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धृष्टद्युम्न
( १७० )
धृष्टद्युन्न
रूपसे प्रकट हुए (आदि० १६६ । ३६--३९)। ९९)। अश्वत्थामाके साथ युद्ध (भीष्म० ६१ ।१९)। इनके अङ्गोंकी कान्ति अग्निकी ज्वालाके समान
पौरव-पुत्र दमनका वध ( भीष्म० ६१ । २०)। शल्यके उद्भासित हो रही थी। इनके मस्तक पर किरीट, अङ्गोमें
पुत्रका वध (भीष्म० ६१ । २९) । शल्यके साथ उत्तम कवच तथा हाथोंमें खड्ग, बाण और धनुष शोभा
युद्ध और घायल होना (भीष्म० ६२ । ८-१२)। पाते थे । ये गर्जना करते हुए एक श्रेष्ठ रथपर जा चढ़े
इनके द्वारा मकरव्यूहका निर्माण (भीष्म० ७५ | ४मानो युद्ध की यात्राके लिये जा रहे हों, इससे पाञ्चालोंको
१२)। प्रमोहनास्त्रद्वारा धृतराष्ट्र पुत्रोंपर इनकी विजय बड़ी प्रसन्नता हुई । ये साधु-साधु' कहकर इन्हें शाबाशी
(भीष्म० ७७ । ४५) द्रोणाचार्यद्वारा पराजित होना देने लगे (आदि. १६६ । ४०-४१ )। इनके जन्म
(भीष्मः ७७ । ६९-७० ) । इनके द्वारा दुयोधनकी के समय आकाशवाणी हुई थी- यह कुमार पाञ्चालोका
पराजय ( भीष्म० ८२ । ५३ ) । विन्द-अनुविन्दके साथ भय दूर करेगा; द्रोणवधके लिये इसका प्राकटय हुआ
युद्ध (भीष्म० ८६ । ६४-६५) । कृतवर्माके साथ है (आदि. १६६ । ४२-४३ )। इनका धृष्टद्युम्न
द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म. ११०। ९-१०; भीष्म० १११। नाम होने का कारण ( आदि. १६६ । ५२)। द्रोणा
४०-४४)। भीष्मवध के लिये अपनी सेनाको प्रोत्साहन चार्यद्वारा इनकी शिक्षा (आदि० १६६ । ५५)।
(भीष्म० ११०। २०-२३)। भीष्मके साथ युद्ध द्रौपदीके स्वयंवरमें इनकी घोषणा ( आदि०१८४ । (भीष्म० ११४ । ३९) द्रोणाचार्यके साथ द्वन्द्वयुद्ध ३५-३६)। इनका द्रौपदीको स्वयंवरमें आये हुए
(भीष्म०११६। ४५-५३; द्रोण० ७ । ४८-५४ )। राजाओंका परिचय देना (आदि० १८५ अध्याय)।
धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०। ४०इनके द्वारा गुप्तरूपसे पाण्डवोंके व्यवहारोंका निरीक्षण
४२, ६०-६२)। सुशर्मा के साथ युद्ध (द्रोण. १४ । (आदि. १९१ । १-१२)। द्रौपदीके सम्बन्धमें
३७-३९)। द्रोणाचार्यसे भयभीत युधिष्ठिरको आश्वासन चिन्तित हुए द्रुपदको इनका आश्वासन देना (आदि. (द्रोण. २०। २२-२३)। दुर्मुखके साथ युद्ध १९२ । १२ )। व्यासजीके पूछनेपर द्रौपदीके विवाह के
(द्रोण. २० । २६-२९) । इनके रथके घोड़ोंका वर्णन सम्बन्धमें इनकी सम्मति ( आदि० १९५ । १०)। (द्रोण. २३। ४)। द्रोणपर आक्रमण (द्रोण. ३१ । युधिष्ठिरके यहाँसे राजा विराटके विदा होनेपर धृष्टद्युम्न उन्हें १७)। इनके द्वारा चन्द्रवर्मा और निषधराज बृहत्क्षत्रका पहँचाने गये थे। (सभा०४५। ४७)। दुर्योधन
वध (द्रोण. ३२ । ६५-६६)। द्रोणाचार्यके साथ द्वारा इनकी स्थिरताका वर्णन (सभा० ५३ । १९)।
घोर युद्ध (द्रोण. ९५ तथा ९७ अध्याय) द्रोणाचार्यको इनके द्वारा रोती हुई द्रौपदीको आश्वासन (वन १२।
मूञ्छित करके उनके रथयर चढ़ जाना (द्रोण. १२२ । १३४-१३५)। इनका द्रौपदीकुमारों को साथ लेकर अपनी
५६-५८)। द्रोणाचार्यद्वारा पराजय (द्रोण. १२२ । राजधानीको प्रस्थान (वन० २२ । ४९) । इन्होंने ७१-७२)। भीमसेनके कहने से युधिष्ठिर की रक्षाका भार काम्यकवनमें जाकर पाण्डवोंसे भेंट की (वन. ५१ । स्वीकार करना (द्रोण. १२७ । १०-११)। अश्वत्थामा१७)। उपल्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहमें इनका के साथ युद्ध में पराजित होना (द्रोण. १६०।११आगमन (विराट. ७२ । १८)। संजयद्वारा इनकी ५३) द्रोणाचार्यके साथ युद्ध (द्रोण. १७०।२-१२)। वीरताका वर्णन (उद्योग. ५० । १६)। ये पाण्डव
इनके द्वारा द्रुमसेनका वध (द्रोण०७०।२२)। दलके प्रधान सेनापति चुने गये थे ( उद्योग० १५७ । कौरवसेनाकी पराजय (द्रोण. १७१। ४९-५२) । १३)। इनका उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर देना
कर्णद्वारा पराजित होना (द्रोण. १७३ । ७)। द्रोणा(उद्योग० १६३ । ४५-४७)। इनके द्वारा अपने चार्यके वधकी प्रतिज्ञा (द्रोण. १८६ । ४६)। दुःशासनपक्षके महारथियोंको समान प्रतिपक्षीके साथ युद्ध करनेका
को हराकर द्रोणाचार्यपर आक्रमण (द्रोण० १८९ । - आदेश और उनका नामनिर्धारण ( उद्योग. १६४ । ६)। द्रोणाचार्य के साथ भयंकर संग्राम (द्रोण. ५-१०)। प्रथम दिनके संग्राममें द्रोणाचार्य के साथ अध्याय १९१ से १९२।२६-३५ तक)। इनके द्वारा द्रोणाइनका द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म० ४५। ३१-३४)। भीष्म- चार्यका सिर काटा जाना (द्रोण० १९२ । ६२-६३)। के साथ युद्ध (भीषम ४७ । ३.)। दूसरे दिनके इनका अर्जुनके समक्ष द्रोणवधरूपी अपने कृत्यका समर्थन युद्ध के लिये इनके द्वारा क्रौञ्चारुणब्यूहका निर्माण करना (द्रोण. १९७ । २४-४४)। सात्यकिके कटु(भीष्म० ५० । ४२-५७)। द्रोणाचार्य के साथ घोर वचनोंका उत्तर देना (द्रोण०,१९८ । २५-४५)। युद्ध ( भीष्म ५३ अध्याय)। कलिङ्गोंसे युद्ध करते। अश्वत्थामाद्वारा पराजय (द्रोण. २००।४३)। इनके समय भीमसेनकी रक्षामें पहुँचना (भीष्मः ५४ । द्वारा गजसेनाका संहार ( कर्ण० २२ । २-७)।
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