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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनपर्वा अत्रि हाथी ( उद्योग० ९९ । १५)। (३) घटोत्कचके साथी अतिबल-(१) वायुद्वारा स्कन्दको दिया गया एक पार्षद राक्षसकी सवारीमें आया हुआ अञ्जन' नामक दिग्गज (शल्य. ४५ । ४४)। (२) एक नीतिशास्त्रका ज्ञाता (भीष्म० ६४ । ५७ तथा द्रोण० ११२ । ३३)। नरेश, जो राज्य पाकर इन्द्रियोंका गुलाम हो गया था । अञ्जनपर्वा-घटोत्कचका पुत्र ( उद्योग० १९४ । २०)। इसके पिताका नाम अनङ्ग था (शान्ति० ५९ । ९२)। अश्वत्थामाद्वारा इसका वध (द्रोण० १५६ । ८९-९०)। अतिबाह-एक गन्धर्व, जो कश्यपकी पत्नी प्राधाका पुत्र अञ्जलिकावेध-गजराजको वशमें करनेकी एक विद्या, इसे था। उसके तीन भाई और है---हाहा, हूहू तथा तुम्बुरु भीमसेन जानते थे (द्रोण. २६ । २३)। (आदि० ६५ । ५१)। अञ्जलिकाश्रम-एक तीर्थ, इसमें शाकका भोजन करते हए अतिभीम-तिप' नामधारी पाञ्चजन्य अग्निके पुत्र । पंद्रह चीरवस्त्र धारणकर कुछ काल निवास करनेसे कन्याकुमारी उत्तरदेवों अथवा अग्निविनायकोंमेसे एक (वन. तीर्थ के दस बार सेवनका फल प्राप्त होता है (अनु० २२० । ११)। २५ । ५२)। अतियम-वरुणद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से एक । अटवी शिखर-एक जनपदका नाम (भीष्म०९।४८)। इसके दूसरे साथीका नाम यम था (शल्य० ४५।४५)। अठिद-दक्षिण दिशाका एक जनपद (भीष्म०९।६४)। अतिरथ-पूरवंशी राजा मतिनारके तृतीय पुत्र । इनके अन्य तीन भाइयोंके नाम-तंसु, महान् और द्रुह्यु अणी-शूलके अग्रभागका नाम । इसको अपने शरीरके (आदि० ९४ । १४)। भीतर लिये हुए ही विचरनेके कारण माण्डव्य ऋषि अतिलोमा-एक असुर, जो भगवान् श्रीकृष्णद्वारा मारा गया 'अणीमाण्डव्य' कहलाने लगे ( आदि० १०७ । ८)। था (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षि० पृष्ठ ८२५ अणीमाण्डव्य-महर्षि माण्डव्य तथा इनकी तपस्या प्रथम कालम) | (आदि० १०६ । २-३ )। इनका 'अणीमाण्डव्य' नाम अतिवर्चा-हिमवान्द्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से होनेका कारण ( आदि० १०७ । ८)। निरपराध होनेपर भी इनको शूलीपर चढ़ाये जानेका दण्ड मिला एक । इसके दूसरे साथीका नाम सुवर्चा था (शल्य. ४५। ४६)। (आदि० ६३ । ९२ तथा आदि० १०६ । १२)। शूल अति--विन्ध्याचलद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पापाणयोधी के अग्रभागपर इनकी तपस्या (आदि. १०६ । १५)। पार्षदों से एक । इसके दूसरे साथी का नाम उच्छङ्ग था इनकी दयनीय दशासे संतप्त एवं तपस्यासे प्रभावित हो पक्षीरूपधारी महर्षियोंका इनके समीप आगमन (शल्य०४५। ४९-५०)। ( आदि० १०६।१६)। फतिंगोंके पुच्छभागमें सींक अतिषण्ड-बलरामजीके अनन्त नागका रूप धारण करके हुसेड़नेके फलस्वरूप ही आपको शूलीपर चढ़ाये जानेका परम धाम पधारते समय उनका स्वागत करने के लिये आये दण्ड मिला है। इस प्रकार धर्मराजद्वारा इनको सम्बोधन हुए बहुत-से नागोमस एक (मोसल० ४ । १६) । ( आदि० १०७ । ११)। ब्राह्मणवधकी अत्यधिक अतिस्थिर-मेरु पर्वतद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से भयङ्करताका इनके द्वारा प्रतिपादन ( आदि० एक । दूसरेका नाम 'स्थिर' था (शल्य ०४५ । ४८)। १०७ । १५) । धर्मराजको शूद्रयोनिमें जन्म लेनेका इनके अत्रि-एक ब्रह्मर्षि, जो ब्रह्माजीके मानस पुत्र थे ( आदि० द्वारा अभिशाप (आदि. १०७ । १६, ६३।९६)। ६५। १० तथा शान्ति के १६६, २०७, २०८ अध्याय)। चौदह वर्षकी आयुतक किये हुए अशुभ कर्मोंका फल ये ब्रह्माजीके सात पुत्रोंएवं सात ब्रह्माओंमेंसे एक हैं। इनके किसीको नहीं प्राप्त होगा' इस प्रकार इनकी घोषणा वंशमें प्राचीनवर्हि उत्पन्न हुए थे, जो दस प्रचेताओंके ( आदि० १०७ । १७)। श्रीकृष्णके हस्तिनापुर जाते पिता थे । अत्रिके दो औरस पुत्र कहे गये हैं...वीर्यवान् समय मार्गमें उनसे जो ऋषि मिले थे, उनमें अणीमाण्डव्य राजा गेम और भगवान् अर्यमा (शान्ति० २०८ । भी थे ( देखिये उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य ३-.)। ये इक्कीस प्रजापतियों से एक हैं (शान्ति. पाठ)। इनका विदेहराज जनकसे तृष्णाका त्याग करने के ३३४ । ३५)। चित्रशिखण्डी' कहे जानेवाले सात ऋषियोंविषयमें प्रश्न करना (शान्ति. २७६ । ३)। शिव मेंसे भी एक है (शान्ति० ३३५ । २७)। सम्पूर्ण लोकोंमहिमाके विषयमें युधिष्ठिरको अपना अनुभव बताना की उत्पत्ति और प्रतिष्ठाके आधारभूत आठ प्रकृति' कहे ( अनु० १८ । ४६-५१३)। जानेवाले मरीचि आदि प्रजापतियोंमें भी इनकी गणना की अणुह-एक प्राचीन राजाका नाम ( आदि० । २३२)। गयी है (शान्ति० ३४० । ३४-३६) । इनकी पत्नीका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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