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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनमेजय ( १२० ) जनमेजय जनमेजय-(१) एक राजर्षि जो महाराज परीक्षित्के पुत्र कथा सुनकर तथा यज्ञको समाप्त करके राजाने समस्त थे। इनकी माताका नाम मद्रवती था. इनकी पत्नी वपु. ब्राह्मणोंको पर्याप्त दक्षिणा देकर संतुष्ट किया और ष्टमासे शतानीक और शङ्ककर्ण नामक दो पुत्र उत्पन्न सबको विदा करके तक्षशिलासे हस्तिनापुरको चले आये हुए थे (आदि.१।९, आदि०९५। ८५-८६)। (स्वर्गा० ५। ३३-३४)। इन्होंने कुरुक्षेत्रमें दीर्घकालतक यज्ञ किया था (आदि० महाभारतमें आये हुए जनमेजयके नाम-भारत, भरत३ )। इनके तीन भाई थे-श्रुतसेन, उग्रसेन और शार्दूल, भरतश्रेष्ठ, भारताम्य, भरतर्षभ, भरतसत्तम भीमसेन (आदि. ३१)। सरमाके शाप देनेपर कौरव, कौरवशार्दूल, कौरवनन्दन, कौरवेन्द्र) कौरव्य, इनका चिन्तित होना (आदि. ३ । ११)। इन्होंने कुरुशार्दूल, कुरुश्रेष्ठ, कुरूद्वह, कुरुकुलश्रेष्ठ, कुरुकुलोद्वह) सोमवाको पुरोहित बनाया और भाइयोंको उनकी कुरुनन्दन, कुरुप्रवीर, कुरुपुङ्गवाग्रज, कुरुसत्तम, पाण्डव, प्रत्येक आशाके पालनका आदेश दिया (आदि. ३। पाण्डवनन्दन, पाण्डवेय, पारिक्षित्, पौरव आदि । १२-२०)। उनके द्वारा तक्षशिलापर विजय (आदि. (२) एक परलोकवासी नरेश (आदि.१।२२८)। ३ । २०)। इनका वेदको अपना उपाध्याय बनाना ये यमराजके सभामें विराजमान होते हैं (सभा०८ । (आदि० ३ । ८२ )। सर्पयज्ञ करनेके लिये इनको १९)। मान्धाताने इन्हें पराजित किया था (द्रोण. उत्तङ्ककी सलाह (आदि. ३। १८३-१८४)। काशि- ६२। १०)। इन्होंने तीन ही दिनोंमें विजयी होकर इस राज सुवर्णवर्मा की पुत्री वपुष्टमासे इनका विवाह भूमण्डलका राज्य प्राप्त किया था (शान्ति० १२४ । ( आदि० ४४ । ८-९) । मन्त्रियोंके द्वारा अपने १६)। ब्राह्मणोंके लिये अपने शरीर और गौका त्याग पिताकी मृत्युका विस्तारपूर्वक समाचार सुनकर इनका करके इन्होंने उत्तम लोक प्राप्त किया था ( शान्ति. तक्षकसे बदला लेनेका निश्चय ( आदि०५० । ३३- २३४ । २४ अनु०१३७ । ९)। (३) एक क्षत्रिय ५४)। ऋत्विोद्वारा इनको सर्प-सत्र करनेका राजा, जो क्रोधवशसंशक दैत्योंके अंशसे उत्पन्न हुआ था परामर्श ( आदि० ५१ । ६-७ ) । इन्होंने (आदि०६७ । ६२)। पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रणयज्ञकी दीक्षा लेनेसे पहले ही सेवकको यह आदेश दे दिया निमन्त्रण भेजा गया था (उद्योग० ४ । १६)। यह गदाकि मुझे सूचित किये बिना किसी अपरिचित व्यक्तिको युद्धमें कुशल पर्वतीय राजा था । इसे धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुखने यज्ञमण्डपमें न आने दिया जाय, इनका तक्षकको अग्नि- मारा था (कर्ण०६। १९-२०)। (४) एक राजा, कुण्डमें गिरानेके लिये ऋत्विजोंको बारंबार प्रेरणा (आदि. जो भरतवंशी महाराज कुरुके द्वारा वाहिनीके गर्भसे ५६ । ४-११)। उनका आस्तीकको वर देना और यज्ञ- उत्पन्न हुए थे ( आदि. ९४ । ५१ )। (५) समाप्तिका वर माँगनेपर उनसे दूसरा वर माँगनेका आग्रह अश्ववान् कुमार परीक्षित्के वंशमै उत्पन्न एक राजा, जिसके करना (आदि० ५६ । १७-२६)। इनके द्वारा यज्ञ पुत्रका नाम धृतराष्ट्र था (आदि० ९४ । ५३-५६)। बंद करनेकी आज्ञा देकर ऋत्विज आदि सदस्यों और ये परीक्षित-वंशीय नरेश, अर्जनके प्रपौत्र और अभिमन्युके लोहिताक्ष सूत तथा शिल्पीको पुरस्कार ( आदि० ५८ पौत्रसे भिन्न थे (शान्ति० १५० । ३)।ये अनजानमें अध्याय)। सर्पसत्र में आये हुए व्यासजीसे इनकी महाभारत- ब्रह्महत्या कर देनेके कारण प्रजा ब्राह्मणों और पुरोहितोयुद्ध-सम्बन्धी वृत्तान्त सुनानेकी प्रार्थना ( आदि०६० । द्वारा त्याग दिये गये और दुखी हो वनमें जाकर १८-१९)। इनके प्रार्थना करनेपर व्यासजीकी आज्ञासे पुण्यकर्म एवं तपस्या करने लगे। इन्होंने पृथ्वीपर घूमवैशम्पायनजीने इनसे पूरुवंश, भरतवंश एवं कुरुवंशके घूमकर ब्रह्महत्यानिवारणका उपाय पूछा, अन्तमें एक परिचयपूर्वक सम्पूर्ण पुरातन इतिहास एवं महाभारत शौनकवंशी इन्द्रोत मुनिकी शरणमें गये (शान्ति० १५० । युद्धकी कथा सुनायी थी (आदि० ६० । १८-२४)। ४-८) । इन्द्रोतमुनिके फटकारनेपर इन्होंने उनकी ही इनका व्यासजीसे अपने पिताके दर्शन करानेकी प्रार्थना शरण ग्रहण की (शान्ति. १५१।१-५)। इन्द्रोत और व्यासजीका परलोकसे उनका आवाहन करके उसी रूप मुनिने अश्वमेधयज्ञ कराकर इन्हें पापसे मुक्त किया और अवस्थामें जनमेजयको दर्शन कराना, जनमेजयका (शान्ति. १५२। ३९) । (६) महाराज पूरुके पहले पिताको अवभृथ-स्नान कराकर स्वयं स्नान पुत्र, इनकी माताका नाम कौसल्या था. इन्हींका दूसरा करना तथा आस्तीकसे अपने यज्ञको विविध आश्चर्योंका नाम प्रवीर है, इनके द्वारा मधुवंशकी कन्या अनन्ताके केन्द्र बताना और आस्तीकके कहनेसे महर्षि व्यासका गर्भसे प्राचिन्वान्की उत्पत्ति हुई थी (आदि० ९५ । बारंबार पूजन करना । इसके बाद वैशम्पायनजीसे शेष ११.१२)। (७) वरुणकी सभामें विराजमान होनेवाला कथा सुनाने के लिये कहना (आश्रम० ३५। ४-१८)। एक नाग (सभा०९।१०) । (८) नीपवंशका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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