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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जटी ( ११९ ) जनदेव (आदि. १९५। १४)। हस्तिनापुरकी स्त्रियोंद्वारा कुटुम्बी जन और धनका नाश होनेपर क्या करना चाहिये, द्रौपदीकी पतिसेवाके विषयमें इनका दृष्टान्त (शान्ति. इस विषयमें प्रश्न करना ( शान्ति० २८।४ )। ३८ । ५)। जनकका स्वर्ग और नरकका प्रत्यक्ष दर्शन कराकर जटी-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६१)।। अपने सैनिकोंको युद्धके लिये प्रोत्साहित करना (शान्ति. जठर-(१) एक वेदविद्याके पारंगत ब्राह्मण, जो जनमे ९९ । ४-७ ) । कालकवृक्षीय मुनिके समझानेपर जयके सर्पसत्रके सदस्य बने थे (आदि० ५३ । ८)। जनकका क्षेमदीसे संधि करना और उसका सत्कार (२) एक भारतीय जनपद (भीष्म०९।४२)। करके उसके साथ अपनी कन्याका ब्याह कर देना (शान्ति. १०६ । २१-२८ ) । इनकी विरक्ति जतुगृह-लाक्षागृह, जिसे दुर्योधनने पाण्डवोंके विनाशके लिये (शान्ति० १७८ । २)। महर्षि माण्डव्यके तृष्णावारणावतमें बनवाया था (आदि०६१ । १७) । पाण्डवों वियक प्रश्नका जनकद्वारा उत्तर (शान्ति. २७६ ने इस भवनमें सालभर रहकर इसमें आग लगा दी अध्याय )। पराशरजीसे कल्याण-प्राप्तिके विषयमें जनक(आदि. ६३ । २१-२३)। दुष्ट दुर्योधनकी प्रेरणासे के प्रश्न (शान्ति. २९० । ४ )। पराशरजीसे इनके पुरोचनद्वारा महात्मा पाण्डवोंके विनाशके लिये लाहका विविध प्रकारके प्रश्न (शान्ति० २९६ । १-२, शान्ति० घर बनवाया गया था (आदि० १४३। ८)। विदुरके २९८ । २ ) । कराल जनकको वसिष्ठका उपदेश भेजे हुए खनकद्वारा पाण्डवोंने इसमें सुरंगका निर्माण (शान्ति०३०२ अध्यायसे ३०८ अध्याय तक)। वसुमान् कराया था ( आदि० १४६ । १६)। अपने शराबी जनकको एक मुनिका धर्मविषयक उपदेश (शान्ति. पाँच पुत्रोंके साथ मदिरा पीकर मत्त होकर एक भीलनी ३०९ अध्याय ) । महर्षि याज्ञवल्क्यसे देवरातपुत्र का इस भवनमें आकर सोना (आदि. १४७ । ७)। जनकका प्रश्न करना और उनके द्वारा उनके प्रश्नोंभीमका इस घरमें आग लगाना (आदि. १४७ । का समाधान (शान्ति० ३१० अध्याय से ३१८ अध्याय १०)। इसमें जलकर पुरोचनकी मृत्यु ( आदि. तक)। जरा-मृत्युके उल्लङ्घनके विषय महर्षि पञ्च१४७ । १६)। शिखसे जनदेव जनकका प्रश्न ( शान्ति० ३१९ । जतुगृहपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ५)। धर्मध्वज जनककी परीक्षाके लिये आयी हुई और १४० से १५० तक)। उनके शरीरमें प्रविष्ट हुई सुलभासे उसपर दोषारोपण जनक-(क) मिथिलाके एक भूतपूर्व राजा जो अब यम करते हुए इनका प्रश्न (शान्ति० ३२० । ७५)। सभामें विराजमान होते हैं (समा०८ । १९) । राजा जनकद्वारा शुकदेवजीका पूजन (शान्ति० ३२६ । (ख) युधिष्ठिरके समकालिक मिथिलाके एक राजा, ३-५)। शुकदेवजीको उनका ज्ञानोपदेश (शान्ति. जिसे भीमसेनने दिग्विजयके समय पराजित किया था ३२६ । २२-५१)। जनकने जीवनमें कभी मांस नहीं (सभा० ३०।१३)। (ग) एक विदेहराज जनक, खाया था ( अनु. ११५। ६५)। ब्राह्मणरूपधारी जिनके दरबारमें वन्दीद्वारा शास्त्रार्थमें हारे हुए कहोडको धर्म और जनकका ममत्व-त्यागविषयक संवाद ( आश्व. समुद्र में डलवा दिया गया था (वन० १३२ । १५)। ३२ अध्याय)। इनका अपनी यज्ञशालामें आये हुए अष्टावक्रसे वार्ता. महाभारतमें आये हुए जनकके नाम-ऐन्द्रद्युम्न, दैवलाप (वन. १३३ । २०-३०)। इनका अष्टावक्रको राति, धर्मध्वज, कराल, करालजनक, मैथिल, मिथिलावन्दीसे शास्त्रार्थ करनेका अवसर देना ( वन० १३३ । धिप, मिथिलाधिपति, मिथिलेश्वर, वैदेह, विदेहराज आदि। ३०)। हारे हुए वन्दीको अष्टावक्रके इच्छानुसार (मिथिलाके प्रायः सभी राजा जनक कहलाते थे । जलमें डुबानेकी बात स्वीकार करना (वन० १३४ । प्रस्तुत वर्णनमें अनेक जनकोंके जीवनकी बातें संकलित २९)। कहोडका जनकके सामने प्रकट होकर पुत्रकी हुई हैं। नामोंमें भी विभिन्न जनकोंके नाम हैं । यह प्रशंसा करना (वन० १३४ । ३२-३६)। राजाकी किसी एक ही जनकका परिचय नहीं है । )। आज्ञासे वन्दीका समुद्रके जलमें प्रवेश (वन० १३४। जनदेव-मिथिलानरेश जनक (शान्ति० २१८ । ३) । इन्हें ३७)। धर्मव्याधद्वारा कौशिक ब्राह्मणके प्रति जनकके पञ्चशिखका उपदेश (शान्ति. २१८ । २२ से शान्ति. गुणोंका वर्णन (वन० २०७ । ३७-३९)। विदेहराज २१९ । ५२ तक)। ब्राह्मणरूपमें विष्णुद्वारा इनकी जनक सीताके पिता थे ( वन० २७४ । ९)। परीक्षा (शान्ति. २१९ । ५२ के बाद दाक्षिणात्य इनका राज्य छोड़कर संन्यास ग्रहण करनेका उपक्रम पाठ)। इन्हें भगवान् विष्णुका दर्शन और वर-प्राप्ति (शान्ति. १८।४-५ )। इनका अश्मा मुनिसे (शान्ति० २१९ अध्यायकी समाप्तितक)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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