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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोविकर्ता ( १०७ ) गौतम (आदि० ५९ । ७६)। इन्होंने एक सहस्र योद्धाओं- को साथ ले काशिराज अभिभूके पराक्रमी पुत्रका सामना किया था (द्रोण. ९५। ३८ द्रोण. ९६ । ११)। (२) एक देश, जहाँके निवासी राजा युधिष्ठिरके लिये तीन खरबकी सम्पत्ति लेकर भेंट देनेके निमित्त आये थे, (सभा० ५१।५)। गोविकर्ता-महाबली बैलोंको नाथनेवाला (विराट० २ । गोवितत-अश्वमेध-यज्ञका एक भेद, यही यज्ञ कण्वने अपने दौहित्र भरतसे करवाया था (आदि०७४ । १३०)। गोविन्द-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम, गिरिराज गोवर्धन को धारण करके गौओं तथा व्रजवासियोंकी रक्षा करनेके कारण इन्द्रने भगवान् श्रीकृष्णका गोविन्द' नाम रक्खा, गवेन्द्र' (गौओंके इन्द्र ) पदपर उनका अभिषेक किया (सभा० ३८ । २९ के बाद, पृष्ठ ८०१, कालम १)। गोविन्दगिरि-क्रौञ्चद्वीपका एक पर्वत (भीष्म० १२ । १९)। गोवज-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ६६)। गोवत-गोव्रतधारी पुरुष, जो जहाँ कहीं भी सो लेता है, जिस किसी भी फल-मूल आदिसे भोजनका कार्य चला लेता है तथा वल्कल आदि जिस किसी वस्तुसे शरीरको ढक लेता है, वही यहाँ गोव्रतधारी कहलाता है (उद्योग. ९९ । १४)। गोश्टङ्ग-दक्षिणका एक श्रेष्ठ पर्वत, जिसपर सहदेवने विजय पायी थी (सभा०३१ । ५)। गोसव-एक महायश (वन० ३० । १७)। गोस्तनी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ३)। गोहरणपर्व-विराटपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २५ से ६९ तक)। गौतम-(१) सप्तर्षियोंमेंसे एक, जो अन्य ऋषियोंके साथ अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (आदि० १२२ । ५०-५१)। इनके एक पुत्रका नाम शरद्वान् गौतम था, जो सरकण्डोंके साथ उत्पन्न हुए थे ( आदि. १२९ । २)। इनके दूसरे पुत्रका नाम चिरकारी था (शान्ति० २६६ । ४)। ये ब्रह्माजीकी सभामें उनकी सेवाके लिये उपस्थित होते हैं (सभा० ११ । १९)। इनका अत्रि मुनिके साथ संवाद ( वन० १८५। १५१८)। इनका सत्यवानके जीवित होनेका विश्वास दिला- कर राजा द्युमत्सेनको आश्वासन देना ( वन. २९८ । ११-१३)। सावित्रीसे वनका वृत्तान्त पूछना (वन. २९८ । ३३-३५)। द्रोणाचार्यके पास आकर उनसे युद्ध बंद करनेके लिये कहना (दोण०१९० । ३६-४०)। शर-शय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखनेके लिये अन्य मुनियों के साथ ये भी पधारे थे (शान्ति० ४७ । १०)। इनका पारियात्र पर्वतपर अपने आश्रममें साठ हजार वर्षातक तपस्या करना । इनके यहाँ लोकपाल यमका पदार्पण और इनके द्वारा उनका सत्कार (शान्ति. १२९ । ४-८) । यमके साथ इनकी धर्म-चर्चा (शान्ति. १२९ । ९)। ये उत्तर-दिशाका आश्रय लेकर रहते हैं (शान्ति० २०८ । ३३)। इनका अपने पुत्र चिरकारीको उसकी माता अहल्याके वधके लिये आदेश देना (शान्ति. २६ ।)। वनमें जाकर पत्नी-वधके विषयमें चिन्ता करना ( शान्ति. २६६ । ४७-५८)। वनसे लौटनेपर पत्नीको जीवित पाकर इनके द्वारा पुत्रका अभिनन्दन (शान्ति. २६६ । ६७७१)। इनके शापसे इन्द्रका हरी दाढ़ी-मूंछोंसे युक्त होना (शान्ति० ३४२ । २३) । इनका अङ्गिरासे तीर्थोके विषयमें प्रश्न (अनु. २५ । ५-६) । राजा वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष बताना (अनु. ९३ । ४२)। अरुन्धतीसे अपने शरीरके मोटे न होनेका कारण बताना (अनु० ९३ । ६७) । यातुधानीके समक्ष अपने नामकी व्याख्या करना । (अनु. ९३ । १०)। मृणाल की चोरीके विषयमें शपथ खाना (अनु. ९३ । १२२. १२३)। अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० ९४ । १९) । अहल्यापर वलात्कारके कारण इनका इन्द्रको शाप (अनु. १५३ । ६)। अपने सभी शिष्योंमें उत्तङ्कपर ही इनका अधिक स्नेह और प्रेम होना, उत्तङ्कके इन्द्रिय-संयम, शौच, पुरुषार्थ, क्रियाशीलता और उत्तमोत्तम सेवासे इनका अधिक प्रसन्न होना तथा अधिक प्रेमके कारण ही इनका उत्तङ्कको घर जानेकी आज्ञा न देना (आश्व० ५६ । ४-६)। इनकी आज्ञासे इनकी पुत्रीका रोते हुए उत्तङ्कके आँसुओंका अपने हाथोंमें लेना, इनका उत्तङ्कसे उनके मानसिक शोकका कारण पूछना । उनकी घर जानेकी इच्छा जानकर उन्हें सहर्ष आज्ञा प्रदान करना। उनके गुरु-दक्षिणा देनेकी इच्छा प्रकट करनेपर उनकी सेवासे ही अपनेको संतुष्ट बताना और गुरु-दक्षिणा लेनेकी इच्छा न करना, साथ ही उत्तङ्कके षोडशवर्षीय युवक हो जानेपर उनके साथ अपनी कन्याका विवाह कर देना (आश्व० ५६ । ११--२४)। इनका अपनी पत्नीसे उत्तङ्कके विषयमें पूछना और वह राक्षस सौदासके यहाँ कुण्डल लाने गया है-यह जानकर पत्नीको उसके वधकी आशङ्का बताकर इस अनुचित आशाके लिये उपालम्भ देना । उत्तङ्ककी रक्षाके लिये अपनी पत्नी अहल्याकी इच्छाका अनुमोदन For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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