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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनस्थान जम्बूखण्डविनिर्माणपर्व % D एक कुलाङ्गार नरेश ( उद्योग० १७४ । ३३)। (९) ऋचीकके सौ पुत्रोंमें बड़े थे। इनके भी चार पुत्र थे, पाण्डवपक्षका एक पाञ्चालदेशीय योद्धा, जो दुर्मुखका पुत्र जिनमें सबसे छोटे परशुरामजी थे (आदि. ६६ । ४५-- था. यह युधिष्ठिरका सम्बन्धी एवं सहायक था, इसके ४९)। जमदनिजी अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे ये घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ५१ द्रोण. १५८३९)। (आदि० १२२ । ५१)। ये ब्रह्माजीकी सभामें विराजते इसका कर्णके साथ युद्ध (कर्ण० ४९ । ३५-३७)। हैं (सभा० १५ । २२) । इनका सत्यवतीके गर्भसे जनस्थान-दण्डकारण्यका एक भाग, जो गोदावरीके तटपर जन्म (वन० ११५ । ४३)। इनकी राजा प्रसेनजित्से है और जहाँ त्रेतायुगमें राक्षसोंका समुदाय निवास करता रेणुकाकी मांग और उसके साथ विवाह (वन. ११६ । था, यहाँ रहकर देवताओंका कार्य सिद्ध करते हुए २)। इनको अपनी पत्नी रेणुकाके गर्भसे पाँच पुत्रोंकी श्रीरामने प्रजाजनोंके हितकी कामनासे भयानक कर्म प्राप्ति (वन० ११६ । ४)। इनका रेणुकाका वध करनेवाले मारीच, खर, दूषण, त्रिशिरा आदि चौदह हजार करनेके लिये पुत्रोंको आदेश (वन० ११६ । ११)। राक्षसोंका वध किया (सभा०३८।दा. पाठ, पृष्ठ ७९४)। माताका वध कर देनेपर परशुरामको इनका वरदान (वन. यही राक्षसराज रावणने मायासे सुवर्णमय मृगका रूप १०६ । १८)। कार्तवीयके पुत्रोद्वारा इनका वध (वन धारण करनेवाले मारीच नामक राक्षसके द्वारा श्रीरामको ११६।२८, शान्ति०४९।५०)। द्रोणाचार्यके पास आकर धोखेमें डालकर इनकी धर्मपत्नी सीताको हर लिया था इनका उनसे युद्ध बंद करनेको कहना (द्रोण. १९०। (वन. १४७ । ३३-३४)। यहाँ रहते समय शूर्पणखाके ३५-४०)। इनके जन्मका प्रसंग (शान्ति० ४९ । नाक-कान कटवानेके कारण श्रीरामका जनस्थानवासी २९)। इनसे परशुरामका जन्म (शान्ति०४९ । राक्षस खरके साथ महान् वैर हो गया (वन० २७७ । ३१-३२)। इनका वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष बताना ४२) । नरश्रेष्ठ श्रीरामने जनस्थानमें तपस्वी मुनियोंकी (अनु० ९३ । ४४)। अरुन्धतीसे अपने मोटे न होनेका रक्षाके लिये चौदह हजार राक्षसोंका वध किया था। कारण बताना ( अनु० ९३ । ६४) । यातुधानीसे (द्रोण. ५९ । ३)। जनस्थानमें श्रीरामने जब अपने नामकी व्याख्या बताना (अनु० ९३ । ९४ )। राक्षसोंके संहारका विचार किया था, उस समय एक मृणालकी चोरीके विषयमें शपथ खाना ( अनु० ९३ । राक्षसके सिरको काटकर दूर फेंका, वह महोदर मुनिकी १२०-१२१) । अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेजाँघमें जा लगा और उसकी हड्डी मुनिकी जाँघमें फंस पर शपथ खाना ( अनु. ९४ । २५)। रेणुकाके पैर गयी थी (शल्य. ३९ । ९-११)। जनस्थानमें और मस्तकके संतप्त होनेसे सूर्यपर कोप करना (अनु. गोदावरीके जलमें स्नान करके उपवास करनेवाला पुरुष ५५ । १८)। इनका शरणागत सूर्यको अभयदान देना राजलक्ष्मीसे सेवित होता है (अनु० २५। २९)। (अनु० ९६ । ८-१२)। इनके द्वारा धर्मके रहस्यका जनार्दन-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम ( वन० १२ । वर्णन (अनु. १२७ । १७-१९)। ये उत्तर दिशाके ऋषि हैं (अनु. १६५। ४४)। जमदग्निका क्रोधपर २४ ) । दस्युजनोंको त्रास देनेके कारण भगवान् श्रीकृष्णका नाम जनार्दन हुआ है (उद्योग०७० । ६)। विजय ( आश्व० ९२ । ४१-४६)। महाभारतमें अनेक स्थलोंपर जनार्दन' नामका प्रयोग महाभारतमें आये हुए जमदग्निके नाम-आर्चीक, हुआ है, यथा-(भीष्म० २५ । ३६,३९,४४भीष्म०२७॥ भार्गव, भार्गवनन्दन, भृगुशार्दूल, भृगुश्रेष्ठ, भृगूत्तम, १७ भीष्म० ३४ । १८ भीष्म ३५। ५.) इत्यादि । ऋचीकपुत्र, ऋचीकतनय आदि । जन्तु-प्रसिद्ध राजा सोमकका पुत्र, जिसके प्रति राजपरिवारको जम्बुक-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ७४)। भारी आसक्ति थी (वन १२७॥४-१५)। सो जम्बू-मेरुपर्वतके दक्षिण भागमें विद्यमान वृक्षविशेष. जो पुत्रोंकी प्राप्तिके निमित्त जन्तुकी आहुति देकर यज्ञ करनेके सदा फल-फूलोसे भरा रहता है, सिद्ध और चारण उस लिये ऋत्विजकी सलाह (वन० १२०॥ १६-२७)। वृक्षका सेवन करते हैं, उसकी शाखा ऊँचाईमें स्वर्गलोकजन्तुके लिये माताओंका शोक और ऋत्विजोंका इसे तक फैली हुई है, उसीके नामपर इस दीपको जम्बूद्वीप काटकर इसकी चर्बियोंकी आहुति देना (वम० १२८। कहते हैं (सभा० २८ । ६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ २-६)। इसका पुनः अपनी माताके गर्भसे जन्म ७४७)। (वन० १२८ । ८)। जम्बूक-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७६ )। जमदग्नि-एक ब्रह्मर्षि, जो सत्यवती और ऋचीक ऋषिके अम्धूखण्डविनिर्माणपर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व पुत्र, और्वके पौत्र तथा महर्षि च्यवनके प्रपौत्र थे ये (अध्याय १ से १० तक)। मामा०१६.. For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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