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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तक्षशिला द्वारा पृथ्वी दोहन के समय यह बछड़ा बना था ( द्रोण० ६९ । २२ ) । बलरामजी के शेषरूपसे अपने लोकमें पधारते समय यह प्रभासक्षेत्र के समुद्र में उनके स्वागतके लिये आया था ( मौसल ० ४ । १५ ) | तक्षशिला - एक नगरी, जिसे जनमेजयने जीता था ( और जहाँ सर्पसत्रका अनुष्ठान एवं महाभारत कथा का श्रवण किया था ) ( आदि० ३ । २० ) । सर्पसत्र और महाभारत कथाकी समाप्ति होनेपर ब्राह्मणों को दक्षिणा दे विदा करके जनमेजय तक्षशिलासे हस्तिनापुरको चले आये ( स्वर्गा० ५ । ३१-३५ ) । ( १२९ ) तङ्गण - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ६४ ) । तडित्प्रभा - स्कन्द की अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । १७ )। तण्ड - वानप्रस्थ-धर्मका पालन करनेवाले एक ब्रह्मर्षि ( शान्ति० २४४ । १७ ) । इन्होंने ब्रह्माजी के समक्ष शिव सहस्रनाम सुनाया था ( अनु० १४ । १९ ) । इनके द्वारा शिवजीकी स्तुति (अनु० १६ । १२ - ६५) । तनय - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ६४ ) । तनु - एक प्राचीन महर्षि, जिन्होंने राजा वीरद्युम्नको उनके पुत्रके विषय में कुछ बताया था ( शान्ति० १२७ । १८ - २२ ) । राजा वीरद्युम्नको उपदेश ( शान्ति ० १२८ । ९-२३ ) ! तन्तिपाल - विराटनगर में रहते समय सहदेवका नाम ( विराट० ३ ।९ ) । तन्तु - विश्वामित्रका एक ब्रह्मवादी पुत्र (अनु० ४ । ५५) । तन्दुलिकाश्रम - एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ जानेसे मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता और ब्रह्मलोक में जाता है ( वन० ८२ । ४३ ) । तप - काश्यप, वासिष्ठ, प्राणकः च्यवन तथा त्रिवर्चा इन पाँच मुनियोंकी तपस्यासे प्रकट हुआ एक तेजस्वी पुत्र, जो पाँच रंगोंसे युक्त होनेके कारण पाञ्चजन्य नामसे विख्यात हुआ । यह पूर्वोक्त पाँचों ऋषियोंके वंशका प्रवर्तक हुआ । ये पाञ्चजन्य नामक अग्नि ही घोर तपस्याके कारण तप कहलाये । फिर इन्होंने बहुत से पुत्र उत्पन्न किये ( वन० २२० अध्याय ) । तपती - भगवान् सूर्यकी कन्या और संवरणकी पत्नी । इनके गर्भसे अजमीढवंशी संवरणके द्वारा कुरुकी उत्पत्ति हुई ( आदि० ९४ । ४८ ) । सूर्यकन्या तपती सावित्रीदेवीकी छोटी बहिन थी। तपस्या में संलग्न रहनेके कारण यह तीनों लोकोंमें तपती नामसे विख्यात हुई ( आदि० ६-७ ) । इसके अनुपम सौन्दर्यका वर्णन म० ना० १७ १७० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताण्ड्य ( आदि० १७० । ८-१० ) । इसका विवाह किसके साथ किया जाय' - पिता की यह चिन्ता (आदि०१७०।११) । सूर्यदेवका संवरण के साथ तपतीके विवाहका विचार ( आदि० १७० | १५-२० ) । संवरणको तपतीका प्रथम दर्शन और इसके अप्रतिम सौन्दर्य से उनका मोहित होना ( आदि० १७० । २३-२४ । राजाका तपतीसे कुछ प्रश्न करना और तपतीका उन्हें उत्तर दिये बिना ही अदृश्य हो जाना ( आदि० १७० । ३५ - ४२ ) । राजाको मूर्छित पड़ा देख तपतीका पुनः उन्हें दर्शन और आश्वासन देना । राजाकी इससे प्रणययाचना तथा तपतीका अपनेको पिताकी वशवर्तिनी बताकर उन्हींसे अपना वरण करनेका संवरणको परामर्श देना ( आदि० १७१ अध्याय ) । वशिष्ठजीका संवरणके लिये सूर्यसे तपतीको माँगना । सूर्यका अपनी कन्याको उनके लिये दे देना और तपतीका वशिष्ठजीके साथ संवरणके पास आना ( आदि० १७२ । २२ - ३० ) । एक पर्वत शिखर पर संवरणद्वारा तपतीका विधिवत् पाणिग्रहण किया जाना (आदि०१७२ । ३३) । संवरण और तपतीका बारह वर्षोंतक विहार और पीके गर्भ से कुरुका जन्म ( आदि० १७२ । ३४-५० ) । तपन - एक पाञ्चाल योद्धा, जिसका कर्णद्वारा वध हुआ ( कर्ण० ४८ । १५ ) । तम गृत्समदवंशी श्रवाके पुत्र ( अनु० ३० । ६३)। तमसा- एक श्रेष्ठ नदी, जिसका जल भारतवर्षके लोग पीते हैं ( भीष्म ०९ । ३१ ) । तमोऽन्तकृत् - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ५८ ) । तरन्तुक - कुरुक्षेत्रको सीमाका निर्धारण करनेवाले तरन्तुक नामक एक यक्ष और उनका स्थान । वहाँ एक रात निवास करनेसे सहस्र गोदानका फल प्राप्त होता है ( वन० ८३ । १५-१६ शल्य० ५३ । २४ ) । तरल - एक भारतीय जनपद, जिसे कर्णने जीता था ( कर्ण० ८ । २० ) । तरुणक- धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो सर्पसत्रकी अग्निमें जलकर भस्म हो गया था ( आदि० ५७ । १९ ) । ताडकायन - विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु० ४ । ५६ )। For Private And Personal Use Only ताण्ड्य - एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभा में विराजते हैं ( सभा० ७ । १२ ) । इनके द्वारा वानप्रस्थ - धर्मका पालन हुआ था; जिससे ये स्वर्गको प्राप्त हुए (शान्ति०
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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