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जाह्नवी
जाह्नवी - गङ्गाजीका एक नाम ( जो जह्नकी पुत्री होनेके कारण प्रसिद्ध हुआ था । ) ( आदि० ९९ । ४ ) । जितवती - राजर्षि उशीनरकी सुन्दर रूप और युवावस्था सुशोभित पुत्री, जो मनुष्यलोककी सुप्रसिद्ध सुन्दरी थी और नामक वसुकी पत्नीकी सखी थी ( आदि ० ९९ । २२-२४ ) | इसके निमित्त वशिष्ठजीकी नन्दिनी गौका अपहरण करनेके लिये वसुपत्नीकी अपने पतिसे प्रार्थना ( आदि० ९९ । २१ - २५ ) । इसके लिये नन्दिनीका अपहरण करनेसे वसुओंको वशिष्ठजीका शाप ( आदि० ९९ । ३२ ) ।
( १२७ )
जितात्मा - एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३१ ) । जितारि - पूरुवंशी महाराज कुरुके पौत्र एवं अविक्षित् के पुत्र ( आदि ० ९४ । ५३ ) ।
जिष्णु - (१ ) अर्जुनका एक नाम ( वन० ४७ । १३ ) । जिष्णु नामसे अर्जुनके प्रसिद्ध होनेका कारण ( विराट० ४४ । २१ ) । ( २ ) भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम । ये सबको जीतने के कारण जिष्णु कहलाते हैं ( उद्योग ० ७०। १३) । (३) पाण्डवपक्षका एक चेदिदेशीय योद्धा, कर्णद्वारा इसका वध कर्ण ० ५६ । ४८ ) । जिष्णुकर्मा - पाण्डवपक्षका एक चेदिदेशीय योद्धा ( कर्ण ० ५६ । ४८ ) ।
जीमूत - ( १ ) एक मल्ल ( पहलवान ), जिसका विराटनगरमें भीमसेन के साथ मल्ल-युद्ध हुआ और जो उनके द्वारा मारा गया ( विराट० १३ । २४-३६ ) । (२) एक ब्रहार्षि, जिनके सामने हिमालयकी वह स्वर्णनिधि प्रकट हुई थी, जिसे जैमूत कहते हैं ( उद्योग० १११ । २३ ) ।
जीवजीवक-पक्षिविशेष ( शान्ति ० १३९ । ६ )। जीवल- अयोध्यानरेश ऋतुपर्णका सारथि इससे बाहुक नामवाले राजा नलका वार्तालाप ( वन० ६७ । ११ ) । जृम्भिका – जंभाई, जिसे देवताओंने वृत्रासुरके मुखसे इन्द्रको निकालने के लिये पैदा किया था ( उद्योग ०९ । ५३)।
जैगीषव्य - ब्रह्माजीकी सभा में रहकर उनकी उपासना करनेवाले एक महर्षि ( सभा० ११ । २४ ) । आदित्य तीर्थकी महिमाके प्रसंगमें इनके चरित्रका वर्णन ( शक्य ० ५० अध्याय ) । इनका असितदेवल मुनिको समत्वबुद्धिका उपदेश ( शान्ति० २२९ । ७ – २५ ) | शिवमहिमा के विषय में युधिष्ठिरसे इनका अपना अनुभव सुनाना ( अनु० १८ । ३७ ) । जैत्र - ( १ ) एक रथविशेष, जिसपर आरूढ़ हो राजा
ज्योति
हरिश्चन्द्रने सम्पूर्ण दिशाओंपर विजय पायी थी ( सभा० १२ । १२ ) । ( २ ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र, भीमसेनद्वारा इसका वध ( शल्य० २६ । १४ ) । (३) धृष्टद्युम्नका शङ्ख ( शल्य० ६१ । ७१ के बाद दाक्षि णात्य पाठ ) ।
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जैमिनि - एक ब्रह्मर्षि, जो जनमेजयके सर्पयज्ञ में ब्रह्मा बनायें ये थे ( आदि० ५३ । ६ ) । ये महर्षि व्यासके शिष्य हैं ( आदि० ६७ । ८९ ) । ये युधिष्ठिरकी सभा में विराजमान होते थे ( सभा० ४ । ११ ) । शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखनेके लिये ये भी गये थे ( शान्ति० ४७।६ )।
ज्ञानपावनतीर्थ - एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ जानेसे मनुष्य
अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता और मुनिलोकको जाता है ( वन० ८४ | ३ ) ।
ज्येष्ठ - ( १ ) सामवेद के पारंगत एक प्राचीन ऋषि, जिन्हें
पद नामक ऋषियोंसे सात्वत धर्मका उपदेश प्राप्त हुआ था ( शान्ति० ३४८ । ४६) । ( २ ) जेठका महीना ( अनु० १०९ । ९ ) । ज्येष्ठपुष्कर - एक तीर्थ, ( वन० २०० । ६६ अनु० १३० । ७)।
ज्येष्ठ साम - एक साम, जिसकी उपासनाका व्रत ज्येष्ठमुनिने लिया था ( शान्ति० ३४८ । ४६ ) । ज्येष्ठस्थान - एक तीर्थ, जहाँ महादेवजीका दर्शन-पूजन करनेसे मनुष्य चन्द्रमाके समान प्रकाशित होता है ( वन० ८५ । ६२ ) ।
ज्येष्ठा - एक नक्षत्र, जिसमें ब्राह्मणको सामयिक शाक और मूली दान करनेसे अभीष्ट समृद्धि एवं सद्गतिकी प्राप्ति होती है (अनु० ६४ । २३ ) । ज्येष्ठा नक्षत्र में इन्द्रियसंयमपूर्वक पिण्डदान करनेवाला मनुष्य समृद्धिशाली होता है तथा प्रभुत्व प्राप्त करता चन्द्रव्रतमें ज्येष्ठा नक्षत्रकी चन्द्रमाकी ग्रीवामें स्थिति मानकर उसके द्वारा चन्द्रमाके ग्रीवाभागका चिन्तन करनेका विधान है ( अनु० ११० । ७ ) ।
ज्येष्ठल- एक तीर्थ, जहाँ जाकर एक रात्रि रहनेसे मानव सहस्र गोदानका फल पाता है ( वन० ८४ । १३४ ) । ज्येष्ठला - एक नदी, जो वरुणकी सभार्मे उपस्थित होती है ( सभा० ९ । २१ ) ।
ज्योति - ( १ ) ' अह : ' नामक वसुके पुत्र ( आदि० ६६ । २३) । ( २ ) अग्निद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । दूसरेका नाम ज्वालाजिह था ( शल्य० ४५ । ३३ ) ।
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