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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जरायु ( १२५ ) जल्प सोते हुए श्रीकृष्णके एक पैरमें बाण मारा था ( मौसल० २२९ । ९) । खाण्डववनदाहके समय पुत्रोंके लिये ४ । २२-२३)। इसकी चिन्ता और पुत्रोंद्वारा इसे आत्मरक्षाके हेतु अन्यत्र जरायु-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । १९)। चले जानेका आदेश (आदि० २२९ । १२)। इसका अपने बच्चोंके साथ संवाद ( आदि० २३० अध्याय)। जरासंध-(१) ( नामान्तर शत्रुसह )-धृतराष्ट्रके अग्निदेवकी कृपासे इसके बच्चोंकी रक्षा (आदि० २३. सौ पुत्रों से एक (आदि०६७ । १००)। शत्रुसह नामसे इसका भीमसेनद्वारा वध (द्रोण० १३७ । ३०)। अध्याय)। (२) विप्रचित्ति नामक दानवके अंशसे उत्पन्न जरितारि-पक्षिरूपधारी मन्दपाल ऋषिके द्वारा जरिताके मगधराज बृहद्रथका पुत्र (सभा० १७॥ १२)। श्रीकृष्ण- गर्भसे उत्पन्न एक पक्षी मुनि । इनके द्वारा अग्निकी द्वारा इसकी उत्पत्तिका वर्णन (सभा०१७ । १२-५१)। स्तुति । खाण्डववनमें अग्निद्वारा इनको अभयदान चण्डकौशिक मुनिके द्वारा कृपापूर्वक दिये हुए फलके (आदि० २३१ अध्याय )। माताओंद्वारा भक्षण करनेपर उनके गर्भसे इसका जन्म जर्जरानना-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । (सभा० १७ । २९) । इसका जरासंध नाम होनेका १९)। कारण (सभा०१८।११)। चण्डकौशिक मुनिद्वारा । जर्तिक-बाहीकों की एक जाति, जिसका चरित्र अत्यन्त इसके भविष्यका कथन (सभा० १९ । ४-१५ )। निन्दित है (कर्ण०४४।१०)। द्रौपदीके स्वयंवरमें इसका आगमन (आदि. १८५। २३ ) । स्वयंवरमें धनुष उठाते समय इसका। जल-जल-तत्त्वके अभिमानी देवता, जो ब्रह्माजीकी सभामें घुटनोंके बल गिरना और लजित होकर स्वदेशको विराजमान होते हैं (सभा०११।२०)। लौट जाना ( आदि. १८५ । २७ ) । भगवान् जलद-शाकद्वीपका एक पर्वत, जिसके निकट कुमुदोत्तर वर्ष श्रीकृष्णका इसके पराक्रमका युधिष्ठिरके प्रति वर्णन (सभा० है (भीष्म. ११ । २५)। १४ । ६२-७०)। श्रीकृष्णके साथ इसके वैरका कारण जलधार-शाकद्वीपका एक पर्वत (भीष्म ११ । १६)। (सभा० १९ । २२)। श्रीकृष्णको मारनेके लिये इस जलन्धम-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५। ५७)। का मगधसे मथुराको गदाका प्रक्षेप ( सभा० १९ । जलप्रदानिकपर्व-स्त्रीपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २३)। इसका श्रीकृष्णके साथ संवाद (सभा० २१ । से १५ तक)। ४२-४७)। इसके द्वारा शिवजीकी प्रसन्नताके हेतु नरबलिके लिये नरेशोंका निग्रह (सभा० २२।८)। जलसंधि-(१) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक (आदि. भीमसेनके साथ इसका युद्ध ( सभा. २३ । १० से ६७ । ९४)। भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म०६५। ३३) । (२) कौरव-पक्षका एक महारथी योद्धा सभा० २४ । ६ तक)। भीमसेनद्वारा इसकी मृत्यु (सभा० २४ । ७) । अर्जुनके प्रति श्रीकृष्णका इसके वधका (उद्योग. ६६ । ७)। यह द्रौपदीके स्वयंवर में भी गया कारण बताना (बोण० १८५। ८-१६)। कर्णद्वारा था ( आदि. १८५। १२)। सात्यकिद्वारा इसका वध पराजित होकर उसे मालिनी नगरी देकर उसके साथ (द्रोण. ११५ । ५२-५३)। इसके संधि करनेकी चर्चा (शान्ति० ५।६)। जला-यमुनाकी पार्श्ववर्तिनी एक नदी, जहाँ उशीनरने यज्ञ महाभारतमें आये हुए जरासंधके नाम-बार्हद्रथ, करके इन्द्रसे भी ऊँचा स्थान प्राप्त किया था (वन. मागध, मगधाधिप, मगधाधिपति, मगधेश्वर आदि ।। १३० । २१)। (३) मगधदेशका एक दूसरा क्षत्रिय, जिसका पुत्र जलेयु-पूरु-पुत्र रौद्रायद्वारा मिश्रकेशी अप्सरासे उत्पन्न जयत्सेन कौरवपक्षका योद्धा था और अभिमन्युद्वारा (आदि० ९४ । १०)। मारा गया था (कर्ण० ५। ३०)। जलेला-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । १६) । जरासंधवधपर्व-सभापर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय जलेश्वरी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ ।१३) । २० से २४ तक)। जल्प-एक प्रकारका वाद, जिसमें वादी छल, जाति और निग्रहजरिता-मन्दपाल ऋषिकी भार्या पक्षिणी ( आदि० २२८ । स्थानको लेकर अपने पक्षका मण्डन और विपक्षीके पक्षका १६)। मन्दपालके द्वारा इसके गर्भसे उत्पन्न हुए पुत्र- खण्डन करता है। इसमें वादीका उद्देश्य तत्त्व-निर्णय नहीं जरितारि, सारिसक्क, स्तम्बमित्र और द्रोण ( आदि. होता; किंतु स्वपक्ष-स्थापन और परपक्ष-खण्डनमात्र होता For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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