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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दमघोष ( १३७ ) दमयन्ती दमघोष-चेदिदेशका एक राजा, जिसका पुत्र शिशुपाल था (आदि० १८६ । ८५)। दमन-(१) एक प्राचीन ब्रह्मर्षि ( वन० ५३।६)। पत्नीसहित विदर्भनरेश भीमद्वारा इनका सत्कार और प्रसन्न हुए मुनिका राजाको एक कन्या तथा तीन पुत्र प्रदान करना (वन० ५३ । ६-८)।(२) विदर्भ- नरेश भीमके पुत्र और दमयन्तीके भाई (वन० ५३ । ९)। (३) पौरवका पुत्र । धृष्टद्युम्नद्वारा इसका वध (भीष्म०६१।२०)। दमयन्ती-विदर्भनरेश भीमकी पुत्री, जो महर्षि दमनके आशीर्वादसे उत्पन्न हुई थी। इनके तीन भाई थे-- दम, दान्त और दमन (वन० ५३ । ९)। इनके प्रति प्रमदावनमें हंसद्वारा नलके गुणोंका वर्णन (वन० ५३ । २५-३०)। इनका देवदूत बनकर आये हुए नलसे वार्तालाप, उनका परिचय पूछना और महलके भीतर उनका आना कैसे सम्भव हुआ, यह जिज्ञासा प्रकट करना (वन० ५५ । २०-२१)। नलके मुखसे देवताओंके वरणका प्रस्ताव सुनकर दमयन्तीका हँसकर नलको अपना पाणिग्रहण करनेके लिये प्रेरित करना और उनके अस्वीकार करनेकी दशामें प्राण त्याग देनेका निश्चय प्रकट करना (वन० ५६ । १--४)। पुनः नलके द्वारा देवताओंके ही वरण करनेका अनुरोध होनेपर शोकाश्रु बहाती हुई दमयन्तीका देवताओंको नमस्कार करके नलको ही वरण करनेकी बात घोषित करना और स्वयंवर-सभामें देवताओंके समक्ष उन्हींको अपना पति चुननेका निश्चय बताना (वन० ५६ । १४-२१)। दमयन्तीका स्वयंवर सभामें आगमन (वन० ५७ । ८) । स्वयंवर-सभामें नलके रूपमें पाँच व्यक्तियों को देखकर निषधनरेश नलकी पहचान न होनेसे दमयन्तीका देवताओंकी शरणमें जाना और राजा नलकी प्राप्ति करानेके लिये उनसे प्रार्थना करना ( वन० ५७ । ८-.-२१)। देवताओंकी कृपासे दमयन्तीमें देव-सूचक लक्षणोंके. निश्चय करनेकी शक्तिका उत्पन्न होना तथा देवों और मनुष्योंके लक्षणोंपर विचार करके इनका नलको पहचान लेना (वन० ५७ । २४२५)। इनके द्वारा पतिरूपमें नलका वरण (वन० ५७ ।। २७-२८)। नलका इनमें अनन्य अनुराग बनाये रखनेका विश्वास दिलाना तथा दमयन्तीद्वारा नलका अभिनन्दन होना ( बन० ५७ । ३-३३ ) । नलके साथ दमयन्तीका विवाह, नव-दम्पतिका विहार और दमयन्तीके गर्भसे इन्द्रसेन तथा इन्द्रसेनाका जन्म (वन० ५७ । ४०-४६)। इनका राजा नलको जुएसे रोकनेका प्रयास (बन०६०। ५-७)। पराजयकी सम्भावना होनेपर इनका कुमार-कुमारीको बाणेयद्वारा पिताके यहाँ भेजना ( वन०६० । १९.२०)। दमयन्तीका पतिके साथ तीन दिनोंतक नगरके समीप केवल जल पीकर रहना और फल-मूलका आहार करते हुए वनमें जाना । पतिके विदर्भका रास्ता बतानेपर शङ्कित होना और उन्हें अपने साथ विदर्भनरेशके यहाँ चलनेके लिये कहना ( वन० ६५। ५-३६) । एक धर्मशालामें दमयन्तीका पतिके साथ सोना और उठनेपर उन्हें न देख उनके लिये विलाप करना ( वन० अध्याय ६२ से ६३ । १२ तक)। इन्हें अजगरका निगलना (वन० ६३ । २१)। इनके शापसे व्याधका भस्म होना (वन० ६३ । ३९)। इन्हें तपस्वियोंका आश्वासन (वन. ६४ । ९२-९५)। इनकी व्यापारी-दलसे भेंट तथा उन सबसे बात-चीत ( वन०६४।११४--१३२ )। जङ्गली हाथियोंके उपद्रवसे क्षतिग्रस्त व्यापारियोंका दमयन्तीको राक्षसी समझकर इसे मारनेका संकल्प करना और दमयन्तीका घने जङ्गलमें भागकर अपनी दशापर विलाप करना (धन. ६५। २७-३५)। दमयन्तीकी चिन्ता, इनका चेदिराजके नगरमें पहुँचकर उन्मत्ताकी भाँति घूमना और राजमाताद्वारा महलमें बुलवाया जाना (वन० ६५ । ४५---५२)। राजमाता और दमयन्तीकी बातचीत (वन०६५। ५३-६६)। राजमातासे शर्त करके दमयन्ती. का वहाँ उद्वेगरहित हो निवास करना(वन०६५।६७-७६)। सुदेव ब्राह्मणका चेदि-पुरीमें राजाके पुण्याहवाचनके समय सुनन्दाके साथ खड़ी हुई दमयन्तीको देखना इनके अनुपम सौन्दर्य तथा अन्य लक्षणोंद्वारा इन्हें पहचानना, इनकी दयनीय दशासे व्यथित होना । इन्हें सान्त्वना देनेके विचारसे इनके पास जाकर अपनेको इनके भाईका मित्र बताना और इनके माता-पिता तथा बच्चोंका कुशल-समाचार निवेदन करना । सुदेवको पहचानकर दमयन्तीका अपने सुहृदोंके समाचार पूछना और फूट-फूटकर रोना । सुनन्दाका दमयन्तीकी इस स्थितिके विषयमें राजमाताको सूचित करना और राजमाताका सुदेवको बुलाकर उनसे दमयन्तीका परिचय पूछना (वन० ६८ अध्याय)। सुदेवका दमयन्तीके विषयमें विस्तारपूर्वक सारी बातें बताना। उसकेललाटमें स्थित कमलके चिह्नकी ओर संकेत करनाराजमाताका उस चिह्नसे अपनी बहिनकी पुत्रीके रूपमें दमयन्तीको पहचानकर रोते-रोते गले लगाना । सुनन्दाका भी रोकर बहिन दमयन्तीको हृदयसे लगाना । दमयन्तीका मौसीसे विदर्भ जानेकी आशा माँगना और उनके द्वारा दी हुई सवारीपर बैठकर संरक्षक सेनाके साथ विदर्भ जाना । वहाँ पिताके घर पहुंचकर मातासे नलके अन्वेषणका म. ना. १८ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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