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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिक ( १२८ ) तक्षक ज्योतिक-कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न हुआ एक प्रमुख डिडिक-बिडालोपाख्यानमें आये हुए एक चूहेका नाम नाग (आदि० ३५। १३)। (उद्योग० १६० । ३४)। ज्योतिरथा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी डिम्भक-जरासंधका नीतिशास्त्रविशारद मन्त्री । हंसका पीते है (भीष्म० ९ । २६)। भ्राता ( सभा० १९ । २६ )। किसी भी अस्त्र-शस्त्रसे ज्योतिरथ्या-एक नदी, जिसका शोणभद्रसे संगम हुआ है। न मरनेका इसे देवताओंद्वारा वरदान ( सभा० इस संगममें स्नान करनेसे मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल १४ । ३७ )। भगवान् श्रीकृष्णके साथ जरासंधके पाता है (वन० ८५ । ८)। सत्रहवीं बारके युद्ध में एक हंस नामका राजा बलरामजीके द्वारा मारा गया था। उसके मारे जानेपर जरासंधके ज्योतिष्क-(१) एक कश्यपवंशीय नाग ( उद्योग सैनिक चिल्ला-चिल्लाकर हंस मारा गया' ऐसा कहने १०३ । १५)। (२) सुमेरु पर्वतका एक शिखर लगे । उसे सुनकर इसे अपने भाईकी मृत्युका भ्रम (शान्ति० २८३ । ५)। हुआ और वह उसके वियोगमें यमुनाजीमें कूदकर मर ज्योत्स्नाकाली-पोमकी दूसरी पुत्री, सूर्यकी भार्या, ये गया (सभा० १४ । ३१-४२)। रूपमें साक्षात् लक्ष्मीके समान हैं ( उद्योग० ९८ । डुण्डुभ-एक सर्प, जिसका रुरुके साथ संवाद हुआ था । १३)। ये शापग्रस्त सहस्रपाद ऋषि थे (आदि. ९ । २१ से ज्वर-रोगविशेष, भगवान् शङ्करके स्वेदसे इसकी उत्पत्तिका आदि० १०। ७ तक ) । ब्राह्मण मित्रके शापसे इनके प्रकार ( शान्ति. २८३ । ३७-५५)। सर्प होनेकी कथा ( आदि. ११ -९)। महर्षि ज्वाला-तक्षक नागकी पुत्री, जो महाराज ऋक्षकी पत्नी रुरुके दर्शनसे इनका सर्पयोनिसे मुक्त होना ( आदि. और मतिनारकी माता थी (आदि०९५। २५)। ११।१२)। इनके द्वारा अहिंसा-धर्मकी श्रेष्ठताका ज्वालाजिह्व-(१) अग्निद्वारा स्कन्दको दिये गये दो रुरुके प्रति उपदेश (आदि० २१ । १३-१९)। पार्षदर्भिसे एक; दूसरेका नाम ज्योति था (शल्य. तंसु-पूरुवंशी राजा मतिनारके पुत्र (आदि. ९४ । १४)। ४५ । ३३) । (२) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य. इनके पुत्रका नाम ईलिन था ( आदि. ९४ । १६)। ४५। ६१)। तक्षक-एक श्रेष्ठ नाग, जो कश्यपद्वारा कके गर्भसे उत्पन्न हुआ ( आदि० ३५ । ५)। इसके द्वारा क्षपणकका झल्लि-एक वृष्णिवंशी यादव, जो द्वारकाके सात मुख्य रूप धारण करके उत्तङ्क मुनिके कुण्डलोंका अपहरण मन्त्रियोंमेंसे एक है (सभा० १४ । ६० के बाद दाक्षि (आदि. ३ । १२७ आश्व० ५८ । २५-२६)। णात्य पाठ)। राजा परीक्षित्को डसनेके लिये जाते हुए इसकी मार्गमें झिल्लिक-एक दक्षिण भारतीय जनपद (भीष्मः ९। काश्यप नामक ब्राह्मणसे भेंट और धन देकर इसका उन्हें ५९)। लौटा देना (आदि० ४२ । ३६ से ४३ । २०; आदि० झिल्ली (अथवा झिल्ली पिण्डारक)-(१) एक वृष्णि- ५० । १८-२७ ) । तपस्वी नागोंद्वारा फल आदि वंशी योद्धा, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था ( आदि० भेजकर उस फलके साथ ही इसका छलपूर्वक परीक्षित्के १८५। २०)। ये सुभद्राके लिये दहेज लेकर खाण्डव- पास पहुँचना और उन्हें हँस लेना ( आदि० ४३ । प्रस्थ आये थे (आदि० २२० । ३२) धृतराष्ट्रद्वारा २२-३६, आदि०५०।२९)। इसका इन्द्रकीशरणमें जाना इनके पराक्रमका वर्णन (द्रोण०११।२८)। (२) और इन्द्रद्वारा इसे आश्वासन प्राप्त होना (आदि० ५३ । (या झिल्लिका) झींगुर नामक एक कीड़ा (वन० १४-१७)। आस्तीककी कृपासे जनमेजयके यज्ञमें इसकी ६४।१)। रक्षा (आदि. ५८ । ३-७)। यह इन्द्रका मित्र था और सपरिवार खाण्डववनमें रहता था; अतः इसीके टिट्टिभ-एक दैत्य या दानव, जो वरुणकी सभामें उपस्थित लिये इन्द्र सदा खाण्डववनकी रक्षा करते थे। उनके जल बरसा देनेके कारण अग्नि उस वनको जला नहीं होता है ( सभा० ५ । १५)। पाती थी ( आदि० २२२ । ७) । खाण्डववनदाहके अवसरपर इसका कुरुक्षेत्रमें निवास और अर्जुनद्वारा डम्बर-धातादारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदो से एक । इसकी पत्नीका वध (भादि० २२६ । ४-८)। यह दूसरेका नाम आडम्बर था (शल्य० ४५। ३९)। वरुणकी सभाका सदस्य है (सभा०९।८)। नागों ( ट ) For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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