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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५६ ) द्रोण महाभारतमें आये हुए द्रुपदके नाम---धृष्टद्युम्नपिता, पाञ्चाल, पाञ्चालनृप, पाञ्चालपति, पाञ्चालराज, पाञ्चाल्य, पार्षत, पृषदात्मज, सौमकि, यज्ञसेन आदि । द्रम-(१) एक प्राचीन राजा (आदि.१। २३३)। (२) महाभारतकालका एक राजा, जो शिथि नामक दैत्यके अंशसे प्रकट हुआ था (आदि० ६७ । ८)। (३) एक किन्नरोंके स्वामी, जो कुबेर-सभामें रहकर उनकी उपासना करते हैं (सभा० १० । २९)। ये भीष्मकपुत्र रुक्मीके गुरु थे ( उद्योग० १५८।३)। इन्होंने रुक्मीको विजय नामक धनुष दिया था (उद्योग. १५८ । ८)। द्रुमसेन-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो गविष्ठ नामक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि. ६६ । ३५)। यह शल्यका चक्र रक्षक था । युधिष्ठिरद्वारा इसका वध हुआ (शल्य. १२ । ५३)। (२) कौरव पक्षका योद्धा, धृष्टद्युम्नद्वारा इसका वध (द्रोण० १७० । २२)। द्रुहा-(१) ययातिके पुत्र, इनकी माताका नाम शर्मिष्ठा था (आदि० ७५ । ३५; आदि० ८३ । १०)। पिताद्वारा इनसे यौवनकी याचना तथा इनका पिताको अपनी युवावस्था देनेसे इनकार करना; अतः कुपित हुए पिताद्वारा इनको कभी भी प्रिय मनोरथकी सिद्धि न होने, अति दुर्गम देशोंमें रहने तथा राज्याधिकारसे वञ्चित होकर भोज' कहलानेका शाप (आदि० ८४ । २०-२२)। (२) पूरुवंशी राजा मतिनारके चार पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ९४ । १४)। द्रोण-(१) गङ्गाद्वारनिवासी महर्षि भरद्वाजके पुत्र, जो । बृहस्पतिके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि० ६७ । ६९)। एक दिन भरद्वाज मुनि गङ्गाजीमें स्नान करने के लिये गये, वहाँ घृताची अप्सरा पहलेसे ही स्नान करके वस्त्र बदल रही थी। उसका वस्त्र खिसक गया था। उस अवस्थामें उसे देखकर मुनिका वीर्य स्खलित हो गया । मुनिने उसे उठाकर एक द्रोण ( यज्ञ-कलश) में रख दिया था । उस द्रोणसे उत्पन्न होनेके कारण ही उस बालकका नाम 'द्रोण' हुआ । इन्होंने सम्पूर्ण वेदों और वेदाङ्गोंका अध्ययन किया था (आदि. १२९ । ३३-३८)। परशुरामजीसे इनका समस्त अस्त्र-विद्याओंका अध्ययन (आदि. १२९ । ६६)। महर्षि अग्निवेशके आश्रममें इनका द्रुपदके साथ अध्ययन ( आदि० १३०। ४०४२) । द्रुपदद्वारा इनको छात्रावस्थामें आश्वासन (आदि० १३० । ४६) । शरद्वान्की पुत्री कृपीसे इनका विवाह ( आदि. १३०। ४९)। कृपीके गर्भसे इनके द्वारा अश्वत्थामाका जन्म (आदि० १३०। ५०)। धनकी याचनाके लिये इनका द्रुपदके यहाँ जाना (आदि० १३० । ६२) । द्रुपदद्वारा इनका तिरस्कार ( आदि. १३० । ६४-७३)। द्रुपदसे तिरस्कृत होकर इनका हस्तिनापुरमें आकर कृपाचार्यके घर गुप्तरूपसे बास करना (आदि०१३० । ११)। इनका कौरव कमारोंकी वीटा (गुल्ली ) एवं अपनी अँगूठीको कुएँ मेंसे निकालना ( आदि. १३० । २९ )। कौरव-कुमारोंद्वारा भीष्मके प्रति इनके पराक्रमकी प्रशंसा ( आदि० १३० । ३६ )। भीष्मद्वारा इनका मत्कार एवं कौरव-राजकुमारोंको पढ़ानेके लिये इनसे अनुरोध ( आदि० १३० । ३९--७९)। इनका अर्जुनके प्रति अधिक वात्सल्य (आदि. १३१ । ७-८)। इनके द्वारा कौरवों एवं पाण्डवोंकी शिक्षा ( आदि० १३१ । ९)। इनके समीप अध्ययनके लिये कर्णका आगमन (आदि. १३१ । ११)। ये राजकुमारोंको तो कमण्डलु भर लानेको कहते और अश्वत्थामाको घड़ा भरनेको देते, वह जल्दी घड़ा भरकर आ जाता तो उसे अकेलेमें कोई अस्त्र-संचालनकी उत्तम विधि बताते ये (आदि. १३१ । १६-१७) । अर्जुनको अद्वितीय धनुर्धर बनानेके लिये इनका आश्वासन (आदि. १३१ । २७) । इनके द्वारा कौरवोंको विविध अस्त्रोंकी शिक्षा (आदि० १३१ । २९)। इनकी अनुपम अस्त्र-विद्याको सुनकर सहस्रों राजाओं तथा राजकुमारोंका इनके समीप अध्ययनके लिये आगमन (आदि. १३१ । ३०)। इनका धनुर्वेदके अध्ययनके लिये आये हुए निषादपुत्र एकलव्यको पढ़ाने के लिये इनकार करना ( आदि. १३१ । ३२ ) । अर्जुनकी प्रसन्नताके लिये इनका एकलव्यसे अँगूठा काटकर गुरुदक्षिणा देनेके लिये कहना ( आदि. १३१ । ५६ )। इनके द्वारा कौरव आदि समस्त छात्रोंकी परीक्षा ( आदि. १३१ । ६९)। ग्राहद्वारा इनपर आक्रमण और अर्जुनद्वारा ग्राहको मारकर इनका संकटसे उद्धार । इससे संतुष्ट हुए आचार्य द्रोणका अर्जुनको ब्रह्मशिर अस्त्रका दान (आदि. १३२ । १२१८)। राजकुमारोदारा अस्त्रकलाके प्रदर्शनके लिये इनकी धृतराष्ट्रसे अनुमति-याचना (आदि. १३३ । ३)। इनके द्वारा राजकुमारोंके अस्त्र-कौशल-प्रदर्शनके लिये विशाल प्रेक्षा-गृह ( रङ्ग-भवन ) का निर्माण ( आदि. १३३ । ८-१४)। समस्त दर्शकोंके जुट जानेपर आचार्य द्रोणका अपने पुत्रके साथ प्रेक्षा-गृहमें प्रवेश ( आदि. १३३ । १५-२०)। द्रोणद्वारा देवपूजन और ब्राह्मणोंसे मङ्गल कार्य-सम्पादन (आदि. ११३ । २१)। इन्हें दक्षिणारूपमें सुवर्ण, मणि, रत्न और नाना प्रकारके वस्त्रकी प्राप्ति ( आदि. १३३ । २१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। राजकुमारोंद्वारा आचार्य द्रोणकी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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