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अत्रिभार्या (अनसूया)
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नाम अनसूया था ( अनु० १४ । ९५ ) । पराशरका राक्षस-यज्ञ बंद कराने के लिये इनका आगमन (आदि० १८० । ८ ) । महाराज पृथुके यज्ञमें इनका गौतमसे संवाद ( वन० १८५ | १५ – २३ ) । पृथुद्वारा इन्हें धनकी प्राप्ति (वन० १८५ । ३४-३६ ) । अत्रिके शरीरसे विभिन्न अग्नियोंका प्रादुर्भाव ( वन० २२२ । २७ - २९)। द्रोणाचार्य के पास आकर उनसे युद्ध बंद करने को कहना ( द्रोण० १९० । ३५-४० ) । इन्होंने सोमके राजसूय यज्ञमें होताका कार्य किया था ( शल्य० ४३ | ४७ ) । ये देवताओं की प्रार्थनासे दिन में सूर्य होकर तपे और रात में चन्द्रमा बनकर प्रकाशित हुए । इनके तेजसे असुर दग्ध हो गये । इन्होंने सूर्य को तेजस्वी बनाया ( अनु० १५६ । ९ - १४ ) | उत्तर दिशाका आश्रय लेकर उन्नति करनेवाले महर्षियोंमें इनका नाम आया है ( अनु० १६५ | ४४ ) । इनके धर्मात्मा पुत्र दुर्वासा पश्चिम दिशामें रहकर अभ्युदयशील होते हैं (अनु० १६५ । ४३ ) । इन्होंने अपने वंशज निमिको श्राद्ध के विषय में उपदेश दिया था । ( अनु० ९१ । २० - ४४ ) । वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष बताना (अनु० ९३ | ४३ के बाद ) । इनका अरुन्धतीसे अपनी दुर्बलताका कारण बताना (अनु० ९३ । ६२ ) । यातुधानोसे नामका निर्वचन – अर्थ बताना ( अनु० ९३ । ८२) । मृणालकी चोरी नहीं की— इस विषय में शपथ खाना (अनु० ९३ । ११३ ) | ( २ ) शुक्राचार्यके पुत्र । भयानक कर्मकर्ता (आदि० ६५ । ३७) । ( ३ ) भगवान् शिवका एक नाम (अनु० १७ । ३८ ) । अभार्या (अनसूया ) ये अत्रिकी ब्रह्मवादिनी पत्नी थीं । एक बार पतिसे रुष्ट हो उनसे अलग होकर ये तीन सौ वर्षांतक तपस्यामें संलग्न रहीं । उस समय भगवान् शङ्करने प्रसन्न होकर इन्हें पुत्र-प्राप्तिका वरदान दिया था ( अनु० १४ । ९५–९८ ) ।
अथर्वा - ( १ ) एक मुनि, जो छन्द (वेद )के गायक थे ( उद्योग ० ४३ । ५० ) । ये ही अथर्वा अङ्गिरा के नामसे प्रसिद्ध हैं । इन्होंने ही जलमें छिपे हुए सहनामक अग्निका पता लगाया (वन० २२२ । ८ ) । अनिका अथर्वाको अग्निरूपसे प्रकाशित हो देवताओंके लिये हविष्य पहुँचानेका आदेश देना । ( वन० २२२ । ९) । अनि के प्राकट्य के लिये देवताओंका अथर्वाकी शरण में आना और इनकी पूजा करना (वन० २२२ । १८ ) । अथवा समुद्रको मथकर अग्निका दर्शन एवं सम्पूर्ण लोकोंकी सृष्टि करना ( वन० २२२।१९)। (२) अथर्ववेद । ( ३ ) भगवान् शिव - का एक नाम अथर्वशीर्ष (अनु० १७ । ९१ ) । अदिति - दक्षकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी तथा द्वादश आदित्यों
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अद्रिका
की माता (आदि० ६५ । ११ – १६ ) | नरकासुरद्वारा इनके कुण्डलका अपहरण । सत्यभामाजीको इनका वरदान । भगवान् श्रीकृष्णद्वारा इनको दिव्य कुण्डल एवं बहुमूल्य रत्नोंकी भेंट ( उद्योग० ४८ । ८० तथा सभा० ३८ ॥ २९ के बाद ) । मैनाकपर्वत के कुक्षिभाग में स्थित विनशन तीर्थ के भीतर देवी अदितिने पुत्र प्रातिके निमित्त साध्य देवताओं के उद्देश्यसे अन्न ( ब्रह्मौदन ) तैयार किया था ( वन० १३५ । ३) | इन्होंने पूरे एक सहस्र वर्षोंतक भगवान् विष्णु (वामन) को गर्भमें धारण किया था ( वन० २७२ | ६२ ) | अदिति के गर्भ से भगवान् विष्णुके सात बार प्रकट होनेकी चर्चा (शान्ति० ४३ । ६)। देवताओंकी विजयके उद्देश्यसे अन्न तैयार करनेवाली अदितिको बुधका शाप मृत अण्डकी उत्पत्ति तथा उसीसे प्रकट होने के कारण श्राद्धदेवकी मार्तण्ड नामसे प्रसिद्धि ( शान्ति ० ३४२ । ५६ ) । देवी अदितिने एक पैरपर खड़ी रहकर पुत्र के लिये घोर तपस्या की, जिससे भगवान् विष्णु उनके गर्भ में आये (अनु० ८३ । २५-२६ ) । अदृश्यन्ती-महर्षि वसिष्ठकी पुत्रवधू, शक्तिकी पत्नी, पराशरकी माता । वसिष्ठजीको इनके गर्भस्थ बालकके मुख से वेदाध्ययन करनेका शब्द सुनायी देना, उनके पूछनेपर वंशोच्छेदके भय से चिन्तित हुए वसिष्ठको इनका अपने गर्भ में स्थित हुए शक्तिके पुत्रकी सूचना देना ( आदि ० १७६ । ११–१५) । कल्मात्रपादके भयसे भीत हुई अदृश्यन्तीको वसिष्ठका आश्वासन ( आदि० १७६ । २३ )। इनके गर्भसे पराशरका जन्म ( आदि०१७७ । १) । इनके आदर्श पतिप्रेमकी चर्चा (उद्योग ० ११७ । ११ ) ।
अद्भुत - ( १ ) एक अनि जो सह नामक अनिके पुत्र हैं; इनकी मातका नाम मुदिता है; ये सम्पूर्ण भूतोंके अधिपति, आत्मा और भुवनभर्ता हैं; ये ही महाभूतपति, ऐश्वर्यसम्पन्न, सर्वत्र विचरनेवाले तथा 'गृहपति' नामसे जगत्को पवित्र करनेवाले हैं; इनके पुत्रका नाम भरत है ( वन० २२२ । १-६ ) | अद्भुतकी पत्नीका नाम 'प्रिया' और उसके गर्भ से उत्पन्न होनेवाले उनके औरस पुत्रका नाम 'विभूरसि' है (वन० २२२ । २६ ) | ( २ ) भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ | १०८ ) ।
अद्रि - एक राजा, जो विष्वगश्व के पुत्र और युवनाश्वके पिता थे ( वन० २०२ । ३)।
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अद्विका-एक अप्सरा, जो ब्रह्माजी के शाप से मछली होकर यमुनाजीमें रहती थी ( आदि० ६३ । ५८ ८ ) । बाजके द्वारा गिराये गये उपरिचर वसुके वीर्यका इसके द्वारा ग्रहण ( आदि० ६३ । ५९-६० ) । इसके पेटसे