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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुल्म गोदावरी ---- - गुल्म-सेना-गणनाके लिये एक पारिभाषिक शब्द-तीन छोड़कर पितामह ब्रह्माजीकी सेवामें रहता था (वन. सेनामुखका एक गुल्म होता है ( आदि० २ । २०)। २७४ । १२)। गुह-एक दक्षिण भारतीय म्लेच्छ जातिका नाम (शान्ति० गोकर्ण-(१) एक प्राचीन तीर्थ, जहा पूर्वकालमें भगवान् २०७॥ ४२)। शेषने तपस्या एवं एकान्तवास किया था (आदि. ३६ । ३)। यह भगवान् शिवका स्थान है, यहाँ तीर्थगुह्यक-(१) देवयोनिके अन्तर्गत एक जाति, इस जातिके लोग यात्राके प्रसंगमें अर्जुनका आगमन हुआ था (आदि. द्रौपदीका स्वयंवर देखने आये थे (आदि. १८६७)। ये २१६। ३४)। यह समुद्रके मध्यमें विद्यमान, त्रिभुवनकुबेरकी सभाका वहन करते हैं (सभा० १० ।३)। विख्यात और अखिल लोकवन्दित तीर्थ है। यहाँ ब्रह्मा गन्धमादनपर भीमसेनने अपनी गदासे गुह्यकोंको मारा था। (शल्य. ११।५५-५७)। महाभारत-युद्धमें मारे गये आदि देवता, तपोधन महर्षि और भूत-यक्ष आदि भगवान् शङ्करकी उपासना करते हैं। यहाँ भगवान् योद्धाओंमेंसे कुछ लोग गुह्यकोंके लोकोंको प्राप्त हए (स्वगों० शिवकी पूजा करके तीन रात उपवास करनेवाला मनुष्य ४।२३)(२) एक यक्ष,जो कुबेरकी सभामें उनकी सेवाके लिये अश्वमेध यज्ञका फल पाता और गणपति-पद प्राप्त कर उपस्थित होता था (सभा०१०।१५)। वह ब्रह्माजीकी लेता है (वन० ८५ । २४-२७)। गोकर्ण तीर्थ तीनों सभामें भी उपस्थित होता है (सभा० ११ । ४९)। लोकोंमें विख्यात है । वह पवित्र कल्याणमय और शुभ गृत्समद-इन्द्र के प्रिय सखा और बृहस्पतिके समान एक है । अशुद्ध अन्तःकरणवालोंके लिये यह तीर्थ अत्यन्त श्रेष्ठ मुनि । शिव-महिमाके विषयमें इनका युधिष्ठिरसे अपना दुर्लभ है (वन०८८।१५-१६)। (२) यह एक अनुभव बताना (अनु० १८। १९-२९)। ये वीतहव्य तपोवन है (भीष्म० ६ । ५१)। के पुत्र थे और रूपमें इन्द्रकी समानता करते थे, किसी समय दैत्योंने इन्हें 'इन्द्र' मानकर पकड़ लिया था। गोकर्णा-कर्णके सर्पमुख बाणमें प्रविष्ट अश्वसेन नागकी इनके पुत्रका नाम सुचेता था (अनु०३० । ५८-५९)। माता (कर्ण० ५० । ४२)। ऋग्वेदमें महामना गृत्समदकी श्रेष्ठ श्रति विराजमान है, गोकर्णी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।२५)। ब्राह्मणलोग इनका बड़ा सम्मान करते हैं । ये ब्रह्मर्षि गोकुल-अधिक गौओंके रहनेका स्थान एवं नन्दका गोकुलगृत्समद बड़े तेजस्वी और ब्रह्मचारी थे (अनु. ३०। जहाँ पले हुए ग्वालोको सव्यसाची अर्जुनने मारा था ६०-६१)। (सभा० ३८ । पृष्ठ ७९९-८००; कर्ण० ५। ३८) । गृध्रकूट-एक पर्वत, जहाँ लंगूरोंने मगधराज बृहद्रथको गोतीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ पाण्डवलोग तीर्थयात्रा करते बचाया था (शान्ति० ४९। ८२)। __ हुए गये थे (वन० ९५ । ३)।गृध्रपत्र-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ७४)। गोदा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य०४६ । २८)। गृध्रवट-महादेवजीका स्थान, जहाँ भस्मस्नान कर्तव्य है। गोदावरी-एक नदी, जो वरुणकी सभामें उपस्थित होती है वहाँ यात्रा करनेसे ब्राह्मणको व्रतके पालनका पुण्य फल (सभा०९।२०)। यह दक्षिण भारतके नासिक जिलेमें प्राप्त होता है तथा अन्य वर्णवालोंके सारे पाप नष्ट हो । स्थित त्र्यम्बक ज्योतिर्लिङ्गके समीप ब्रह्मगिरिसे निकलती जाते हैं (वन०८४ । ९१-९२)। और समुद्र में मिलती है। इसमें अगाध जल भरा है। गृहदेवी-राक्षसी जरा, जिसे ब्रह्माजीने गृहदेवी' के नामसे बहत-से तपस्वी इसका सेवन करते हैं तथा यह सबके उत्पन्न किया था ( सभा० १८ । १.२)। दानवोंके लिये कल्याणस्वरूपा है ( बन० ८८।२)। सिद्ध विनाशके लिये इसकी सृष्टि हुई है। यह दिव्यरूप धारण पुरुषोंसे सेवित गोदावरीके तटपर जाकर स्नान करनेसे करनेवाली है । जो अपने घरकी दीवारपर अनेक पुत्रोसे गोमेध यज्ञका फल मिलता है और वासुकिका लोक प्राप्त घिरी हुई युवती स्त्रीके रूपमें इसका चित्र अङ्कित करती होता है (वन०४५।३३,८८।२)। राजा युधिष्ठिर तीर्थहै, उसके घरमें सदा वृद्धि होती है ( सभा० १८। यात्रा करते हुए यहाँ भी आये थे। यह समुद्रगामिनी नदी है ( वन० ११८ ॥३)।यह अग्निकी उत्पत्तिस्थान है (वन. २२२ । २४)। दशरथनन्दन भगवान् गेरु-एक पर्वतीय धातु (वन० १५८ । ९५)। श्रीरामने (पञ्चवटीमें) गोदावरीके तटपर कुछ कालगो (गौ)-महर्षि पुलस्त्यकी भार्याका नाम गो या गौ था। तक निवास किया था (वन० २७७ । ४१)। भारतवर्षइनके गर्भसे वैश्रवण नामक पुत्र हुआ, जो पिताको की प्रधान नदियोंमें गोदावरीकी गणना है (भीष्म० म. ना०१४ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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