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देवकुण्ड
देवयानी
देवकुण्ड (देवहद)-(१) एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे देवमत-एक प्राचीन महर्षि, जिनका नारदजोके साथ
मनुप्य अश्वमेध यशका फल और परमसिद्धि पाता है प्राणों के विषयमें संवाद हुआ (आदि० २४ अध्याय)। (वन० ८५ । २०)। (२) कृष्णयेणाके जलसे उत्पन्न देवमित्रा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य. ४६ । हुए रमणीय देवकुण्डमें, जिसे जातिस्मरहद' भी कहते हैं, १४)। स्नान करनेसे मनुष्य जातिस्मर (पूर्वजन्मकी बातोंको
देवमीढ-ययातिपुत्र यदुके वंशमें विख्यात एक यादव, याद करनेवाला) होता है (वन० ८५ । ३७-३८)।
जो शूरके पिता और वसुदेवके पितामह थे (द्रोण. देवकट-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेवाला मनुष्य अश्वमेध
१४४ । ६)। यज्ञका फल पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है।
देवयजन-देवताओंका यशस्थान प्रयाग, जहाँ काशिराजकी (वन० ८४ । १४१)।
कन्या अम्याने कठोर व्रतका आश्रय ले स्नान किया था देवग्रह-एक कष्टप्रद देव-सम्बन्धो ग्रह, जिसे जागते या (उद्योग. १८६ । २७ )। सोते में देखकर मनुष्य पागल जो जाता है (वन० २३० ।
देवयाजी-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७.)। देवदत्त-अर्जुनका दिव्य शङ्ख (सभा०३।८)। यह
देवयानी-शुक्राचार्य की प्यारी पुत्री ( आदि. ७६ । शङ्ख मयासुरने विन्दुसरोवरसे लाकर अर्जुनको दिया था
१५)। विना कनके ही गौओंको लोटकर आयी देख (सभा० ३ । १.-.-२१) । श्वेत घोड़ोंसे जुते रथपर
देवयानीके मनमें उनके मारे जाने की आशङ्का और
'कचके बिना मैं जीवित नहीं रह सकती' ऐसा कहकर बैठे हुए अर्जुनने अपना देवदत्त नामक शङ्ख फूंका (भीष्म० २५ । १४-१५)।
उसका पितासे कचको बुलानेका अनुरोध ( आदि. देवदारुवन-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करने का विशेष फल
७६ । २०-३२)। दूसरी बार भी देवयानीके अनु(अनु० २५ । २७)।
रोधसे शुक्राचार्यद्वारा कचको जीवनदान (आदि० ७६ । देवदूत-देवताओंका सुविख्यात दूत, जिसका सायं-प्रातः
४२ )। तीसरी बार पुनः कचको जीवित करनेके स्मरण करनेसे पाप दूर होता है (अनु० १६५ । १४)।
लिये देवयानीका आग्रह (आदि० ७६ । ४५-५०)। देवताओंने देवदूतको आज्ञा दी, तुम युधिष्ठिरको इनके
इसका कचसे पाणिग्रहणके लिये अनुरोध ( आदि. सुहृदोंका दर्शन कराओ (स्वर्गा०२।१४) । राजा
७७ । २-११)। प्रार्थनाके अस्वीकृत होनेपर इसके द्वारा और देवदूत साथ-साथ गये । देवदूत आगे-आगे चला
कचको शाप (आदि० ७७ । १७)। कचद्वारा इसको
शाप ( आदि० ७७ । १९-२०)। इसके द्वारा इसका और राजा उसके पीछे-पीछे ( स्वर्गा० २ । १५.१६)। युधिष्ठिरके यह पूछनेपर कि अभी कितनी दूर चलना है,
वस्त्र पहन लेनेके कारण शर्मिष्ठाको फटकार ( आदि. देवदूत लोट पड़ा और बोला---'बस, यहींतक आपको
७८ । ८)। शर्मिष्ठाद्वारा भर्सनापूर्वक इसका कुएं में आना था' ( स्वर्गा० २ । २८)। युधिष्ठिरके लौट
गिराया जाना ( आदि०७८ । ९-१३) | इसकी राजा
ययातिसे भेंट, वार्तालाप और राजा ययातिके द्वारा इसका जानेकी आज्ञा देनेपर देवदूत लौटकर, देवराज इन्द्रके पाम चला गया ( स्वर्गा० २ । ५१-५३ )।
कपसे उद्धार, कुएँसे निकलने पर इसके द्वारा राजा
ययातिसे अपना पाणिग्रहण करनेके लिये प्रार्थना तथा देवनदी-एक नदी, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी
ब्राह्मणकन्या होनेके कारण यथातिका इसकी प्रार्थनाको उपासना करती है (सभा० ९ । १९)।
अस्वीकार करना ( आदि० ७८ । १४-२४) । घूर्णिका देवपथ-एक तीर्थ, जहाँ जानेसे देवसत्रका पुण्य प्राप्त होता
नामक धायके द्वारा इसका वृषपर्वाके नगरमें न जानेके है (वन० ८५ । ४५)।
लिये अपने पिताको संदेश देना (आदि० ७८ । २५देवपुष्करिणी-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ जानेमात्रसे मनुष्य २७)। शर्मिष्ठाने मेरी पुत्रीको मारा है, यह सुनकर
कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और अश्वमेध यज्ञका फल पाता पिताका इसे खोजते हुए वनमें जाना तथा इसे हृदयसे है ( वन० ८४ । ११८)।
लगाकर सान्त्वना देना (आदि. ७८ । २८-३१)। देवप्रस्थ-उत्तर दिशाके पर्वतीय देशका एक प्राचीन शर्मिष्ठाके द्वारा किये हुए अपमानका इसके द्वारा अपने नगर, जहाँ सेनाविन्दुकी राजधानो थी ( सभा० २७ । पिता शुक्राचार्यके समक्ष वर्णन ( आदि० ७८ । ३१
३६) । शुक्राचार्यका इसके समक्ष अपने शक्तिका देवभ्राट-एक तेजस्वी देवता, जो रविके.
कथन और इसे सान्त्वना-प्रदान ( आदि. ७८ । पिता हैं (आदि०१।४२-४३)।
३७-४१)। शुक्राचार्यका सहनशीलताकी प्रशंसा करते
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.. मोतिपत्र और मभाटके
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