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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: देवीस्थान दूसरा मधुवटीके अन्तर्गत है । वहाँ देवता और पितरोंकी पूजा करके मनुष्य देवीकी आज्ञाके अनुसार सहस्र गोदानका फल पाता है ( वन० ८३ । ९४ ) । तीसरा मृगधूम तीर्थके बाद आता है । उसमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है ( वन० ८३ । १०२ ) । देवीस्थान - एक तीर्थ, जहाँ शाकम्भरी देवीका निवास स्थान है । वहाँ तीन दिनके शाकाहारसे बारह वर्षोंतक शाकाहार करनेका पुण्य फल प्राप्त होता है ( वन० ८४ । १३ ) । treaty - Toshi प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग ० १०१ । ११ ) । दैत्यसेना- दक्ष-प्रजापतिकी पुत्री और देवसेना की बहिन, जिसे केशी नामक राक्षसने हर लिया था (वन० २२४ । १) । दैव-एक प्रकारका विवाह ( अपने घरपर देवयज्ञ करके यज्ञान्तमें ऋत्विजको अपनी कन्याका दान करना दैव विवाह कहा गया है | ) यह विवाह ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य - इन तीनों वर्णोंमें ही ग्राह्य माना गया है ( आदि० ७३ । ८-१० ) । ( १५४ ) देवीसम्पत्ति - अभय आदि दिव्य गुणोंकी संज्ञा ( भीष्म ० ४० । १–३ ) । दैवीसम्पत्ति संसारसे मोक्ष दिलानेवाली मानी गयी है ( भीष्म० ४० । ५ ) । दौवालिक - एक देश, जहाँके राजा और निवासी राजसूययज्ञमें युधिष्ठिरके लिये भेंट ले आये थे ( सभा० ५२ । १८)। द्यु - ( देखिये - 'द्यौ' ) । धुति - एक देवी, इनके द्वारा अर्जुनके संरक्षणकी शुभकामना द्रौपदीने की थी ( वन० ३७ । ३३ ) । द्युतिमान - (१) मद्रदेश के एक राजा, जिनकी पुत्री विजयाको सहदेवने स्वयंवर में प्राप्त किया था ( आदि० ९५ । ८० ) । ( २ ) शाल्वदेश के एक राजा, जिन्होंने ऋचीकको राज्य प्रदान करके उत्तम लोक प्राप्त किया था ( शान्ति० २३४ । ३३; अनु० १३७ । २३) । (३) इक्ष्वाकुवंशीय मदिराश्वके महाभाग, महातेजस्वी, महान् धैर्यशाली और महाबली पुत्र, जिनके पुत्रका नाम सुवीर था ( अनु० २ । ९ )। धुमत्सेन - ( १ ) एक प्राचीन नरेश, जो बलवानोंके आदर्श समझे जाते थे ( आदि० १३८ । ५ ) | ये ही शाल्वदेश के धर्मात्मा राजा और सत्यवान् के पिता थे ( वन० २९४ । ७ ) । महाराज अश्वपतिको सत्यवान् के विवाह के लिये स्वीकृति देना ( वन० २९५ | १४ ) । सत्यवान् के साथ वन जानेके लिये सावित्रीकी प्रार्थना स्वीकार करना ( वन० २९६ । २७ ) । इनकी अंधी आँखों में देखनेकी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रुपद शक्तिका आना और इन महाबली नरेशका अपनी पत्नी शैव्याके साथ ऋषियोंके आश्रमोंमें जाकर सत्यवान्को ढूँढ़ना ( वन० २९८ । २ ) । सत्यवान् के वनसे न लौटने पर इनकी चिन्ता ( वन० २९८ । ८ । शाल्वदेशकी प्रजा के अनुरोधसे इनका राज्याभिषेक ( वन ० २९९ । ११) । सत्यवान् के साथ वार्तालाप (शान्ति ० २६७ अध्याय) । ( २ ) एक पर्वतीय राजा जिसके साथ भगवान् श्रीकृष्णने सहस्रों पर्वतोंको विदीर्ण करके युद्ध किया था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८२४) । ये युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । ३१ ) । द्यूतपर्व - सभापर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ४६ से ७३ तक ) । द्यो ( द्यु ) - आठ वसुओंमेंसे एक (आदि० ९९ । १५) | इनके द्वारा नन्दिनीके गुणोंका वर्णन (आदि० ९९ । १९२० ) । नन्दिनी ( गौ ) के अपहरण के लिये इनसे इनकी पत्नीकी प्रार्थना ( आदि० ९९ । २४ ) । इनके द्वारा नन्दिनीका अपहरण ( आदि० ९९ । २८ ) । वसिष्ठद्वारा इनको दीर्घकाल तक मनुष्यलोकमें रहनेका शाप ( आदि० ९९ । ३२–३९ ) । द्रविड़ ( या द्राविड़ ) -- एक दक्षिण भारतीय जनपद, जिसे दूतोंद्वारा संदेश देकर ही सहदेवने कर देने के लिये विवश कर दिया था ( सभा० ३१ । ७१ ) । द्रविण -- धर नामक वसुके पुत्र ( आदि० ६६ । २१ ) । द्राविड़ - एक जाति जो पहले क्षत्रिय थी, किंतु ब्राह्मणों की कृपादृष्टिसे वञ्चित होने के कारण ( स्वधर्मज्ञानशून्य होकर ) शूद्रभावको प्राप्त हो गयी ( अनु० ३३ । २२-२३ )। द्रुपद - पाञ्चालदेश के राजा यज्ञसेन, जो मरुद्गणोंके अंशसे उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ६८ ) । ये महाराज पृषत्के पुत्र थे (आदि० १२९ । ४१ ) । भरद्वाजमुनिके आश्रममें द्रोणके साथ इनका खेलना और अध्ययन करना ( आदि० १२९ । ४२ ) । पृषत्की मृत्युके पश्चात् इनका उत्तरपाञ्चालके राज्यपर अभिषेक हुआ ( आदि० १२९ । ४३ ) । इनके यहाँ द्रोणका आना और इन्हें अपना सखा या मित्र कहने के कारण इनके द्वारा फटकारा जाना (आदि० १३० । १–११) । द्रोणाचार्यद्वारा द्रुपद - के अग्निवेशके समीप धनुर्वेदाध्ययनसम्बन्धी वृत्तान्तकी भीष्म के समक्ष चर्चा ( आदि० १३० । ४३ ) । अध्ययनावस्था में इनके द्वारा द्रोणको दिये गये आश्वासनकी चर्चा ( आदि० १३० । ४६-४७ ) कौरवोंका आक्रमण सुनकर और उनकी विशाल सेनाको अपनी आँखों देख पाञ्चालराज द्रुपदका भाइयोसहित निकलना और शत्रुओंपर बाणोंकी बौछार करना ( आदि० १३७ । १०-११ ) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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