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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दण्डनीति ( १३६ ) डाला ( कर्ण० ८ । १-१३)। (२) धृतराष्ट्र के सौ ___द्वारा गङ्गा-तरपर परशुरामजीके क्षत्रिय-संहारसे बचाया पुत्रोंमेंसे एक (आदि. ६७ । १०३) । भीमसेनद्वारा और सुरक्षित रखा गया था (शान्ति०४९। ८.)। इसका वध (कर्ण. ८४ । ५-६)। (३) एक दधीच-(१) कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक परम पुण्यमय पावन राजा, जो पाण्डवोंका सहायक था। इसके नामके साथ । तीर्थ, जहाँ सरस्वतीपुत्र अङ्गिराका जन्म हुआ था । इसमें मणिमान्का भी नाम आता है। अतः इन दोनामे कुछ स्नान करनेसे अश्वमेधयज्ञका फल मिलता और सरस्वतीलगाव रहा होगा--ऐसा अनुमान होता है । ( सम्भव है। लोककी प्राप्ति होती है (वन ० ८३ । १८६-१८८)। ये दोनों परस्पर पिता-पुत्र, भाई-भाई या मित्र रहे हो ।) (२) महर्षि भृगुके पुत्र, इनके द्वारा वज्रनिर्माणके द्रौपदीके स्वयंवरमें भी दोनोंके नामों का एक साथ उल्लेख लिये देवताओंको अस्थिदान (वन० १०० । २१)। हुआ है (आदि. १८६। ७)। पाण्डवोंकी ओरसे सरस्वती नदीके द्वारा इन्हें सारस्वत नामक पुत्रकी इनको और मणिमान्को भी रण-निमन्त्रण भेजा गया था प्राति ( शल्य. ५१ । १३.१४)। इनके द्वारा (उद्योग० ४ । २०-२१)। ये दोनों द्रोणाचार्यके द्वारा सरस्वतीको वरदान ( शल्य. ५१ । १७-२४)। मारे गये है। दोनोंके नामोंका उल्लेख मरणकालमें एक देवताओंके द्वारा अस्थिके लिये याचना करनेपर इनका साथ हुआ है ( कर्ण० ६ । १३-१५)। (४) एक प्राण त्याग करना (शल्य. ५१ । २९-३०) । इनकी पाञ्चालयोद्धा, जो पाण्डवपक्षका वीर था। इसके घोड़ोंका अस्थियोंसे वन आदि अस्त्रोंका निर्माण ( शल्य. ५१ । वर्णन (द्रोण. २३ । ५३)। यह युधिष्ठिरका चक्ररक्षक ३१-३२)। ब्रह्माजीके पुत्र महर्षि भृगुने तीन तास्यासे था और कर्णद्वारा मारा गया था (कर्ण० ४९ । २७)। भरे हुए लोकमङ्गलकारी विशालकाय एवं तेजस्वी दण्डनीति-ब्रह्माजीके द्वारा निर्मित नीतिशास्त्रमें वर्णित दधीचको उत्पन्न किया था। ऐसा जान पड़ता था मानो दण्डविधान-विषयक नीतिविद्या (शान्ति० ५९ । ७६- सम्पूर्ण जगत् के सारतत्त्वसे उनका निर्माण हुआ हो । ये ७९) । दण्डनीतिके गुणोंका वर्णन (शान्ति०६९ । पर्वतके समान भारी और ऊँचे थे। इन्द्र इनके तेजसे ७५-१०५)। सदा उद्विग्न रहते थे (शल्य. ५१ । ३२-३४)। दण्डबाहु-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७३ )। दक्षयज्ञमें शिवजीका भाग न देखकर कुपित हो दक्ष दण्डी-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि०६७ । १०३ )। आदिको इनका चेतावनी देना (शान्ति० २८४ । १२ २१)। देवताओंके कहनेसे प्राण त्याग करना (शान्ति. दत्त (या दत्तक)-एक प्रकारका पुत्र, जिसे जन्मदाता ३४२ । ४०)। माता-पिताने स्वयं समर्पित कर दिया हो । यह छ: प्रकारके अबन्धु-दायादों से एक है ( आदि. ११९ । ३४ )। दनायु-दक्षप्रजापतिकी पुत्री. और महर्षि कश्यपकी पत्नी (आदि० ६५ । १२)। इसके चार पुत्र हुए-विक्षर, दत्तात्मा-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३४ )। बल, वीर और महान् असुर वृत्र (आदि०६५।३३)। दत्तात्रेय-भगवान् विष्णुके अवतार ( अत्रिपत्नी अनसूयाके गर्भसे इनका प्राकट्य )। सहस्रबाहु अर्जुनद्वारा इनकी दनु-दक्ष प्रजापतिकी पुत्रो, महर्षि कश्यपकी पत्नी तथा तीव आराधना और इनके द्वारा उसे चार दुर्लभ दानवोंकी माता (आदि० ६५। १२) । दनुके चौंतीस वरदानीको प्राप्ति (सभा०३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पुत्र हुए, जिनमें सबसे बड़ा विप्रचित्ति था (आदि०६५। पृष्ठ ७९१)। इनके द्वारा साध्योंको उपदेश ( उद्योग २१-३६)। ये ब्रह्माजीको सभामें विराजमान होती हैं ३६ । ४-२१)। (सभा० ११ । ३९)। दन्तवक्त्र (या दन्तवक)-एक क्षत्रिय राजा, क्रोधवशदत्तामित्र-सौवीरदेशका राजा सुमित्र, जिसका अर्जुनने संज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न ( आदि. ६७ । दमन किया था ( आदि० १३८ । २३)। ६२)। यह करूष देशका अधिपति था ( सभा० दधिमण्डोदक-एक समुद्र, जो घृतोद समुद्रके बाद आता है १४।१२) । सहदेवने इसे दक्षिण दिशाकी विजयके समय (भीष्म० १२ । २)। पराजित किया था (सभा० ३१ । ३)। इसे पाण्डवोंकी दधिमुख-(१) कश्यप और कसे उत्पन्न हुआ एक ओरसे रण-निमन्त्रण भेजा गया था (उद्योग०४११६)। प्रमुख नाग ( आदि०३५ । ८)।(२) एक वृद्ध एवं दम-(१) विदर्भनरेश भीमके पुत्र और दमयन्तीके भाई पराक्रमी वानर, जो भयंकर वानरोंकी विशाल सेना साथ (वन. ५३ ॥९)। (२)एक महर्षि, जो अन्य महर्षियोंके लेकर श्रीरामके पास आया था (वन० २८३ । ७)। साथ भीष्मजीको देखनेके लिये आये और कथा-वार्ता दधिवाहन-एक प्राचीन नरेश, जिनका पौत्र महर्षि गौतम- सुनाकर अन्तर्धान हो गये (अनु०२६ । --१३)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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