंकी शिक्षा देना (आदि. १३१ । ९)। द्रुपदपर आक्रमण करते समय अर्जुनका माद्रीकुमार नकुल और सहदेवको अपना चक्ररक्षक बनाना ( आदि. १३७ । २७)। द्रोणद्वारा सुशिक्षित किये गये नकुल विचित्र प्रकारसे युद्ध करनेमें कुशल होनेके कारण अपने भाइयोको बहुत प्रिय थे और अतिरथी कहलाते थे (आदि० १३८ । ३.)। धृतराष्ट्रके आदेशसे कुन्तीसहित पाण्डवोंकी वारणावत-यात्रा, वहाँ उनका स्वागत और लाक्षागृहमें निवास (भादि० अध्याय १४२ से ११५ तक)। लाक्षागृहका दाह और पाण्डवोंका सुरंगके रास्ते निकल जाना, भीमका नकुलसहदेवको गोद में लेकर चलना (आदि. १४७ अध्याय)। पाण्डवोंको व्यासजीका दर्शन और उनका एकचक्रा नगरीमें प्रवेश (आदि० १५५ अध्याय ) । पाण्डवोंकी पाञ्चालयात्रा (आदि० १६९ अध्याय)। इनका द्रुपदकी राजधानीमें जाकर कुम्हारके यहाँ रहना ( आदि. १८४ अध्याय)। पाँचों पाण्डवोंका द्रौपदीके साथ विवाहका विचार ( आदि० १९० अध्याय ) । पाँचों पाण्डवोंका कुन्तीसहित द्रुपदके घरमें जाकर सम्मानित होना (आदि० १९३ अध्याय) । पाँचों भाइयोंका द्रौपदीके साथ विवाह (आदि० १९७ अध्याय) विदुरके साथ पाण्डवोंका हस्तिना. पुरमें आना और आधा राज्य पाकर इन्द्रप्रस्थ नगरका निर्माण करना ( आदि. २०६ अध्याय ) । पाँचों भाइयोंका द्रौपदीके विषयमें नियम-निर्धारण ( आदि. २११ अध्याय )। नकुलद्वारा द्रौपदीके गर्भसे शतानीकका जन्म ( आदि० २२० । ७९; आदि० ९५ । ७५)। इनका चेदिराजकी कन्या करेणुमतीके साथ विवाह और इनके द्वारा उसके गर्भसे निरमित्रका जन्म (आदि० ९५ । ७९)। इनके द्वारा पश्चिमदिशाके देशोंपर विजय । नकुलके जीतकर लाये हुए खजानेका बोझ दस हजार ऊँट बड़ी कठिनाईसे ढोकर ला सके थे (सभा० ३२ अध्याय ) । राजसूय यज्ञके बाद ये गान्धारराज सुबल और उनके पुत्रोंको पहुँचाने गये थे (सभा०४५। ४९)। युधिष्ठिरके द्वारा ये जूएके दाँवपर रखे और हारे गये थे (सभा. ६५ । १२)। ये अपने शरीरमें धूल लपेटकर वनकी ओर गये थे (सभा० ८० । १८)। इनकी अर्जुनके लिये चिन्ता (वन० ८० । २३-२६)। जटासुरने इनका अपहरण किया था (वन० १५७ । १०)। इनके द्वारा क्षेमङ्कर, महामुख और सुरथका वध (वन० २७१ । १६-२२)। द्वैतवनमें जल लानेके लिये जाना और सरोवरपर गिरना ( वन० ३१२ । १३)। इनका विराट-नगरमें ग्रन्थिक नामसे रहनेकी बात बताना (विराट. ३ । ४)। इनके 'नकुल' नामकी निरुक्ति (विराट० ५। २५)। राजा विराटके यहाँ रहनेके लिये उनसे प्रार्थना करना (विराट. १२। ८ के बाद दा० पाठ )। इनका त्रिगतोंके साथ युद्ध (विराट. ३३।३४)। दूत बनकर जानेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णसे इनका समयोचित कर्तव्य करनेके लिये निवेदन ( उद्योग० ८० अध्याय)। द्रुपदको प्रधान सेनापति बनानेके लिये इनका प्रस्ताव ( उद्योग० १५१ । १६)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर (उद्योग०१६३ । ३८ ) । कवच उतारकर कौरवसेनाकी ओर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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