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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११८ ) जटिला चैद्य-चेदिराज शिशुपाल ( आदि. १ । ३१)। च्यवन-सरोवर-एक तीर्थ जिसमें पितरोंका तर्पण किया चेदिराज धृष्टकेतु, जो धृष्टद्युम्ननिर्मित क्रौञ्चव्यूहके नेत्र- जाता है ( वन० १२५ । ११-१२)। स्थानमें खड़े थे ( भीष्म० ५० । ४७)। (छ) चोल-एक देश, जिसकी सेनाओंपर अर्जुनने विजय पायी थी छत्रवती--अहिच्छत्रदेशको राजधानी, अहिच्छत्रा नगरीका (सभा० २७ । २१)।चोलदेशके नरेशको भी चोल __दूसरा नाम (आदि० १६५ । २१)। कहा गया है, ये युधिष्ठिरको भेंट देने गये थे (सभा. ५२ ।३५) । दक्षिण भारतका एक जनपद, जहाँके __ छन्दोदेव-मतङ्गको इन्द्रके वरदानसे जन्मान्तरमें मिलनेवीर योद्धा धृष्टद्युम्ननिर्मित क्रौञ्चव्यूहकी दाहिनी पाँखका वाला नाम (अनु० २९ । २४)। आश्रय लेकर खड़े थे (भीष्म०९।६०, भीष्म छागमुख-बकरेके समान मुख धारण करनेवाले भगवान् छागमुख-बकरक समान मुख धारण कर ५०। ५१)। भगवान् श्रीकृष्णने इस देशको जीता था स्कन्द, जो अपने पुत्रों और कन्याओंसे घिरकर मातृ(द्रोण०११।१७) । पाण्डवोंकी ओरसे इन्होंने युद्ध काओंके देखते-देखते युद्ध में अपने पक्षकी रक्षा करते हैं किया (कर्ण० १२ । १५)। (वन० २२८ । ३.४)। चौर-क्षत्रियोंकी एक प्राचीन जाति, जो ब्राह्मणोंके रोषसे शूद्रत्वको प्राप्त हो गयी (अनु०३५ । १७)। जङ्गारि-विश्वामित्रके ब्रह्मवाद) पुत्रों में से एक (अनु० ४ । ५७)। च्यवन-(१) एक सुप्रसिद्ध तपस्वी मुनि, जो महर्षि भृगुके जङ्गाबन्धु-एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते पुत्र थे ( आदि. ५।८)। इनकी उत्पत्ति-कथा थे (सभा०४ । १६)। ( आदि. ५। १३ से ६।३ तक)। इनका च्यवन नाम पड़नेका कारण तथा इन्हें देखते ही पुलोमा राक्षस जटाधर-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ६१)। का जलकर भस्म हो जाना ( आदि०६।३)। जटायु-एक गीध, विनतानन्दन अरुणके दूसरे पुत्र, इनके द्वारा सुकन्या नामक पत्नीके गर्भसे प्रमतिका इनकी माताका नाम श्येनी और बड़े भाईका नाम जन्म ( आदि. ५। ९, आदि.८।१)। इनसे सम्पाति था (आदि० ६६ । ६९-७०)। इनका आस्तीकने अङ्गीसहित सम्पूर्ण वेदोंका अध्ययन किया था सीताहरणके समय रावणके साथ युद्ध (वन. २७९ । (आदि०४८।१८)। इनकी भार्या मनुकी पुत्री ३-५)। रावणद्वारा इनकी पाखोका काटा जाना आरुषी थी, जिससे और्व मुनिका जन्म हुआ था (आदि० (वन० २७९ । ६)। श्रीरामचन्द्रजीको सीताका पता (वन० २७९ । ५)। ६६ । ४६ )। ये ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी बताकर इनका प्राण त्याग करना (वन. २७९ । उपासना करते हैं (सभा० ११ । २२)। सुकन्याद्वारा २३)। जटायु अपने भाई सम्पातिके साथ सूर्यमण्डल. इनकी आँखोंके फोड़ दिये जानेपर इनके द्वारा राजा की ओर उड़े थे। सम्पतिकी पाँखें जल गयीं और शर्यातिके सैनिकोंका मलावरोध ( वन० १२२ । १५ इनकी बची रह गयीं--इस प्रसङ्गकी चर्चा (वन. १७)। इन्हें शर्यातिसे सुकन्याकी प्राप्ति होनेपर इनकी २८५ । ४९.५०)। प्रसन्नता (वन० १२२। २६-२७)। रूप, यौवन जटालिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । और पत्नीकी प्राप्तिसे प्रसन्न होकर इनका अश्विनीकुमारों- २३)। को सोमपानके अधिकारी बनानेकी प्रतिज्ञा करना (वन० जटासुर-(१) एक राजा, जो युधिष्ठिरकी सभामें रहता १२३ । २२-२३)। इनके द्वारा इन्द्रकी भुजाओंका था (सभा० ४ । २४)। (२) एक राक्षस, जो स्तम्भन (वन० १२४ । १९; शान्ति०२४२ । २४)। पाण्डवोंके अस्त्र-शस्त्र तथा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल इनका अश्विनीकुमारोंको सोमपान कराना ( बन० और सहदेवको लेकरभागा जा रहा था (वन० १५७ । १२५।१०) अभिमन्त्रित जल पी लेनेपर राजा युवनाश्व- ७-११)। इसका भीमसेनके साथ युद्ध तथा प्राणको इनका आश्वासन देना (वन०१२६।१०-२८)। त्याग ( वन० १५७ । ४८-७०)। इसके पुत्रका नाम देवव्रत भीष्मका इनसे वेदाङ्गों और वेदोका अध्ययन अलम्बुष था, जो घटोत्कचके हाथसे मारा गया (द्रोण. (शान्ति० ३७ । ११)। (२) अङ्गिराके वंशज, १७४ । ७-३७)। च्यवन नामक अग्नि (वन० २२० । १)। जटासुरवधपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय च्यवनाश्रम-एक तीर्थ, जिसमें काशिराजकी कन्या अम्बाने १५७)। स्नान किया (उद्योग. १८६ । २६)। जटिला-गौतमगोत्रकी कन्या, सात ऋषियोंकी पत्नी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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