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धृष्णु
( १७१ )
ध्रुव
कृपाचार्यसे भयभीत होना (कर्ण० २६ । १६-१८)। अनुश्रान करके उनका विवाह कार्य सम्पन्न कर दिया। कृतवर्माको मूच्छित करना (कर्ण०५४।४० के बाद दा. इसी प्रकार क्रमशः सभी पाण्डवों का विवाह द्रुपदकुमारी पाठ)। दुर्योधनको युद्ध में परास्त करना (कर्ण० ५६।। कृष्णाके साथ कराया ( आदि. १९७ । ११-१४)। ३४-३५)। कर्ण के साथ युद्ध (कर्ण० ५९ । ७-१४)।
इन्होंने पाण्डवोंके पुत्रोंके उपनयनादि संस्कार कराये अश्वत्थामाके साथ युद्ध में जीते-जी पकड़ा जाना (कर्ण० थे (आदि. २२० । ८७)। युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें ५९ । ३१-५३)। दुःशासनके काबूमें पड़ जाना ( कर्ण.
ये होता थे (सभा० ३३ । ३५)। इन्होंने युधिष्ठिरका ६१ । ३३)। कृपराच र्यके साथ युद्ध (शल्य० ११॥३८) अभिषेक किया ( सभा० ५३ । १०)। पाण्डवोके इनके द्वारा शाल्वके हाथीका वध (शल्य. २० ।
वनगमनके समय महर्षि धौम्य हाथमें शा लेकर उनके २५)। इनके द्वारा दुर्योधन की पराजय (शल्य. २५।
आगे-आगे जाते तथ मार्गमें यमसाम और रुद्रसामका २३)। अश्वत्थामाद्वारा इनका रात्रिमें वध ( सौप्तिक० गान करते थे (सभा० ८.१८)। इनकी सूर्योपासना८ । २६ )। इनका दाह-संस्कार (स्त्री० २६ । ३४)।
के लिये युधिष्ठिरको प्रेरणा (वन. ३ | ५-१२)। इनका श्राद्धकर्म (शान्ति० ४२। ४-५)। स्वर्गमें
इनके द्वारा सूर्यके अष्टोत्तरशत नामोंका वर्णन (वन जाकर ये अग्नि के स्वरूपमें मिल गये (स्वर्गा०५।२१)।
३। १६-१८)। किरिकी मायाका नाश (वन
११ । २०)। इनके द्वारा युधिष्ठिरके प्रति तीर्थोंका महाभारतमें आये हुए धृष्टद्युम्नके नाम-द्रौपदि द्रोण
वर्णन (वन० अध्याय ८७ से ९० तक)। युधिष्ठिरके हन्ता, पाञ्चाल, पाञ्चालदायाद, पाञ्चालकुलवर्धन, पाञ्चालमुख्य, पाञ्चाल पुत्र, पाञ्चालराट, पाञ्चालराज, पाञ्चालतनय,
प्रति ब्रह्मा, विष्णु आदिके स्थानों तथा सूर्य-चन्द्रमाकी
गतिका वर्णन (वन० १६३ अध्याय) । द्रौपदीका पाञ्चाल्य, पाञ्चाल्यपुत्र, पार्षत, यज्ञसेनसुत, याज्ञसेनि
अपहरण करनेपर जयद्रथको फटकारना और द्रौपदीकी आदि।
रक्षाके लिये प्रयत्न करना ( वन० २६८ । २६.२७)। धृष्णु-(१) वैवस्वत मनुके द्वितीय पुत्र ( आदि. ७५ ।
अज्ञातवासके लिये चिन्तित हुए युधिष्ठिरको समझाना १५)। (२) एक प्रजापति, जो कविके पुत्र हैं।
(वन० ३१५। ११-२१)। पाण्डवों को राजाके यहाँ इनको शुभलक्षण एवं ब्रह्मज्ञानी माना गया है (अनु.
रहनेका ढंग बताना (विराट. ४ | ७-५१)। अज्ञात८५ १३३)।
वासके लिये यात्रा करते समय पाण्डवोंकी अग्निहोत्रधेनुक-(१) एक भयङ्कर दैत्य, जो तालवनमें निवास
सम्बन्धी अग्निको प्रज्वलित करके धौम्यने उनकी समृद्धिकरता था और गधेका रूप धारण करके रहता था। इसे
वृद्धि, राज्यलाभ तथा भूलोक-विजयके लिये वेद-मन्त्र बलदेवजीने मार गिराया था ( सभा० ३८ । २९ के
पढ़कर हवन किया । जब पाण्डव चले गये, तब जपयज्ञ बाद, पृट ८००, कालम २)। (२) एक भारतीय
करने वालोंमें श्रेष्ठ धौम्यजी उस अग्निहोत्रसम्बन्धी जनपद (भीष्म० ५० । ५१)।
अग्निको साथ लेकर पाञ्चालदेशमें चले गये (बिराट. ४ । धेनुकाश्रम-एक तीर्थ, यहाँ मृत्युने तप किया था (द्रोण.
५४-५७)। इन्होंने युद्ध में मारे गये पाण्डवपक्षके सगे५४ । ८; शान्ति० २५८ । १५)।
सम्बन्धी जनोंका दाहकर्म कराया था (स्त्री. २६ । धेनुतीर्थ-एक त्रिभुवनविख्यात तीर्थ, वहाँ तिलमयी धेनुका २४-३०)। युधिष्ठिरद्वारा धार्मिक कार्योंके लिये नियुक्ति
दान करनेसे सब पापोंसे छुटकारा मिलता है और सोम- (शान्ति०४१।१४)। इनके द्वारा धर्मके रहस्यका लोककी प्राप्ति होती है (वन० ८४ । ८७ )।
वर्णन (अनु. १२७ । १५-१६) । (२) एक धौतमूलक-चीनोंके कुळमें उत्पन्न हुआ एक कुलाङ्गार
ऋषि, जिन्होंने रातमें सत्यवान्के न लौटनेपर उनके पिता नरेश ( उद्योग० ७४ । १४)।
राजा धुमत्सेनको सत्यवान्के जीवित होनेका विश्वास धौम्य-(१) उत्कोचक तीर्थमें तपस्या करनेवाले एक
दिलाया था ( वन० २९८ । १९ )। हस्तिनापुरके
मार्गमें श्रीकृष्णसे इनकी भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ के मर्षि, देवल ऋषिके अनुज, पाण्डवोंके पुरोहित (भादि. १८१ । २)। पाण्डवोंद्वारा इनका पुरोहितरूपमें वरण
बाद दा. पाठ)। ये शिवभक्त उपमन्यु ऋषिके छोटे
भाई हैं (अनु०१४ । ११२)। ( आदि. १८२। ६)। इन्होंने वेदीपर प्रज्वलित अग्निकी स्थापना करके उसमें मन्त्रोंद्वारा आहुति दी और धौन-एक प्राचीन ऋषि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मयुधिष्ठिरको बुलाकर कृष्णाके साथ उनका गठबन्धन कर जीके पास आये थे (शान्ति. ४७ । ११)। दिया । उन दोनों दम्पतिका पाणिग्रहण कराकर उनसे ध्रुव-(१) धर्मद्वारा धूम्राके गर्भसे उत्पन्न द्वितीय वसु अग्निकी परिक्रमा करवायी और अन्य शास्त्रोक्त विधियोंका (आदि.६६ । १९)। (२) नहुषके पुत्र । ययाति.
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