________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रोण
( १५७ )
द्रोण
-
यथोचित पूजा ( आदि. १३३ । २३ के बाद दाक्षिणात्य पाट)। इनकी आज्ञासे राजकुमारोंका अस्त्र-कौशलप्रदर्शन (आदि० १३३ । २३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। भीम और दुर्योधनके गदा-युद्धको रोकनेके लिये इनका अश्वत्थामाको आदेश (आदि० १३४ । ४)। इनके द्वारा रङ्गभूमिमें अर्जुनकी प्रशंसा और उनकी ओर दर्शकोंकी दृष्टिको आकर्षित करना (आदि. १३४ । ७)। आचार्यको प्रणाम करके इनकी आज्ञा ले कर्णद्वारा भी अस्त्र-कौशल-प्रदर्शन (आदि० १३५ । १२) । द्रुपदको बंदी बनाकर लाने के लिये इनका शिष्योंको आदेश देना और अर्जुनद्वारा बंदी बनाकर लाये हुए उपदको उनका आधा राज्य देकर उन्हें छोड़ देना (आदि. १३७ अध्याय)। ब्रह्मशिर नामक अस्त्रकी परम्परा तथा उसके उपयोगका नियम बतलाकर इनका वह अस्त्र अर्जुनको देना और युद्धभूमिमें विरोधी होनेपर अपने साथ भी लड़नेके लिये उनसे वचन लेना (आदि. १३८ । ९--१४)। इनके जन्म, अध्ययन तथा द्रुपदद्वारा प्राप्त हुए तिरस्कारका एकचक्रा नगरीमें ब्राह्मणद्वारा पाण्डवोंके प्रति वर्णन(आदि. १६५ । १-१५)। धृष्टद्युम्नको अस्त्र-शिक्षा देनेकी इनकी उदारता ( आदि० १६५१५५)। द्रौपदी तथा पाण्डवोंके लिये उपहार भेजने द्रौपदीसहित उनको आदरपूर्वक द्रुपदनगरसे बुलाने एवं उनका आधा राज्य उन्हें दे देने के लिये इनका धृतराष्ट्रसे अनुरोध (आदि० २०३ । १----१२)। कर्णको इनकी फटकार ( आदि० २०३ । २६-२८)। ये युधिष्ठिरके राजसूय-यज्ञमें आये थे (सभा० ३४ । ८)। युधिष्ठिरका आचार्यके चरणोंमें प्रणाम करना और अपने यज्ञमें उनसे अनुग्रह करनेको कहना (सभा० ३५ । १-२)। राजसूय-यज्ञमें कौन काम हुआ और कौन नहीं हुआ' इसकी देख-रेखका कार्य द्रोण और भीष्मको सौंपा गया था (सभा० ३५ । ६)। युधिष्ठिर और शकुनिमें जुएका खेल आरम्भ होनेपर धृतराष्ट्रको आगे करके वहाँ द्रोणाचार्य भी आये थे (सभा० ६० । २)। आचार्य द्रोण जुआ खेलना पसंद नहीं करते थे ( वन० ९ । २)। इनमें चारों अङ्गोंसे पूर्ण धनुर्वेद विद्यमान था ( वन० ३७ । ४)। पाण्डवोंकी खोजके विषयमें दुर्योधनको इनकी सम्मति (विराट० २७ अध्याय)। बृहन्नला-वेषमें युद्ध के लिये आते हुए अर्जुनके पराक्रमका इनके द्वारा वर्णन (विराट. ३९ अध्याय)। अर्जुनका शङ्खनाद सुनकर उन्हें अर्जुन ही समझकर कौरवोंसे अपशकुनोंका वर्णन (विराट० ४६ । २४-३३)। इनके द्वारा दुर्योधनकी रक्षाका प्रयत्न (विराट० ५१ । १८--२१)। अर्जुनके साथ इनका युद्ध और घायल होकर पलायन (विराट० ५८ अध्याय)।
इनके द्वारा भीष्मकी बातोंका अनुमोदन ( उद्योग ४९ । ४४-३६)। श्रीकृष्णके कथनका समर्थन करते हुए दुर्योधनको समझाना (उद्योग० १२५ । १०--
७)। दुर्योधनको पुनः समझाना ( उद्योग. १२६ अध्याय)। दुर्योधनको युद्ध न करने के लिये समझाना (उद्योग० अध्याय १३८ से १३९ तक)। भीष्मद्वारा कहे गये कर्णके निन्दासूचक वाक्योंका इनके द्वारा समर्थन (उद्योग १६८ । ८-९)। दुर्योधनके पूछनेपर एक मासमें पाण्डव. सेनाके नाश करनेकी अपनी शक्तिका कथन ( उद्योग. १९३ । १८)। आचार्य द्रोणके रथ और घोड़ोंका वर्णन (भीष्म २० । ११)। युधिष्ठिरको युद्धकी आशा देकर उनकी शुभकामना करना और उन्हें अपनी मृत्युका उपाय बतलाना (भीष्म० ४३ । ५३-६६)। प्रथम दिनके संग्राममें धृष्टद्युम्नके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५।३१-३४)। धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध में इनका अद्भुत पराक्रम ( भीष्म० ५३ अध्याय)। द्रुपदपर विजय और अद्भूत पराक्रम प्रकट करना (भीष्म ७७ । ४८-६७)। इनके द्वारा धृष्टद्युम्नकी पराजय (भीष्म ७७ । ६९-७०)। इनके द्वारा विराट-पुत्र शङ्खका वध और विराटकी पराजय (भीष्म ८२ । २३.२४)। भीमसेनके प्रहारसे इनका मूञ्छित होना (भीष्म० ९४ । १९) । अर्जुनके साथ इनका युद्ध (भीष्म० १०२। ६-२२)। इनके द्वारा द्रुपदकी पराजय (भीष्म० १०४ । २४-२५ ) | युधिष्ठिरके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११० । १७ भीष्म० १११। ५०-५२) । अश्वत्थामासे अशुभ उत्पातोंका वर्णन और उसे भीष्मकी रक्षाके लिये धृष्टद्युम्नसे युद्ध करनेका आदेश ( भीष्म० ११२ अध्याय )। धृष्टद्युम्नके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११६।४५-५४)। भीष्मके गिरनेके बाद प्रधान सेनापतिके पदपर इनका अभिषेक (द्रोण. ७।५)। धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध (द्रोण. ७ । ४८-- ५४)। इनका अद्भुत पराक्रम और मृत्युकी चर्चा (द्रोण. ८।८-३२)। युधिष्ठिरको जीवित पकड़नेके लिये दुर्योधनको वर देना (द्रोण. १२ । २०-२०)। इनका अद्भुत पराक्रम (द्रोण. १३ । १९-२९ द्रोण. १४। १-१९)। द्रुपदपर आक्रमण (द्रोण. १४ । २६)। इनके द्वारा कुमारकी पराजय (द्रोण. १६ । २५)। युगन्धरका वध (द्रोण० १६। ३.)। इनके द्वारा व्याघ्रदत्त और सिंहसेनका वध (द्रोण. १६ । ३७)। अर्जुनके साथ युद्ध और अपनी सेनाको लौटा लेना (द्रोण०१६ । ५०-५१)। दुर्योधनसे अर्जुनको युद्धस्थलसे दूर हटानेके लिये कहना (द्रोण० १७ । ३-१०)। इनके द्वारा वकका वध (द्रोण० २१ ।
For Private And Personal Use Only