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(१५० )
देवकी
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दृढ (१) ( दृढवर्मा ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( देखिये (आदि० ७५ । २५) । (२) एक राजा, जिन्हें ___ दृढवर्मा)।
पाण्डवोंकी ओरसे रण-निमन्त्रण भेजनेका विचार किया दृढ (२) (दृढक्षत्र ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( देखिये
गया था ( उद्योग. ४ । २३)। (३) एक ब्रह्मर्षि, दृढक्षत्र)।
जो सदा दक्षिण दिशामें निवास करते हैं (अनु० १६५। दृढक्षत्र ( दृढ)-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक ( आदि.
४०)। ( दक्षिण दिशावासी ऋषियोंका वर्णन तीन ६ ७ ९९आदि. ११६ । ८)। भीमसेनद्वारा
स्थानों में आता है। सभी जगहोंके नाम किञ्चित् अन्ताके
साथ प्रायः मिलते हैं। इन्हें देखनेसे दृढव्य, दृढव्रत और इसका वध (द्रोण. १५७ । १७-१९)।
दृढायु तीनों नाम एक ही ऋषिके जान पड़ते हैं ) दृढधवा-एक पूवंशीय क्षत्रिय, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें उपस्थित था (आदि० १८५। १५)।
दृढायुध ( चित्रायुध )-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक
( आदि. ६७ । ९९; आदि. ११६।८)। चित्रायुध दृढरथ ( दृढरथाश्रय )-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से
नामसे इसका वध (द्रोण १३६ । २०-२२)। एक ( आदि० ६७ । १०४)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १५७ । १७-१९)। (२) प्रातःसायं
दृढाश्व-इक्ष्वाकुवंशीय महाराज कुवलाश्वके पुत्र । ये धुन्धुस्मरण करनेयोग्य एक नरेश (अनु. १६५। ५२)।
राक्षसकी क्रोधाग्निमें दग्ध होनेसे बच गये थे (वन. दृढरथाश्रय (दृढरथ)-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि.
२०४।४०)। ११६ । १२)। ( देखिये दृढ़रथ)।
दृढेयु-एक पश्चिम दिशानिवासी ऋषि (अनु० १५० । दृढवर्मा ( दृढ )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक ( आदि०
३६)। ६७ । ९९; आदि. ११६ । ८)। भीमसेनद्वारा इसका
दृढेषुधि-एक प्राचीन राजा ( आदि० । । २३८)। वध (द्रोण. १३७ । २०-३०)।
दृषद्वती-कुरुक्षेत्रकी दक्षिणी सीमापर स्थित एक नदी,
जिसके जलका सेवन वनवासी पाण्डवोंने किया था (वन. दृढव्य-एक महर्षि, जो धर्मराजके सात ऋत्विजोंमेंसे एक
५।२)। इसके तटपर भगवान् शङ्करने युधिष्ठिरको हैं, जो सदा दक्षिण दिशाका आश्रय लेकर रहते हैं
उपदेश दिया था (सभा० ७८ । १५)। दृषद्वतीके (अनु० १५० । ३४-३५)।
उत्तर कुरुक्षेत्रमें रहना स्वर्गनिवासके तुल्य है (वन० दृढवत-एक ब्रह्मर्षि, जो सदा दक्षिण दिशाका आश्रय
८३ । ४, २०४) । दृषद्वतोमें स्नान करके देवता-पितरोंलेकर रहते हैं (शान्ति० २०८ । २८-२९)।
का तर्पण करनेसे मनुष्य अतिरात्र और अग्निष्टोम यज्ञका दृढसंध ( शत्रुञ्जय )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक फल पाता है ( वन० ८३ । ८७-८८)।
(आदि. ६७ । १००, आदि० ११६ । ९)। भीमसेन- दृषदान-पुरुवंशीय राजा संयातिके श्वशुर, इनकी पुत्रीका द्वारा शत्रुञ्जय नामसे इसका वध (द्रोण. १३७ ।
नाम वराङ्गी था ( आदि० ९५ । १४)। २०-३०)।
देवक-(१) इन्द्र के समान कान्तिमान् एक नरेश, जो दृढसेन-पाण्डवपक्षका एक योद्धा, द्रोणाचार्यद्वारा इसका
किसी गन्धर्वराजके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि.६७ । वध (द्रोण० २१ । ५२)।
६८)। ये उग्रसेनके भाई, देवकी के पिता और वसुदेव. दृढस्यु-मद्दर्षि अगस्त्यद्वारा लोपामुद्राके गर्भसे उत्पन्न ।
जीके श्वशुर थे (सभा० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य ये अपनी माताके गर्भ में सात वर्षातक पले और बढ़े थे ।
पाठ, पृष्ठ ७३१)। इनकी पुत्री देवकीके स्वयंवरमें सात वर्ष बीतनेपर अपने तेज और प्रभावसे प्रज्वलित
सम्पूर्ण क्षत्रिय एकत्र हुए थे (द्रोण १४४ । ९)। हुए ये उदरसे बाहर निकले । दृढस्यु महाविद्वान्, महा
(२)एक राजा, जिनके यहाँ ब्राह्मणद्वारा शुद-जातीय तेजस्वी और महातपस्वी थे | ये जन्मकालसे ही
एक कन्या थी, जिसका विदुरजीके साथ विवाह हुआ था उपनिषदोंसहित सम्पूर्ण वेदोंका स्वाध्याय करते से जान
(आदि० ११३ । १२-१३)। (३) एक राजा, जिन्हें पड़े । बाल्यावस्थासे ही इध्म ( समिधा) का भार वहन
पाण्डवोकी ओरसे रण-निमन्त्रण देनेका विचार किया गया करनेके कारण इनका नाम 'इध्मवाह हो गया था
था ( उद्योग ।। १७)। (बन० ९९ । २५-२७)।
देवकी-उग्रसेनके भाई देवककी पुत्री, वसुदेवकी पत्नी और दृढहस्त-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेसे एक (आदि. ६७ । भगवान् श्रीकृष्णकी माता (सभा० २२ । ३६ के बाद १०२, आदि० ११६ । १०)।
दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७३१-७३२)। इनके स्वयंवरमें दृढायु-( १ ) पुरूरवाद्वारा उर्वशीके गर्भसे उत्पन्न सम्पूर्ण क्षत्रिय एकत्र हुए थे (द्रोण० १४४ । ९)।
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