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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धृतराष्ट्र ( १६७ ) धृतराष्ट्र को घोषयात्राके लिये अनुमति देना ( वन० २३९ । २२)। द्रुपद-पुरोहितको सत्कारके साथ विदा करना (उद्योग०२१ ।२१)। संजयसे पाण्डवपक्षके वीरोंका वर्णन करते हुए संजयको दूत बनाकर पाण्डवोंके पास भेजना (उद्योग० २२ अध्याय)। संजयकी बात सुनकर चिन्ताके कारण जागरण और विदुरको बुलवाकर उनसे कल्याणकी बात पूछना (उद्योग. ३३ । ९-११)। इनका संजयसे युधिष्ठिरके सहायकोंके विषयमें प्रश्न (उद्योग० ५०। ९)। भीमसेनके पराक्रमसे डरकर इनका विलाप करना (उद्योग. ५१ अध्याय) । इनके द्वारा अर्जुनके पराक्रमसे प्राप्त होनेवाले भयका वर्णन (उद्योग० ५२ अध्याय)। कौरवसभामें युद्धसे भय दिखाकर शान्तिका प्रस्ताव (उद्योग० ५३ । १४-१५)। पाण्डवोंकी युद्ध-तैयारी सुनकर इनका विलाप ( उद्योग ५७ । २६-३५)। दुर्योधनको पाण्डवोंसे संधि कर लेनेके लिये समझाना ( उद्योग० ५४ । २-९)। भीमके पराक्रमका वर्णन करके अपने पक्षके अन्य राजाओंको भय दिखाना (उद्योग० ५८ । १९-२८ )। अपने पक्षकी अपेक्षा पाण्डव-पक्षको अधिक शक्तिशाली समझकर दुर्योधनको संधिके लिये समझाना ( उद्योग० ६० अध्याय)। इनके द्वारा दुर्योधनको संधिकी सलाह (उद्योग० ६५ अध्याय)। संजयसे दोनों पक्षों के बलाबलके विषयमें प्रश्न ( उद्योग० ६७ । ४-५)। इनके द्वारा श्रीकृष्णका गुणगान ( उद्योग. ७१ अध्याय)। श्रीकृष्णके सत्कारके लिये दुर्योधनको आज्ञा देना (उद्योग. ८५। ७-१०)। विदुरसे श्रीकृष्णकी अगवानी करने, भेंट देने तथा उन्हें दुःशासनके महलमें ठहरानेका विचार प्रकट करना (उद्योग० ८६ अध्याय)। श्रीकृष्णको कैद करनेकी बात सुनकर दुर्योधनका विरोध करना ( उद्योग० ८८ । १७-१८)। इनके द्वारा राजमहलमें श्रीकृष्णका आतिथ्य (उद्योग. ८५ । १८-१९ )। दर्योधनको समझाने के लिये श्रीकृष्णसे अनुरोध ( उद्योग. १२४ । २-७)। दुर्योधनको समझाना ( उद्योग १२५ । २३-२७)। गान्धारीसे दुर्योधनकी उद्दण्डता बताना (उद्योग. १२९ । ७-८) । श्रीकृष्णको कैद करनेसे दुर्योधनको रोकना ( उद्योग. १३० । ३४३१)। श्रीकृष्ण के विश्वरूप-दर्शनके लिये उनसे आँखकी याचना और नेत्र पाकर भगवत्स्वरूप-दर्शनसे कृतार्थ होना (उद्योग. १३१ । १८-२१)। कुरुक्षेत्रमें कौरव- पाण्डवके पड़ाव पड़ जानेपर आगेके समाचारके विषयमें संजयसे पूछना ( उद्योग. १५९ । ३)। व्यासजीसे विजयसूचक लक्षणोंके विषयमें पूछना ( भीष्म० ३। ६४)। संजयसे पृथ्वीकी महिमा पूछना (भीष्म०४।। ३-८)। संजयसे भीष्मकी मृत्युका समाचार सुनकर इनका विलाप ( भीष्म १४ अध्याय ) । संजयसे इनका युद्धका सारा वृत्तान्त सुनना ( भीष्मपर्वसे शल्यपर्व तक) अपनी सेनाको मारी जाती सुनकर इनकी चिन्ता (भीष्म ७६ अध्याय) । द्रोणाचार्यकी मृत्यु सुनकर इनका शोकसे व्याकुल होना (द्रोण. अध्याय ९ से १० तक)। इनके द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमाका वर्णन (द्रोण. ११ अध्याय ) । अर्जुनकी जयद्रथवधकी प्रतिज्ञापर इनका विलाप करना (द्रोण० ८५ अध्याय )। सात्यकिद्वारा अपनी सेनाका संहार सुनकर विषाद करना (द्रोण० ११४।१-४६)। इनके द्वारा भीमसेनके बलका वर्णन और अपने पुत्रोंकी निन्दा (द्रोण० १३५। १-२४)। संजयसे कर्णद्वारा अर्जुनपर शक्ति न छोड़े जानेका कारण पूछना (द्रोण. १८२१-१०)। कर्णकी मृत्यु सुनकर शोकाकुल होना ( कर्ण० ४ अध्याय ) । कर्णकी मृत्यु सुनकर विलाप करना और उसके वधका विस्तृत वर्णन करने के लिये संजयसे कहना (कर्ण० अध्याय ८ से १ तक)। कर्णवधका समाचार सुनकर मोहित होना (कर्ण० ९६ । ५४ ) । शल्य और दुर्योधनके वधका समाचार सुनकर मूर्छित होना (शल्य. । ३५-४०)। इनका विलाप करना और युद्धका समाचार पूछना (शल्य. २ अध्याय) । युद्धकी समाप्तिपर इनका विलाप (स्त्री. १ । १०--२१)। व्यासजीसे अपना दुःख बताकर विलाप करना (स्त्री०८। ६-११)। संजयकी बात सुनकर इनका मूर्छित होना (स्त्री०९।८)। स्त्रियों और प्रजालोगोंके साथ रणभूमिमें जानेके लिये नगरसे बाहर निकलना (स्त्री० १० । १६)। भीमसेनकी लोहमयी मूर्तिको तोड़ना (स्त्री. १२। १७)। पाण्डवोंको हृदयसे लगाना ( स्त्री०१३। १७) । युधिष्ठिरसे मरे हुए लोगोंकी संख्या और गतिक विषयमें प्रश्न करना (स्त्री० २६॥ ८, ११, १८)। युधिष्ठिरसे मरे हुए लोगोंके दाह-संस्कार करनेको कहना (स्त्री. २६।२१-२३)। युद्ध में मारे गये सगे-सम्बन्धियोंका श्राद्ध करना (शान्ति० ४२ । २-३) । दुर्योधनको शीलका उपदेश (शान्ति० १२४ अध्याय)। शोकविह्वल युधिष्ठिरको समझाना ( आश्व० १ । ८---२० ) । भाइयोसहित युधिष्ठिर तथा कुन्ती आदि देवियोंके द्वारा गान्धारीसहित धृतराष्ट्रकी सेवा ( आश्रम १ अध्याय)। पाण्डवोंका गान्धारीसहितधृतराष्ट्र के अनुकूल बर्ताव(आश्रम २ अध्याय)। भीमकी मर्मभेदिनी बातोसे व्यथित हुए धृतराष्ट्रका गान्धारीसहित वनमें जानेका उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध (आश्रम० ३ । १-४०)। राजा धृतराष्ट्रका उपवाससे दुर्बल होनेके कारण बोलनेमात्रसे For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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