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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयद्रथवधपर्व ( १२४ ) जरा जयद्रथवधपर्व-द्रोणपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय ८५ से १५२ तक)। जयद्रथविमोक्षणपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २७२)। जयन्त-(१) इन्द्र के पुत्र, इनकी माताका नाम शची था (आदि. ११२ । ३-४) । (२) विराटनगरमें रहते समय भीमसेनका एक गुप्त नाम (विराट. ५। ३५, विराट०२३ । १२)। (३) एक पाञ्चाल शिरोमणि महामनस्वी वीर, जो महारथी माना गया था ( उद्योग. १७१ । ११)। (४) ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक (शान्ति. २०८ । २०)। (५) भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु० १४९ / ९८)। (६) बारह आदित्योंमेंसे एक (अनु. १५०। १५)। जयन्ती-सरस्वती-तटवर्ती एक तीर्थस्थान, जहाँ सोमतीर्थम स्नान करके मनुष्य राजसूय-यज्ञका फल प्राप्त करता है (वन० ८३ । १९)। जयप्रिया-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । १२)। जयरात-कौरव-पक्षका योद्धा, जो कलिङ्गदेशका राजकुमार था। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १५५ । २८)। जयसेन-एक मगधदेशीय राजकुमार, जो युधिष्ठिरकी सभामें बैठा करता था (सभा० ४ । २६)। जया-दुर्गा देवीका एक नाम (विराट० ६ । १६)। जयानीक-(१) द्रुपदपुत्रका एक पुत्र, जो अश्वत्थामाद्वारा मारा गया (द्रोण० १५६ । १८१)। (२) विराटके भाई (द्रोण० १५८ । ४२)। जयावती-स्कन्द की अनुचरी मातृका (शल्य.४६।४)। ३-४)। इनकी तपश्चर्याका वर्णन ( आदि० ४०। ९)। गर्तमें लटके हुए पितरोंद्वारा इनको अपने दुःखकी कथा सुनाना तथा इनसे इनका परिचय पूछना (आदि० ४५ । ३-३२)। पितरोंको अपना परिचय देकर कुछ शोके साथ विवाह करनेके लिये इनका उन्हें वचन देना (आदि० ४६ । २-१०) । पत्नीके लिये विचरते हुए इनका कहीं पत्नी प्राप्त न होनेपर उदासीन हो वनमें जोरजोरसे पुकार लगाना तथा धीरे-धीरे कन्याकी भिक्षा माँगना ( आदि०४६ । १२-१३)। दूतोद्वारा इनका उद्देश्य जानकर नागराज वासुकिका इनकी समस्त शर्तोको स्वीकार करके इनके साथ अपनी बहिनका ब्याह कर देना (भादि. ४६ । १९-२३; आदि० ४७ । ५)। पत्नीके साथ इनकी शर्त एवं ऋतुकाल आनेपर उसमें गर्भाधान (आदि.४७ । ८-१३)। धर्मलोपके भयसे पत्नीके द्वारा जगाये जानेपर इनके द्वारा पत्नीका परित्याग (आदि. १७। १५-४३)। पुत्रके लिये पत्नीके प्रार्थना करनेपर 'तुम्हारे उदरमें गर्भ है। इस प्रकार पत्नीको इनका आश्वासन ( आदि. ४७ । ४२)। (२) नागराज वासुकिकी बहिन, जरत्कारु नामक ऋषिकी पत्नी तथा आस्तीककी माता ( आदि. १४ । ६-७)। धर्मलोपके भयसे पतिको जगानेपर पति के द्वारा इनका परित्याग ( आदि. ४७ । १६-४३)। पुत्रके लिये प्रार्थना करनेपर जरत्कारु ऋषिके द्वारा इनको आश्वासन (आदि० ४७ । ४२)। जरत्कारु ऋषिके चले जानेपर मातृ-शापसे चिन्तित हुए वासुकिको इनका आश्वासन (आदि० ४८ । १-१३)। अपने पुत्र आस्तीकको सपोंकी रक्षाके लिये इनकी प्रेरणा ( आदि० ५४ । ५-- जयाश्व (१)-द्रुपदका एक पुत्र, जो अश्वत्थामाद्वारा मारा गया (द्रोण. १५६ । १८१)। (२) विराटके भाई (द्रोण० १५८ । ४२)। जरत्कारु-(१) यायावरसंज्ञक ब्राह्मणोंके घरमें उत्पन्न एक ऊर्ध्वरेता और महान् ऋषि, जो आस्तीकके पिता थे (आदि० १३ । ११; आदि. १५ । २-३ )। (यायावर शब्दका अथे इसी अध्यायकी टिप्पणी में देखना चाहिये । ) इनके द्वारा गर्त में लटके हुए अपने पितरोंका दर्शन तथा उनके आदेशसे विवाह करनेका इनका निश्चय (आदि० १३ । १५-२७)। उनके विवाहकी शर्ते (आदि. १३ । २८-३१)। नागराज वासुकिके द्वारा भिक्षाके रूपमें प्राप्त हुई अपने समान नामवाली कन्यासे इनका विवाह होनेकी कथा ( आदि. १४ । २-७)। इनका जरत्कारु नाम होनेका कारण (आदि.४०। जरा-(१) एक राक्षसी, जिसने जरासंधके शरीरके दोनों टुकड़ोंको जोड़ा था (सभा० १७ । ४०)। पूर्वकालमें ब्रह्माजीने गृहदेवीके नामसे इसकी सृष्टि की थी और इसे दानवोंके विनाशके लिये नियुक्त किया था। जो अपने घरकी दीवारपर इसे अनेक पुत्रोंसहित युवती स्त्रीके रूपमें भक्तिपूर्वक लिखता है-इसका चित्र अङ्कित करता है, उसके घरमें सदा वृद्धि होती है; अन्यथा उसे हानि उठानी पड़ती है। मगधराज बृहद्रथके घरमें इसकी भलीभाँति पूजा होती थी; अतः उसने प्रसन्न होकर दो टुकड़ोंमें उत्पन्न हुए शिशु जरासंधको जोड़कर बृहद्रथको सुरक्षित रूपसे दे दिया था (सभा० १८।१-७)। इसका राजा बृहद्रथको अपना परिचय देना (सभा. १८।१-८)। इसकी मृत्युके कारणका श्रीकृष्णद्वारा अर्जुनके प्रति कथन (द्रोण. १०१। १२-१४)। (२) जरा' नामक एक व्याध, जिसने मृगके भ्रमसे For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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