SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धृतराष्ट्र ( १६८ ) धृतराष्ट्र थककर गान्धारीका सहारा ले अचेत-सा होकर लेट जाना, धर्मरूपताका प्रतिपादन तथा इनसे अभीष्ट वस्तु माँगनेके राजा युधिष्ठिरके हाथ फेरनेसे इनका सचेत होना और उनसे लिये आदेश प्रदान करना ( आश्रम० २८ अध्याय)। पुनः हाथ फेरने और हृदयसे लगानेके लिये कहना धृतराष्ट्रका व्यासजीसे अपने मानसिक शोक एवं अशान्तिका (आश्रम० ३ । ६१-७३)। इनका युधिष्ठिरको हृदयसे वर्णन करना ( आश्रम २९ । २३-३४) । व्यासजीका लगाकर उनका मस्तक सूंघना और उनसे तपस्याके लिये धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय देना तथा उनकी पुनः अनुमति माँगना । युधिष्ठिरका इनसे अन्न ग्रहण आज्ञासे इन सबका गङ्गातटपर जाना (आश्रम० ३१ करने के लिये कहना और इनका वनमें जानेकी अनुमति अध्याय) । व्यासजीकी कृपासे दिव्य दृष्टि पाकर धृतराष्ट्रका दे देनेकी शर्तपर ही भोजन करनेको उद्यत होना गङ्गाजलसे प्रकट हुए अपने पुत्रों और सगे-सम्बन्धियोंका (आश्रम० ३ । ७५-८६)। व्यासजीके समझानेपर दर्शन करना एवं प्रसन्न होना (आश्रम ३२ अध्याय)। युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेकी अनुमति देना और व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा उनसे भोजन करनेको प्रार्थना करना ( आश्रम ४ करना (आश्रम० ३६ अध्याय)। कुन्ती, गान्धारीअध्याय)। धृतराष्ट्रद्वारा राजा युधिष्ठिरको राजनीतिका सहित धृतराष्ट्रकी तीव्र तपस्या एवं गङ्गाद्वारके वनमें उपदेश (आश्रम० अध्याय ५ से ७ तक)। धृतराष्ट्रका इनका दावानलसे दग्ध हो जाना (आश्रम० ३७ । कुरुजाङ्गलदेशकी प्रजासे वनमें जानेकी आशा माँगना १०-३२)। धृतराष्ट्र आदिकी हड्डियोंका गङ्गामें प्रवाह और अपने अपराधोंके लिये क्षमा-प्रार्थना करना (आश्रम तथा इनका श्राद्ध-कर्म (आश्रम० ३९ अध्याय)। अध्यायमसेएतक)। प्रजाकी ओरसे साम्ब नामक ब्राह्मणका स्वर्गलोकमें जानेपर गान्धारीसहित धृतराष्ट्रका धनाध्यक्ष धृतराष्ट्रको उत्तर देना ( आश्रम 10 अध्याय)। कुबेरके दुर्लभलोकोंको प्राप्त करना (स्वर्गा० ५ ५ ५४ )। धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरसे श्राद्ध करनेके लिये धन माँगना महाभारतमें आये हुए धृतराष्ट्रके नाम-आजमीढ, (आश्रम० ११ ११-६)। युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको अम्बिकासुत, आम्बिकेय, भारत, भरतशार्दूल, भरतश्रेष्ठ, यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना (आश्रम भरतर्षभ, भरतसत्तम, कौरव, कौरवश्रेष्ठ, कौरवराज) १२ । ४५)। विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरका उदारता- कौरवेन्द्र, कौरव्यः कुरुशार्दूल, कुरुश्रेष्ठ, कुरूद्वह, पूर्ण उत्तर सुनाना (आश्रम १३ अध्याय)। गजा कुरुकुलश्रेष्ठ, कुरुकुलोद्वहः कुरुमुख्य, कुरुनन्दन, धृतराष्ट्र के द्वारा मृत व्यक्तियोंके लिये श्राद्ध एवं विशाल कुरुप्रवीर, कुरुपुङ्गव, कुरुराज, कुरुसत्तम, कुरुवंशदानयज्ञका अनुष्ठान (आश्रम० १४ अध्याय)। विवर्धन, कुरुवीर, कुरुवृद्ध, कुरुवृद्धवर्य, वैचित्रवीर्य, गान्धारीसहित धृतराष्ट्रका वनको प्रस्थान, कुन्तीका प्रज्ञाचक्षु आदि। गान्धारीका हाथ अपने कंधेपर रखकर जाना, पाण्डवों, (२) कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न हुआ एक नाग द्रौपदी आदि स्त्रियों और पुरवासियोंका रोते हुए इनके (आदि. ३५ । १३ ) । यह वरुणकी सभा पीछे-पीछे जाना (आश्रम. १५ अध्याय)। राजा उपस्थित होकर उनकी उपासना करता है (सभा० धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना, कृपाचार्य और युयुत्सुको ९ । ९) । नागोद्वारा पृथ्वीके दोहनके समय युधिष्ठिरके हाथों सौंपना ( आश्रम० १६ । २-५)। यह दोग्धा बनाया गया था (द्रोण० ६५ । २२)। कुन्तीसहित गान्धारी और धृतराष्ट्र आदिका वनके मार्गमें । इसे शिवजीके रथके ईषादण्डम स्थान दिया गया था गङ्गातटपर निवास करना (आश्रम०१८।१६-२५)। (कर्ण० ३४ । २८)। बलरामजीके शरीरत्यागके धृतराष्ट्र आदिका गङ्गातटसे कुरुक्षेत्रमें जाना और शतयूपके उन भगवान् अनन्त नागके स्वागतके लिये यह प्रभासआश्रमपर निवास करना (आश्रम० १९ अध्याय)। क्षेत्रके समुद्रमें आया था (मौसल. ४ । १५) । नारद जीका धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना (३) एक देवगन्धर्व, जो कश्यपपत्नी मुनिका पुत्र है और इन्हें मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना (आश्रम (आदि. ६५ । ४२)। यह अर्जुनके जन्ममहोत्सवमें २० अध्याय)। धृतराष्ट्र आदिके लिये पुरवासियों तथा आया था (आदि. १२२ । ५५)। इसे देवराज पाण्डवोंकी चिन्ता ( आश्रम० २१ अध्याय)। पाण्डवों इन्द्र ने अपना दूत बनाकर मरुत्तके पास यह कहने के तथा पुरवासियोंका वनमें जाकर कुन्ती और गान्धारीसहित लिये भेजा था कि राजन् ! तुम बृहस्पतिको आचार्य धृतराष्ट्रके दर्शन करना (आश्रम० २५ अध्याय)। बनाओ ( संवर्त को नहीं)। अन्यथा तुमपर वज्रका और युधिष्ठिरकी बातचीत (आश्रम०२६ । प्रहार करूँगा।' धृतराष्ट्रन वहाँ जाकर इन्द्रका संदेश १-१७)। धृतराष्ट्रके पास महर्षि व्यासका आगमन, 'सुनाया था ( आश्व०१०।२-८) गन्धर्वराज धृतराष्ट्र इनसे कुशल पूछते हुए उनके द्वारा विदुर और युधिष्ठिरकी ही भूतलपर धृतराष्ट्र के रूपमें उत्पन्न हुआ था (म्बर्गा. ग For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy