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घटोत्कच
( १०९ )
घृताची
इसकी सृष्टि ( आदि. १५४।१६)। सहदेवकी आज्ञा- मायामय घोर युद्ध करके कौरव-सेनाका संहार करना से इसकी लङ्का-यात्रा ( सभा० ३१ । ७२ के बाद (द्रोण. १७९ । २५-४७)। कर्णद्वारा छोड़ी हुई दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७५९)। इसके द्वारा विभीषणको इन्द्रप्रदत्त शक्तिके प्रहारसे घटोत्कचका वध (द्रोण. पाण्डवोंका परिचय ( सभा० ३१ । पृष्ठ ७६२)। १७९ । ५८)। यह यों और ब्राह्मणोंसे द्वेष एवं घृणा विभीषणसे कर लाकर इसका सहदेवको देना (सभा० करता था (द्रोण. १८१ । २६-२७)। व्यासजीके ३८ । पृष्ठ ७६४ ) । भीमसेनकी आज्ञासे द्रौपदीको कंधेपर आवाहन करनेपर यह भी गङ्गाजीके जलसे प्रकट हुआ चढ़ाकर इसका गन्धमादनकी यात्रा करना ( बन. था (आश्रम० ३२ । ८)। यह मृत्युके पश्चात् यक्षों १४५। ४-८) । इसका दुर्गम मार्गमें पाण्डवोंको एवं देवताओंमें मिल गया ( स्वर्गा० ५ । ३७)। पीठपर बिठाकर ले जाना और उन्हें संकटसे पार करना महाभारतमें आये हुए घटोत्कचके नाम-भैमसेनि, (वन० १७६ । २१)। प्रथम दिनके संग्राममें इसका
भैमि, भीमसेनसुत, भीमसेनात्मज, भीमसूनु, भीमसुता अलम्बुष के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५ । ४२-४५)।
हैडिम्ब, हैडिम्बि, राक्षस, राक्षसाधिप, राक्षसपुङ्गव, दुर्योधनके साथ युद्ध (भीष्म० ५८ । १४-१५)।
राक्षसेश्वर, राक्षसेन्द्र इत्यादि । भगदत्तके साथ मायायुद्ध छेड़ना और इसके अद्भुत पराक्रमसे पगजित होकर कौरवसेनाका उस दिन युद्ध
घटोत्कचवधपर्व-द्रोणपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय बंद कर देना (भीष्म० ६४ । ५७-७२) । भगदत्त
१५३ से १८३ तक)। द्वारा इसका पराजित होना (भीष्म० ८३ । ३०-४०)। घण्टोदर-एक दैत्य या दानव, जो वरुणकी सभामें उनकी दुर्योधनके साथ युद्ध करके उसे प्राण-संशयमें डाल देना सेवाके लिये उपस्थित होता है ( सभा० ९ । १३४)। (भीष्म० ९१ । १९ से १२ । ७ तक)। वङ्गनरेशके घण्टाकर्ण-ब्रह्माद्वारा स्कन्दको दिये गये चार पार्षदोंमेंसे गजराजको मारकर उसे पराजित करना ( भीष्म तीसरा । पहला नन्दिसेन, दूसरा लोहिताक्ष और चौथा कुमुद९२ । १२)। इसके द्वारा विकर्णकी पराजय (भीष्म माली था (शल्य० ४५ । २३-२४)। १२ । ३६ ) । इसके द्वारा बृहदलकी पराजय (भीष्म० घर्णिका-शुक्राचार्यकी पुत्री देवयानीकी धाय (आदि. ९२।११)। कौरव महारथियोंके प्रहारसे व्याकुल
७८ । २५)। होकर इसका आकाशमें उड़ना ( भीष्म
घृतपा-घी पीकर रहनेवाले ऋषि, जो ब्रह्माजीकी आशाके ९३ । ६ )। इसकी आसुरी मायासे
अधीन रहकर सनातनधर्मका पालन करते हैं (शान्ति. कौरवसेनाका पलायन (भीष्म ९४ । ४१-४७) ।
१६६ । २४)। दुर्मुखके साथ इसका इन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११०। १३.
घतवती-भारतकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय १४; भीष्म० १११।३७-३९)। धृतराष्ट्रद्वारा इसकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०। ७२-७३)। अलम्बुषके
प्रजा पीती है (भीष्म० ९ । २३, भीष्म० ९ । ३१)। साथ इसका युद्ध (द्रोण० १४ । ४६-४७)। इसके घृततोय (अथवा घृतोद ) समुद्र-धीका समुद्र (भीष्म० घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ७५)। अलम्बुपके साथ १२ । २)। युद्ध (द्रोण० २५ । ६१-६२) । अलायुधके साथ युद्ध घृताची-एक श्रेष्ठ अप्सरा, जिसके गर्भसे महर्षि प्रमतिद्वारा (द्रोण. ९६ । २७-२८)। इसके द्वारा अलम्बुषका
द्वारा अलम्बुषका झरु' का जन्म हुआ था ( दि. ५। ९)। यह वध (द्रोण० १०९ । २८-२९)। अश्वत्थामाके साथ छः प्रधान अप्सराओंमेंसे एक है (आदि०७४।१८)। युद्धमें इसके पुत्र अञ्जनपर्वाका उसके द्वारा मारा जाना घृताची उन प्रधान ग्यारह अप्सराओंमेंसे एक है, जो तथा इसका भी पराजित होना (द्रोण. १५६ । ५६- अर्जुनके जन्मोत्सवमें नाचने-गाने आयी थी (आदि. १८६) । अश्वत्थामाद्वारा इसकी पराजय (द्रोण. १२२ । ६५)। इसके दर्शनसे स्खलित हुए भरद्वाज १६६ । १५-३०)। श्रीकृष्ण और अर्जुनकी आज्ञासे मनिके वीर्यसे द्रोणाचार्यका जन्म हुआ था (आदि. इसका कर्णके साथ युद्धके लिये जाना (द्रोण. १७३। १२९ । ३५-३८, वन० ४३ । २९) । यह कुबेरसभा६३-६५)। घटोत्कच और जटासुरके पुत्र अलम्बुषका की प्रमुख अप्सरा है (सभा०१०।१०)। इसे घोर युद्ध तथा अलम्बुषका वध (द्रोण.१७४ अध्याय)। देखकर भरद्वाजजीके वीर्यका स्खलन और श्रुतावती नामक इसके रूप तथा रथ आदिका वर्णन और कर्णके साथ कन्याकी उत्पत्ति (शल्य० ३४८ । ६४-६६)। इसके मायामय घोर युद्ध (द्रोण. १७५ अ०)। इसके द्वारा दर्शनसे व्यासजीके वीर्यका स्खलन और शुकदेवजीका अलायुधका वध (द्रोण. १७८ । ३१)। इसका जन्म (शान्ति. ३२४ । २-९)। इसने अष्टावक्रके
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