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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयत्सेना ( १२३ ) जयद्रथ चाहिये।) (५) धृतराष्ट्रका एक पुत्र, शतानीकद्वारा अपना परिचय देनेके लिये उसे विवश करके बंदी बनाकर इसकी पराजय (भीष्म ७९ । ४४-४५)। भीमसेन- रथपर डाल लेना और युधिष्ठिरके सामने उसी दशामें द्वारा इसका वध (शल्य. २६ । ११-१२)। उपस्थित करना (वन० २७२ । २~१५)। युधिष्ठिरजयत्सेना-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ६)। का इसे छोड़ देनेका आदेश और युधिष्ठिरकी दासता स्वीकार कर लेनेके कारण इसे छोड़ देनेके लिये द्रौपदीका जयद्वल-विराटनगरमें रहते समय सहदेवका एक गुप्त नाम भी भीमसेनसे अनुरोध (वन० २७२ । १७-१८)। (विराट. ५। ३५, विराट० २३ । १२)। जयद्रथका छुटकारा, युधिष्ठिरका उसे उसके पापकर्मके जयद्रथ-(१) सिन्धुनरेश वृद्धक्षत्रका पुत्र, इसकी पत्नीका । लिये धिक्कारते हुए दासभावसे मुक्त कर देना और उसे नाम दुःशला था ( आदि० ६७ । १०९-११० )। सकुशल लौट जानेकी आज्ञा देना (वन० २७२ । २१दुःशलाके साथ उसका विवाह (आदि. ११६ । १७-१८)। २४)। जयद्रथका लजित हो सीधे गङ्गाद्वारको जाना यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि. १८५। २१)। और तपस्याद्वारा भगवान् शङ्करको प्रसन्न करके एक दिनके युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें सम्मिलित हुआ था (सभा० लिये अर्जुनके सिवा अन्य चार पाण्डवोंको जीत लेनेका ३४ । ८)। कौरवसभामें राजा युधिष्ठिरके जुआ खेलते वरदान प्राप्त करना (वन० २७२ । २५--२९)। समय यह भी मौजूद था ( सभा० ५८ । २६)। इसका सेनासहित दुर्योधनकी सहायतामें आना (उद्योग. जयद्रथका विवाहकी इच्छासे शाल्वदेशकी ओर जाते १९ । १९)। प्रथम दिनके युद्ध में द्रुपदके साथ द्वन्द्वसमय साथियोंसहित काम्यकवनमें पहँचना और द्रौपदी- युद्ध (भीष्म० ४५ । ५५-५७)। भीमसेनसे दुर्योधनको देखकर चकित होना, फिर दूषित भावनाका उदय की रक्षा करके भीमसेनपर आक्रमण (भीष्म० ७९ । होनेसे उनका परिचय जाननेके लिये कोटिकास्यको उनके १७-२०)। भीमसेनके पुरुषार्थसे इसका किंकर्त्तव्यपास भेजना ( वन० २६४ । ६-१६ )। द्रौपदीसे विमूढ़ होना (भीष्म० ८५। ३५ के बाद )। भीमसेन इसका अनुचित प्रस्ताव करना ( वन० २६७ । और अर्जुनके साथ युद्ध (भीष्म० ११३ अध्यायसे ११४ १३-१० )। द्रौपदीकी इसको कड़ी फटकार ( वन० अध्यायतक)। विराटके साथ इसका द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म २६७ । १९-२० और दाक्षिणात्य पाठके श्लोक )। ११६ । ४२-४४ ) । अभिमन्युके साथ युद्ध द्रौपदीका इसको धिक्कारना और फटकारना (वन. (द्रोण. १४ । ६४-७४ )। क्षत्रवर्माके साथ युद्ध २६८ । २-९ )। इसका द्रौपदीको समझाना (द्रोण. २५ । १०-१२)। ब्यूहद्वारपर पाण्डवोंको (वन. २६८ । १०-१२ ) । पुनः द्रौपदीकी रोक देना (द्रोण. ४२।७)। धृतराष्ट्रके पूछनेपर इसे कड़ी फटकार ( वन० २६८ । १३-२२)। संजयद्वारा इसको वर-प्राप्तिका वर्णन (द्रोण. ४२ । उसका द्रौपदीको पकड़नेकी चेष्टा और उनके धक्के १२-२२)। पाण्डवोंके साथ युद्ध और व्यूहद्वारको खाकर कटे पेड़की भाँति गिरना, फिर दुबारा उठकर रोके रखना (द्रोण. ४३ अध्याय) । अर्जुनद्वारा की उन्हें पकड़ना और रथपर बैठनेके लिये विवश कर देना गयी अपने वधकी प्रतिज्ञा जानकर कौरवोंके सामने अपना (वन० २६८ । २३-२५)। धौम्यमुनिका जयद्रथको भय प्रकट करके वहाँसे चले जानेकी आज्ञा माँगना फटकारना (वन० २६८ । २६-२७)। जयद्रथद्वारा (द्रोण० ७४ । ४-१२)। इसके ध्वजका वर्णन अपहृत हुई द्रौपदीके पीछे धौम्य मुनिका जाना (वन. (द्रोण.१०५ । २०-२२) । अर्जुनके साथ इसका २६८ । २८ )। युधिष्ठिरके समक्ष धात्रेयिकाद्वारा युद्ध (द्रोण. १४५ अध्याय )। भगवान श्रीकृष्णकी जयद्रथके अत्याचारका वर्णन (वन० २६९ । १७ प्रेरणासे अर्जुनका जयद्रथके काटे हुए सिरको समन्त२२)। पाण्डवोंका जयद्रथको ललकारना (वन० २६९ । पञ्चकमें तपस्या करनेवाले इसके पिताकी गोदमें गिराना २८)। द्रौपदीद्वारा जयद्रथके सामने पाण्डवोंके पराक्रम तथा उनके द्वारा उस सिरके भूमिपर गिरनेसे उनके भी का वर्णन (वन. २७० अध्याय) । पाण्डवोद्वारा सिरके सौ टुकड़े हो जाना (द्रोण० १४६।१०४--१३०)। जयद्रथकी सेनाका संहार और जयद्रथका पलायन (वन० महाभारतमें आये हुए जयद्रथके नाम-सैन्धव, सैन्धवक, २७१ । १-३३)। भीम और अर्जुनका जयद्रथका सौवीर, सौवीरज, सौवीरराज, सिन्धुपति, सिन्धुराज, पीछा करना और उसे फटकारना (वन० २७१ । ५२ सिन्धुराट, सिन्धुसौवीरभर्ताः सुवीर, सुवीरराष्ट्रप, ५९)। भीमसेनका जयद्रथको पकड़कर पीटना और वार्धक्षत्रि आदि। अधमरा कर देना, उसका सिर मूड़कर पाँच शिखाएँ (२) एक गजा, जो यमसभामें बैठकर सूर्यपुत्र यमकी रख देना, राजाओंकी सभा युधिष्ठिरका दास बताकर उपासना करते हैं (सभा०८ । ३६)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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