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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवराज हुए इसको आश्वासन देना ( आदि० ७९ । १-७ ) । इसकी दानवोंके बीच में निवास करनेसे अरुचि, विद्वानों के लिये धनके लोभसे कटुवचन सहने की निन्दा ( आदि० ७९ । ८ - १३ तथा दाक्षिणात्य पाठ ) । शुक्राचार्यका अपनी पुत्री देवयानी के प्रति किये गये अनुचित बर्तावको असह्य बताना और देवयानीको संतुष्ट करने के लिये वृषपर्वाको प्रेरित करना (आदि० ८० । ९-१२ ) । वृषपर्वाके मुहमाँगी वस्तु देनेकी प्रतिज्ञा करनेपर एक हजार कन्याओंके साथ शर्मिष्ठाके आजीवन अपनी दासी बनकर रहनेके लिये उसके पिता वृषपर्वासे इसकी माँग ( आदि० ८० । १६ ) । शर्मिष्ठाद्वारा दासीभाव स्वीकार करनेपर नगर में जानेके लिये इसकी स्वीकृति ( आदि० ८० । २६ ) । सखियोंके साथ वनमें क्रीड़ा करती हुई शर्मिष्ठासेवित देवयानीका ययातिको दर्शन ( आदि० ८१ । १–७ ) | ययातिके पूछनेपर देवयानीका उन्हें शर्मिलासहित अपना परिचय देना और उनसे अपना पति बनने के लिये प्रार्थना करना ( आदि० ८११८१७ ) । ययातिका ब्राह्मणकी महिमा बताते हुए अपनेको ब्राह्मण कन्यासे विवाहका अनधिकारी बताना और देवयानी के पिताकी आज्ञाके बिना उसे स्वीकार न कर सकनेका निश्चय प्रकट करना ( आदि० ८१ । १८२६) । ययातिके साथ अपने विवाह के लिये इसकी अपने पिता से प्रार्थना (आदि० ८१ । ३० ) । पिताद्वारा इसका यत्रातिको समर्पण ( आदि० ८१ । ३४ ) । इसका ययाति के साथ विधिपूर्वक विवाह एवं पतिगृहगमन ( आदि० ८१ । ३६-३८ ) | देवयानीका विहार और दीर्घकालतक आनन्दोपभोग ( आदि ८२ । १-४ )। इसका गर्भ धारण और प्रथम पुत्रका जन्म (आदि० ८२ ॥ ( १५२ ) ५ ) । शर्मिष्ठा की पुत्र प्राप्ति से देवयानीको चिन्ता और किसी श्रे ऋषिसे उसे संतानकी प्राप्ति हुई यह सुनकर इसका क्रोधरहित हो महलमें लौट जाना ( आदि० ८३ । १ - ७ ) | ययतिद्वारा देवयानीके यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्रों की उत्पत्ति (आदि० ८३ | ९; ७५ | ३५ ) | ययातिसे शर्मिष्ठाको पुत्र हुए हैं, इस रहस्यका बालकोंद्वारा ही भेदन होनेसे देवयानीका शर्मिष्ठाको फटकारना और ययातिपर रुष्ट हो वहाँसे अपने पिताके घर जाना ( आदि० ८३ । ११ - २६ ) । इसके द्वारा पितासे ययातिके असद्वर्तावका निवेदन और इसके पिताद्वारा राजाको वृद्ध होनेका शापदान ( आदि० ८३ । २८-३१)। महाभारत में आये हुए देवयानीके नाम - औशनसी, भार्गवी, शुक्रतनया आदि । देवराज-एक राजा, जो या उपस्थित हो सूर्यपुत्र देवसेना यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । २६ ) । देवरात - ( १ ) युधिष्ठिरकी सभा में विराजमान होनेवाले एक राजा ( सभा० ४ । २६) । ( २ ) विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५० ) । वास्तवमें ये ऋचीक ( अजीगर्त ) के महातपस्वी पुत्र शुनःशेप हैं। ये एक यज्ञ में पशु बनाकर लाये गये थे। विश्वामित्रने देवताओं को संतुष्ट करके इन्हें छुड़ाया था, इसलिये ये विश्वामित्र के पुत्रभावको प्राप्त हुए। देवताओंके देने से इनका नाम देवरात हुआ ( अनु० ३ । ६-८ ) । देवल- ( १ ) एक सुप्रसिद्ध ऋषि जो प्रत्यूष नामक वसु पुत्र थे ( आदि० ६६ । २६) । (२) एक देवविद्याके पारङ्गतऋषि, जो महर्षि धौम्पके अग्रज थे और जनमेजयके सर्पसत्र के सदस्य बनाये गये थे ( आदि० ५३ | ८६ आदि० १८२ । २ ) । हस्तिनापुर जाते समय मार्ग में श्रीकृष्ण से इनका मिलना ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) | युद्ध के बाद युधिष्ठिरके पास आना ( शान्ति० १ । ४ ) । अपनी कन्या सुवर्चलाके विवाह के विषय में इनकी चर्चा, अपनी कन्याके स्वयंवर के लिये भुनिकुमारोंको बुलवाना तथा अपनी कन्याको श्वेतकेतु के हाथ में सौंपना (शान्ति० २२० अ० दाक्षिणात्य पाठ ) । देववन-एक पुण्यक्षेत्र, जहाँ बाहुदा और नन्दा नदी बहती हैं (वन० ८७ । २६ ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवव्रत - गङ्गाके गर्भ से शान्तनुद्वारा उत्पन्न (आदि० १०० । २१ ) | ( देखिये 'भीष्म' ) देवशर्मा - एक ऋषि, जो जनमेजय के सर्पसत्र के सदस्य बनाये ये थे ( आदि० ५३ । ९ ) । ये महाभाग्यशाली ऋषि थे; इनकी पत्नीका नाम रुचि था, जो इस पृथ्वीपर अद्वितीय सुन्दरी थी ( अनु० ४० | १६) । इनका अपने शिष्य विपुलको अपनी पत्नीकी रक्षाका भार सौंपकर यज्ञके लिये जानेको उद्यत होना (अनु० ४० । २२-२३) । विपुलके पूछने पर उसे इन्द्रका स्वरूप बताना ( अनु० ४० | २८-३८ ) । इनका अपने आश्रमपर लौटना और विपुलको वर देना (अनु० ४१ । २८-३४ ) । विपुलको दिव्य पुष्प लाने के लिये भेजना ( अनु० ४२ । १२ ) । विपुलको निर्दोष बताकर समझाना ( अनु० ४३ | ४ - १६) । ये उत्तर दिशाका आश्रय लेकर रहनेवाले ऋषि हैं ( अनु० १६५ । ४६ ) । देवस - एक यज्ञका नाम ( वन० ८४ । ६८ ) । देवसम - एक पर्वत, जहाँ अगस्त्य के शिष्यका आश्रम है ( वन० ८८ । १७ ) । देवसेना - दक्षप्रजापतिकी पुत्री, दैत्यसेनाकी बहिन, जिसका केशी नामक राक्षसद्वारा अपहरण होनेपर इन्द्रद्वारा उद्धार For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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