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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुर्विगाह उस कथनका स्मरण किया था, जिसे इन्होंने खीर के उच्छिष्ट भागको पैर में न लगानेके कारण इनसे कहा था ( मौसल ० ४। १९ ) । दुर्विगाह ( दुर्विष ) - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ११६ | ५ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( शल्य ० २६ । २० ) । (देखिये- दुर्विषह ) ( १४९ ) दुर्विभाग - एक देश, जहाँ के उत्तम कुलमें उत्पन्न क्षत्रिय राजकुमारोंने युधिष्ठिरको राजसूययज्ञके अवसरपर बहुत धन अर्पित किया था ( सभा० ५२ । ११ - १७ ) । दुर्विमोचन - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक, भीमसेनद्वारा इसका वध ( शल्य० २६ । १६ ) । दुर्बिरोचन - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । ९७ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १२७ । ६२ )। दुर्विषह- धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक, इसका दूसरा नाम दुर्विगाह था ( आदि० ११६ । ५ ) | यह द्रौपदीके स्वयंवर में गया था ( आदि० १८५ । १) । यह द्वैतवनमें गन्धर्वोद्वारा बंदी बनाया गया था ( वन० २४२ । १२ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( शल्य० २६ । २० ) । दुलिदुह - एक प्राचीन राजा ( आदि० १ । २३३ ) । दुष्कर्ण - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमें से एक ( आदि० ६७ । ९५६ आदि० ११६ । ३ ) । शतानीकद्वारा इसका पराजित होना ( भीष्म० ७९ । ४६ - ५२ ) । भीमसेनद्वारा वध (द्रोण० १५५ । ४० ) । दुष्पराजय ( दुर्जय ) - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ११६ । ९ ) । द्वैतवन में गन्धर्वोद्वारा इसका बंदी बनाया जाना ( वन० २४२ । १२ ) । नीलके साथ युद्ध ( द्रोण० २५ । ४५ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १३३ । ४१-४२ ) । good (e) - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । ९६ ) भीमसेनद्वारा इसका वध ( शल्य० २६ । १८-१९ ) । दुष्प्रधर्षण - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । । यह द्रौपदी के स्वयंवर में गया था ( आदि० १८५ । १ ) । ९४ दुष्यन्त - ( १ ) पूरुवंश के एक सुप्रसिद्ध राजा, चक्रवर्ती सम्राट् ( आदि० ६८ । ३ ) । इनके राज्यकाल में प्रजाजनों की धार्मिकताका वर्णन ( आदि ० ६८ । ६-११ ) । इनकी भगवान् विष्णु के समान शारीरिक शक्ति, सूर्यतुल्य तेज एवं गदायुद्धकी कुशलता आदि० ६८ । दूषण ११-१३ ) । इनकी मृगयाका वर्णन ( आदि० ६९। १–३१ ) । इनका कण्वके मनोहर आश्रम में प्रवेश तथा वहाँकी शोभाका निरीक्षण ( आदि० ७० । २४ -५१ ) । कण्वके आश्रम में इनकी शकुन्तलासे भेंट | उसे अपना परिचय देकर उसके प्रति प्रेम प्रकट करना एवं उससे उसका परिचय पूछना ( आदि० ७१ । ३-१३ ) । शकुन्तलाके कण्वपुत्री कहकर परिचय देनेपर इनका मुनिको ऊर्ध्वरेता बताकर इस बातपर संशय प्रकट करना ( आदि० ७१ । १४-१७) । शकुन्तलाका इनसे अपने जन्मका विस्तृत परिचय देना ( आदि० ७१ । १८ से ७२ अध्यायतक ) । इनका शकुन्तलाको अपनी भार्या बनने के लिये प्रेरित करना और विवाह आठ भेद बतलाकर उसके साथ गान्धर्वविवाह का समर्थन करना (आदि० ७३ । १ - १४ ) । शकुन्तला के साथ इनका गान्धर्वविवाह और समागम तथा उसे राजधानी में शीघ्र बुला लेनेके लिये आश्वासन ( आदि० ७३ | १९–२१ और दा० पाठ ) । इनके द्वारा शकुन्तलाके गर्भसे भरतकी उत्पत्ति ( आदि० ७४ । १-२ ) । इनका शकुन्तलाको अस्वीकार करना ( आदि० ७४ । १९२० ) । शकुन्तलाका इनके प्रति धर्मकी याद दिलाना, असत्य भाषण और अधर्मसे भय बताना तथा पत्नी एवं पुत्रकी महिमा बतलाते हुए पुत्रको अङ्गीकार करने के लिये रोषपूर्ण अनुरोध करना ( आदि०७४ । २५७२ ) । इनके द्वारा शकुन्तलाकी भर्त्सना ( आदि० ७४। ७३–८१ ) । इनके प्रति शकुन्तलाद्वारा सत्य - धर्मकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन ( आदि० ७४ । १०११०७) । आकाशवाणीद्वारा इनके समक्ष शकुन्तला की उक्तिका समर्थन करनेपर इनका उसको अङ्गीकार करना ( आदि० ७४ । १०९ - १२६ ) । सौ वर्षोंतक राज्य भोगने के बाद इनका स्वर्गगमन ( आदि० ७४ । १२६ के बाद दा० पाठ ) | ये ईलिनके पुत्र थे, इनकी माताका नाम रथन्तरी था ( आदि० ९४ । १७ ) । ये यमकी सभा में रहकर सूर्यपुत्र भगवान् यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । १५ ) । इन्होंने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६४ )। ( २ ) पूरुवंशी महाराज अजमीढके द्वारा 'नीली' के गर्भ से उत्पन्न, इनके दूसरे भाईका नाम 'परमेष्ठी' था ( आदि० ९४ । ३२ ) । दुष्यन्त और परमेष्ठी सभी पुत्र 'पाञ्चाल' कहलाये ( आदि० ९४ । ३३ )। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूषण - जनस्थाननिवासी एक राक्षस, जो श्रीरामद्वारा मारा। गया ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७९४, कालम २; वन० २७७ । ४४ ) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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