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घृतार्चि
( १९० )
चन्द्र
स्य.
स्वागत-सत्कारके निमित्त कुवेरसभामें नृत्य किया था चक्रव्यूह-द्रोणनिर्मित एक सैन्य-व्यूह, जिसका भेदन करना (अनु० १९ । ४४)।
पाण्डव-दलमें केवल अर्जुन जानते थे, अभिमन्यु इसमें घृतार्चि-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम, जिसकी व्याख्या प्रवेश करके निकलना नहीं जानता था, अतः उसमें
उन्होंने श्रीमुखसे की है (शान्ति. ३४२ । ८५)। बाहरसे सहायता न पहुँच सकनेके कारण मारा गया। घोर-महर्षि अङ्गिराके वारुणसंज्ञक पुत्रोंमेंसे एक (अनु.
इस व्यूहका निर्माण गाडीके पहियेकी आकृतिमें होता है। ८५। १३१)।
इसका वर्णन (द्रोण. ३४ । १३-२४)। घोरक–पश्चिमोत्तर भारतका एक जनपद, जहाँ के लोगोंने चक्राति एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४५)।
राजा युधिष्ठिरको बहुत धन अर्पित किया था ( सभा. चक्ष-विवस्वान् (सूर्य ) के ही बोधक दिवःपुत्र आदि ५२ । १४)।
बारह सूर्यों से एक (आदि. १।१२)। घोषयात्रापर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय चक्षुर्वर्धनिका-शाकद्वीपकी एक नदी (भीष्म० ११ । २३६ से २५७ तक)।
३३)। घ्राणश्रवा-स्कन्दका एक सैनिक एवं पार्षद, जो निरन्तर चण्डकौशिक-गौतमपुत्र महात्मा काक्षीवान्के पुत्र (सभा०
योगयुक्त रहकर सदा ब्राह्मणोंसे प्रेम रखते हैं (शल्य. १७ । २२)। इनकी कृपासे मगधनरेश बृहद्रथको ४५। ५७)।
पुत्रकी प्राप्ति हुई। वही जरासंधके नामसे विख्यात हुआ
(आदि. १७ । २८-४१)। इनके द्वारा जरासंधका चक्र-(१) नागराज वासुकिसे उत्पन्न एक नाग, जो भविष्यकथन (आदि० १९ अध्याय)। सर्पसत्र में जल मरा था (आदि०५७।६)। (२) भगवान्
चण्डतुण्टक-गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक (उद्योग. श्रीकृष्णका सुप्रसिद्ध अस्त्र सुदर्शनचक्र, जिसे अग्निदेवने
१०१।९)। उन्हें प्रदान किया था (आदि० २२४ । २३)। (३) ,
चण्डबल-इसी नामसे प्रसिद्ध एक वानर, जो कुम्भकर्णके एक भारतीय जनपद (भीष्म. १। ४५)। (४)
मुखका ग्रास बन गया था (वन० २८७ ।।)। भगवान् विष्णुद्वारा स्कन्दको दिये गये तीन पार्षदोंमेसे एक ( शल्य. ४५। ३७ ) । (५) त्वष्टाद्वारा
चण्डभार्गव-वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ एक विद्वान् ब्राह्मण, जो स्कन्दको दिये गये दो अनुचरोंमेंसे एक, दूसरेका नाम
च्यवनमुनिके वंशमें उत्पन्न हुए थे, ये अपने समयके अनुचक्र था (शल्य०४५।४.)।
सुप्रसिद्ध कर्मकाण्डी थे और राजा जनमेजयके सर्पयशचक्रक-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु.४।
के होता बनाये गये थे (आदि. ५३ । ४-५)। ५४)।
चतुरश्व-एक राजर्षि, जो यमसभामें उपस्थित होकर चक्रदेव-वृष्णिवंशका एक अतिरथी वीर ( सभा० १४। सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । ११)। ५७-५८)।
चतुर्दष्ट्र-स्कन्दका एक सैनिक अथवा पार्षद, जो ब्राह्मणोंसे चक्रद्वार-एक पर्वत, जो सुलभाके पूर्वजोंके यौमें देवराज प्रेम रखनेवाला है (शल्य० ४५। ६२)। इन्द्रके सहयोगसे यज्ञवेदीमें ईटाकी जगह चुना गया था (शान्ति० ३२० । १८५)।
चतुर्वेद-सात पितरोंमेंसे एक ( सभा० ११ । ४७)। चक्रधनु-महर्षि कर्दमसे उत्पन्न भगवान् कपिलमुनि ही चतुष्कर्णी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य.
चक्रधनु कहलाते हैं। ये दक्षिणदिशामें रहते हैं । इन्होंने ४६ । २५)। ही सगर-पुत्रोंको भस्म कर दिया था ( उद्योग० १०९। चतुष्पथरता-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य. १७-१८)।
४६ । २७)। चक्रधर्मा-विद्याधरोंके अधिपति, जो अपने छोटे भाइयोंके चत्वरवासिनी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य. साथ कुबेरकी सभामें उपस्थित हो भगवान् कुबेरकी ४६ । १२)। उपासना करते हैं (सभा० १० । २७)।
चन्द्र-(१) एक श्रेष्ठ दैत्य, जो चन्द्रमाके समान सुन्दर चक्रनेमि-स्कन्दको अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । ५)। और चन्द्रवर्मा नामसे विख्यात काम्बोज देशका राजा चक्रमन्द-एक नाग, जो बलरामजीके परमधाम पधारते हुआ (आदि० ६७ । ३१-३२)। (२) चन्द्रमा समय उनके स्वागतके लिये आया था ( मौसल. (आदि० २०९ । २६ वन०११८ । १२)।(देखिये४। १६)।
चन्द्रमा)।
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