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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नकुल www.kobatirth.org ( १७३ ) पैदल ही जाते हुए युधिष्ठिरसे इनका प्रश्न करना ( भीष्म० ४३ । १८ ) । प्रथम दिनके संग्राम में दुःशासन के साथ द्वन्द्व-युद्ध ( भीष्म० ४५ । २२ - २४ ) । शल्य के साथ युद्धमें इनका घायल होना ( भीष्म० ८३ | ४५ के बाद दा० पाठ ) । इनके द्वारा अश्वसेनाका संहार ( भीष्म० ८९ । ३२-३४ ) । इनका शकुनिके साथ युद्ध ( भीष्म० १०५ । ११-१२ ) । विकर्णके साथ T द्वन्द्व-युद्ध ( भीष्म० ११० । ११-१२; भीष्म० १११ । ३४-३६ ) | धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन ( द्रोण० १० । २९-३० ) । शल्यके साथ युद्ध ( द्रोण० १४ । ३१-२२ ) । इनके रथ के घोड़ोंका वर्णन द्रोण० २३ । ७ ) । शकुनिके साथ इनका युद्ध ( भीष्म० ९६ । २१२५ ) । विकर्णके साथ इनका युद्ध ( द्रोण० १०६ । १२ ) । इनके द्वारा विकर्णकी पराजय ( द्रोण० १०७ । ३० ) । इनके द्वारा शकुनिकी पराजय (द्रोण० १६९ । १६ ) । दुर्योधनको युद्ध में पराजित करना ( द्रोण ० १८७ | ५०-५५ ) | धृष्टद्युम्न की रक्षामें जाना ( द्रोण० ) । इनके द्वारा भगदत्तके पुत्रके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण० ५ । २८ ) । इनके द्वारा अङ्गराजका वध (कर्ण० २२ । १८ ) । कर्णसे पराजित हो भागना और उसके द्वारा जीवित छोड़ा जाना (कर्ण ० २४ । ४५-५१ ) । सुषेणके साथ युद्ध (कर्ण० ४८ । ३४-४० ) । दुर्योधनके साथ युद्ध में घायल होना ( कर्ण ० ५६ । ७ - १८ ) । वृषसेन के साथ युद्ध ( कर्ण ० ६१ । ३६- ३९ ) । कर्णद्वारा १८९ । ७ पराजय ( कर्ण० ६३ । १३ ) । वृषसेन के साथ युद्ध ( कर्ण ० ८४ । १९ - ३५ ) । इनके द्वारा कर्णके तीन पुत्रों (चित्रसेन, सत्यसेन और सुषेण ) का वध ( शल्य ० १० । १९-५०) । शल्यके साथ युद्ध (शल्य० अध्याय १३ तथा १५ अध्याय) । युधिष्ठिरको आज्ञासे द्रौपदीको बुलाने के लिये जाना ( सौप्तिक ० १० । २८ ) गृहस्थधर्मकी प्रशंसा करते हुए राजा युधिष्ठिर को समझाना ( शान्ति० १२ अध्याय ) | युधिष्ठिरद्वारा सेनाध्यक्षके पदपर नियुक्ति ( शान्ति ० ४१ । १२ ) । युधिष्ठिरद्वारा इन्हें दुर्मर्षणके राजभवनकी प्राप्ति ( शान्ति० ४४ । १० - ११ ) । भीष्मजी से खड्गकी उत्पत्ति आदिके विषय में इनका प्रश्न (शान्ति० १६६ । २ - ६ ) । युधिष्ठिरके पूछने पर इनका त्रिवर्ग में अर्थकी प्रधानता बताना ( शान्ति ० १६७ । २२-२९ ) । अश्वमेधयश के समय ये भीमसेनके साथ नगरकी रक्षा कार्यमें नियुक्त थे ( आश्व० ७२ । १९ ) । कुन्तीका वन जाते समय इन्हें युधिष्ठिरको सौंपना ( आश्रम ० १६ । १५ ) । वनमें मिलनेके लिये आये हुए नकुलको देखकर कुन्ती बड़ी उतावलीके साथ आगे बढ़ी थीं ( आश्रम ० २४ । ११ ) | संजयका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नन्द (नन्दक ) ऋषियोंसे इनका परिचय देना ( आश्रम० २५ । ८ ) । इनकी पत्नीका परिचय देना ( आश्रम ० २५ । १४ ) । महाप्रस्थानके पथमें इनका गिरना और भीमसेनके पूछने पर युधिष्ठिरका इनके पतनका कारण बताना ( महाप्र० २ ॥ १२- १७) । स्वर्ग में जानेपर युधिष्ठिरका इन्हें देखने की इच्छा प्रकट करना ( स्वर्गा० २ । १० ) । युधिष्ठिर ने नकुल, सहदेवको तेजस्वी रूप में अश्विनीकुमारों के स्थानपर विराजमान देखा ( स्वर्गा ० ४ । ९ ) । ( २ ) युधिष्ठिर के अश्वमे यज्ञको तुच्छ बतानेवाला एक नेवला ( आश्व० ९० अध्याय ) । नग्नजित् - ( १ ) एक क्षत्रिय राजा, जो 'इषुपाद' नामक दैत्यके अंश से उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । २१ ) | यह दिग्विजय के समय कर्णद्वारा पराजित हुआ था ( वन० २५४ । २१ ) | यह गान्धारदेशका ही एक राजा था, भगवान् श्रीकृष्णने इसके समस्त पुत्रको पराजित किया था ( उद्योग ० ४८ । ७५) । (२) एक दैत्य, जो प्रह्लादका शिष्य था और भूतलपर राजा 'सुबह' के रूपमें उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६३ । ११ ) । ननिका - जिसमें ऋतुधर्म ( रजोधर्म ) का प्राकट्य न हुआ हो, ऐसी कुमारी कन्या ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ० ७९३ ) । नदीज़ एक प्राचीन राजा । पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजने का निश्चय हुआ या ( उद्योग० ४ । १५)। नन्द (नन्दक ) - ( १ ) धृतराष्ट्रका पुत्र ( आदि० ६७ । ९६ आदि० ११६ । ५ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( कर्ण ० ५१ । १९ ) । ( २ ) एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग ० १०३ । १२) । ( ३ ) गोकुल एवं नन्दगाँवमें रहनेवाले गोपके राजा ( नन्दबाबा ), जो भगवान् श्रीकृष्ण के पालक पिता थे ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ) । वसुदेवजीने अपने नवजात बालक श्रीहरिको नन्दगोपके घरमें छिपा दिया था । श्रीकृष्ण बहुत वर्षोंतक नन्दगोपके ही घरमें रहे ( सभा ० ३८ | पृष्ठ ७९८ ) । नन्दगोपके कुलमें यशोदाके गर्भसे एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो साक्षात् जगज्जननी दुर्गाका स्वरूप मानी जाती है । युधिष्ठिरने विराटनगरमें जाते समय उसका चिन्तन किया और देवीने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उन्हें वर दिया ( विराट० ६ अध्याय 1 अर्जुनने दुर्गा की स्तुति करते समय नन्दगोपके कुलमें उत्पन्न दुर्गास्वरूपा उस कन्याका स्तवन किया और देवीद्वारा उन्हें विजयसूचक आशीर्वाद प्राप्त हुआ (भीष्म ० २३ अध्याय) । ( ४ ) युधिष्ठिरकी ध्वजापर बजनेवाले For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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