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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५० ) देवकी . दृढ (१) ( दृढवर्मा ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( देखिये (आदि० ७५ । २५) । (२) एक राजा, जिन्हें ___ दृढवर्मा)। पाण्डवोंकी ओरसे रण-निमन्त्रण भेजनेका विचार किया दृढ (२) (दृढक्षत्र ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( देखिये गया था ( उद्योग. ४ । २३)। (३) एक ब्रह्मर्षि, दृढक्षत्र)। जो सदा दक्षिण दिशामें निवास करते हैं (अनु० १६५। दृढक्षत्र ( दृढ)-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक ( आदि. ४०)। ( दक्षिण दिशावासी ऋषियोंका वर्णन तीन ६ ७ ९९आदि. ११६ । ८)। भीमसेनद्वारा स्थानों में आता है। सभी जगहोंके नाम किञ्चित् अन्ताके साथ प्रायः मिलते हैं। इन्हें देखनेसे दृढव्य, दृढव्रत और इसका वध (द्रोण. १५७ । १७-१९)। दृढायु तीनों नाम एक ही ऋषिके जान पड़ते हैं ) दृढधवा-एक पूवंशीय क्षत्रिय, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें उपस्थित था (आदि० १८५। १५)। दृढायुध ( चित्रायुध )-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक ( आदि. ६७ । ९९; आदि. ११६।८)। चित्रायुध दृढरथ ( दृढरथाश्रय )-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से नामसे इसका वध (द्रोण १३६ । २०-२२)। एक ( आदि० ६७ । १०४)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १५७ । १७-१९)। (२) प्रातःसायं दृढाश्व-इक्ष्वाकुवंशीय महाराज कुवलाश्वके पुत्र । ये धुन्धुस्मरण करनेयोग्य एक नरेश (अनु. १६५। ५२)। राक्षसकी क्रोधाग्निमें दग्ध होनेसे बच गये थे (वन. दृढरथाश्रय (दृढरथ)-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि. २०४।४०)। ११६ । १२)। ( देखिये दृढ़रथ)। दृढेयु-एक पश्चिम दिशानिवासी ऋषि (अनु० १५० । दृढवर्मा ( दृढ )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक ( आदि० ३६)। ६७ । ९९; आदि. ११६ । ८)। भीमसेनद्वारा इसका दृढेषुधि-एक प्राचीन राजा ( आदि० । । २३८)। वध (द्रोण. १३७ । २०-३०)। दृषद्वती-कुरुक्षेत्रकी दक्षिणी सीमापर स्थित एक नदी, जिसके जलका सेवन वनवासी पाण्डवोंने किया था (वन. दृढव्य-एक महर्षि, जो धर्मराजके सात ऋत्विजोंमेंसे एक ५।२)। इसके तटपर भगवान् शङ्करने युधिष्ठिरको हैं, जो सदा दक्षिण दिशाका आश्रय लेकर रहते हैं उपदेश दिया था (सभा० ७८ । १५)। दृषद्वतीके (अनु० १५० । ३४-३५)। उत्तर कुरुक्षेत्रमें रहना स्वर्गनिवासके तुल्य है (वन० दृढवत-एक ब्रह्मर्षि, जो सदा दक्षिण दिशाका आश्रय ८३ । ४, २०४) । दृषद्वतोमें स्नान करके देवता-पितरोंलेकर रहते हैं (शान्ति० २०८ । २८-२९)। का तर्पण करनेसे मनुष्य अतिरात्र और अग्निष्टोम यज्ञका दृढसंध ( शत्रुञ्जय )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक फल पाता है ( वन० ८३ । ८७-८८)। (आदि. ६७ । १००, आदि० ११६ । ९)। भीमसेन- दृषदान-पुरुवंशीय राजा संयातिके श्वशुर, इनकी पुत्रीका द्वारा शत्रुञ्जय नामसे इसका वध (द्रोण. १३७ । नाम वराङ्गी था ( आदि० ९५ । १४)। २०-३०)। देवक-(१) इन्द्र के समान कान्तिमान् एक नरेश, जो दृढसेन-पाण्डवपक्षका एक योद्धा, द्रोणाचार्यद्वारा इसका किसी गन्धर्वराजके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि.६७ । वध (द्रोण० २१ । ५२)। ६८)। ये उग्रसेनके भाई, देवकी के पिता और वसुदेव. दृढस्यु-मद्दर्षि अगस्त्यद्वारा लोपामुद्राके गर्भसे उत्पन्न । जीके श्वशुर थे (सभा० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य ये अपनी माताके गर्भ में सात वर्षातक पले और बढ़े थे । पाठ, पृष्ठ ७३१)। इनकी पुत्री देवकीके स्वयंवरमें सात वर्ष बीतनेपर अपने तेज और प्रभावसे प्रज्वलित सम्पूर्ण क्षत्रिय एकत्र हुए थे (द्रोण १४४ । ९)। हुए ये उदरसे बाहर निकले । दृढस्यु महाविद्वान्, महा (२)एक राजा, जिनके यहाँ ब्राह्मणद्वारा शुद-जातीय तेजस्वी और महातपस्वी थे | ये जन्मकालसे ही एक कन्या थी, जिसका विदुरजीके साथ विवाह हुआ था उपनिषदोंसहित सम्पूर्ण वेदोंका स्वाध्याय करते से जान (आदि० ११३ । १२-१३)। (३) एक राजा, जिन्हें पड़े । बाल्यावस्थासे ही इध्म ( समिधा) का भार वहन पाण्डवोकी ओरसे रण-निमन्त्रण देनेका विचार किया गया करनेके कारण इनका नाम 'इध्मवाह हो गया था था ( उद्योग ।। १७)। (बन० ९९ । २५-२७)। देवकी-उग्रसेनके भाई देवककी पुत्री, वसुदेवकी पत्नी और दृढहस्त-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेसे एक (आदि. ६७ । भगवान् श्रीकृष्णकी माता (सभा० २२ । ३६ के बाद १०२, आदि० ११६ । १०)। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७३१-७३२)। इनके स्वयंवरमें दृढायु-( १ ) पुरूरवाद्वारा उर्वशीके गर्भसे उत्पन्न सम्पूर्ण क्षत्रिय एकत्र हुए थे (द्रोण० १४४ । ९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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