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इनका घोर युद्ध करके कौरवसेनाको पराजित करना ( आदि. १३७ । १२-२५) । इनका भीमसेन और अर्जुन के साथ युद्ध तथा पराजय । अर्जुनद्वारा इन्हें बंदी बनाकर द्रोणको अर्पण करना (आदि० १३७ । २८६३)। द्रोणका इन्हें आधा राज्य देकर और मित्र बने रहने के लिये कहकर छोड़ना और इनका उनके साथ अटूट मैत्रीकी इच्छा प्रकट करना (आदि० १३७ । ७०-७४) इनके द्वारा किये हुए द्रोणके असम्मानका एक ब्राह्मणद्वारा एकचक्रामें पाण्डवोंके प्रति वर्णन ( आदि. १६५ । ७-१५)। द्रोणविनाशक पुत्रकी प्राप्ति के लिये द्रुपदका ऋषियों और ब्राह्मणोंके आश्रमोंमें घूमना तथा ब्रह्मर्षि याज-उपयाजके पास पहुँचकर उपयाज ऋषिसे अपने उद्देश्य-सिद्धि के लिये प्रार्थना एवं उन्हें दस करोड़ धेनुका प्रलोभन देना ( आदि० १६६ । १-१२)। उपयाजका उनकी प्रार्थनाको अस्वीकार कर देना (आदि. १६६ । १३)। इनका द्रोणकी महिमा बताकर द्रोणान्तक पुत्रके लिये महर्षि याजसे प्रार्थना करना
और उनको एक अर्बुद धेनुका प्रलोभन देना ( आदि. १६६ । २२-३१)। इनको यज्ञकुण्डसे धृष्टद्युम्न' नामक पुत्र एवं कृष्णा' नाम्नी कन्याकी प्राप्ति (आदि. १६६ । ३९-४४ ) । लाक्षागृहमें पाण्डवोंकी मृत्यु होनेका समाचार सुनकर इनका शोक, अर्जुनके लिये इनकी चिन्ता तथा उन्हींके साथ द्रौपदीका विवाह करनेका इनका संकल्प (आदि. १६६ । ५६ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ४९३) । अपने पुरोहितद्वारा उनको पाण्डवोंके जीवित रहनेका आश्वासन और द्रौपदीके स्वयंवरके लिये अनुरोध (आदि०१६६ । दा. पाठ, पृष्ठ ४९३) द्रुपदने अर्जुन-को हूँढ़ निकालनेके लिये एक ऐसा दृढ़ धनुष बनवाया था, जिसे दूसरा कोई झुका भी न सके ( आदि. १८४ । ८-९)। इनकी स्वयंवरके समय लक्ष्यवेधके लिये घोषणा (आदि. १८४ । ११)। स्वयंवरमें आये हुए राजाओंद्वारा इनपर आक्रमण और पाण्डवोंद्वारा इनकी रक्षा (आदि. १८८। १२-१४; आदि० १८९ अध्याय)। अर्जुनके साथ कुम्भकारके घर द्रौपदीके चले जानेपर उसके सम्बन्धमें इनकी चिन्ता ( आदि. १९१ । १४-१८)। चिन्तित हुए द्रुपदको धृष्टद्युम्नका आश्वासन देना ( आदि. १९२ । ३-१३)। पाण्डवोंका परिचय जानने के लिये इनका अपने पुरोहितको आदेश ( आदि० १९२ । १४ )। पाण्डवोंका परिचय पानेके लिये इनका युधिष्ठिरसे प्रश्न (आदि० १९५। २-७)। युधिष्ठिरका द्रुपदको आश्वासन देना, 'द्रौपदीका विवाह किसके साथ हो'-इस प्रश्नको लेकर युधिष्ठिरके साथ इनका वार्तालाप और एक स्त्रीके अनेक पुरुषों के साथ
विवाहका विरोध (आदि. १९४ । ८-३२)। व्यासजीके पूछनेपर द्रौपदीके विवाह के सम्बन्धमें इनकी अपनी सम्मति (आदि. १९५ । ७-९) । पाण्डवों एवं द्रौपदीके पूर्वजन्मकी कथा सुनाकर व्यासद्वारा इनको दिव्य दृष्टिका दान (आदि० १९६ अध्याय)। इनके द्वारा पाण्डवोंको विपुल धनराशिकी दहे जरूपमें भेंट (आदि० २०६ । ९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। दिग्विजयके समय कर्णद्वारा इनकी पराजय ( वन. २५४ । ३)। धौम्य ऋषि पाण्डवोंद्वारा स्थापित अग्रिको लेकर उसकी रक्षाके लिये द्रुपदके ही यहाँ भेजे गये थे (विराट० ४ । २-३) । उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहमें इनका आगमन (विराट. ७२ । १७ )। राजाओंके पास रण-निमन्त्रण भेजने के लिये इनका प्रस्ताव (उद्योग. ४ । ८--२४)। अपने पुरोहितको दूत बनाकर कौरव-सभा भेजनेका प्रस्ताव (उद्योग० ४। २५)। पुरोहितको दौत्य-कर्मके लिये इनका अनुमति देना (उद्योग०६।१७)। एक अक्षौहिणी सेना लेकर इनका पाण्डवोंके पास आना ( उद्योग० ५७ । ४-५)। ये पाण्डव-सेनाके सात सेनापतियोंमेंसे एकके पदपर अभिषिक्त हुए थे ( उद्योग० १५७ । ११-१२)। उलूकसे दुर्योधनके संदेशका उत्तर देना ( उद्योग १६३ । ४१)। संतान प्राप्तिके लिये इन्हें महादेवजीसे वर-प्राप्ति ( उद्योग. १८७ । ५-६ ) । हिरण्यवर्माकी चढ़ाईका समाचार पाकर इनका पत्नीसे संकट निवारणका उपाय पूछना (उद्योग० १९० । १४--२१)। रानीकी सम्मतिसे देवाराधन करना (उद्योग० १९१ । ९)। हिरण्यवर्माको शिखण्डीकी परीक्षाके लिये संदेश देना (उद्योग. १९२ । २७) । शिखण्डीको द्रोणाचार्यके पास भेजकर उनसे धनुर्वेदकी शिक्षा दिलाना ( उद्योग. १९२ । ६०)। प्रथम दिनके संग्राममें जयद्रथके साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म०४५। ५५-५७) । द्रोणाचार्यसे पराजित होना (भीष्म. ७७ । ४८; भीष्म० १०४ । .२४-२५) । अश्वत्थामाके साथ इन्द्र-युद्ध (भीष्म. ११०।१६, भीष्म १११।२२-२७)। द्रोणाचार्यके साथ युद्ध (द्रोण० १४ । २६)। भगदत्तके साथ युद्ध (द्रोण. १४।४०-४२)। इनके रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । १२) । इनका बाहीकके साथ युद्ध (द्रोण० २५। १८-१९)। वृषसेनद्वारा इनकी पराजय (द्रोण. १६८ । २४) । द्रोणाचार्यद्वारा इनका वध (द्रोण० १८६ । ४३) । इनका श्राद्धकर्म ( शान्ति. ४२।५)। व्यासजीके आवाहन करनेपर अन्य परलोकवासी वीरोंके साथ ये भी गङ्गाजीके जलसे प्रकट हुए ये (आश्रम० ३२ । ८)। ये स्वर्गमें जाकर विश्वेदेवोंमें मिल गये (स्वर्गा० ५। १५)।
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