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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गीता www.kobatirth.org ( १०४ ) लगा देनेके लिये भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनको जो उपदेश दिया था, वही 'गीता' ( अथवा 'श्रीमद्भगवद्गीता' ) के नाम से विख्यात है । वेदव्यासजीने गीता के इस प्रसङ्गको भीष्मपर्वके श्रीमद्भगवद्गीतापर्व में अध्याय २५ से ४२ तक लिपिबद्ध किया है । इसमें कुल सात सौ श्लोक हैं । श्रीमद्भगवद्गीता के प्रत्येक अध्यायके विषयोंका संक्षिप्त दिग्दर्शन इस प्रकार है- दोनों सेनाओं के प्रधान- प्रधान वीरों एवं शङ्खध्वनिका वर्णन तथा स्वजन - वध के पाप भयभीत हुए अर्जुनका विषाद (भीष्म० २५ अध्याय ) । अर्जुनको युद्धके लिये उत्साहित करते हुए भगवान्के द्वारा नित्यानित्यवस्तुविवेचनपूर्वक सांख्ययोग, कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञकी स्थिति और महिमाका प्रतिपादन ( भीष्म० २६ अध्याय ) । ज्ञानयोग और कर्मयोग आदि समस्त साधनों के अनुसार कर्तव्य कर्म करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन एवं स्वधर्म पालनकी महिमा तथा कामनिरोधके उपायका वर्णन ( भीष्म० २७ अध्याय ) । सगुण भगवान् के प्रभाव, निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषोंके आचरण और उनकी महिमा - का वर्णन करते हुए विविध यज्ञों एवं शानकी महिमाका वर्णन ( भीष्म० २८ अध्याय ) । सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तिसहित ध्यानयोगका वर्णन ( भीष्म० २९ अध्याय ) । निष्काम कर्मयोगका प्रतिपादन करते हुए आत्मोद्धार के लिये प्रेरणा तथा मनोनिग्रहपूर्वक ध्यानयोग एवं योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन ( भीष्म० ३० अध्याय ) | ज्ञान-विज्ञान, भगवान् की व्यापकता, अन्य देवताओंकी उपासना एवं भगवान्को प्रभावसहित न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालों की महिमाका कथन ( भीष्म० ३१ अध्याय ) । ब्रह्म अध्यात्म और कर्मादिके विषय में अर्जुनके सात प्रश्न और उनका उत्तर एवं भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गोंका प्रतिपादन ( भीष्म० ३२ अध्याय ) | ज्ञान-विज्ञान और जगत् की उत्पत्तिका, आसुरी और दैवी सम्पदावालों का, प्रभावसहित भगवान् के स्वरूपका, काम निष्काम उपासनाका एवं भगवद्भक्तिकी महिमा का वर्णन ( भीष्म० ३३ अध्याय ) । भगवान्‌की विभूति और योगशक्तिका तथा प्रभावसहित भक्तियोगका कथन, अर्जुनके पूछनेपर भगवान् द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगशक्तिका पुनः वर्णन ( भीष्म० ३४ अध्याय ) । विश्वरूपका दर्शन करानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना, भगवान् और संजयद्वारा विश्वरूपका वर्णन, अर्जुनद्वारा भगवान्‌ के विश्वरूपका देखा जाना, भयभीत हुए अर्जुनद्वारा भगवान् की स्तुति प्रार्थना, भगवान् द्वारा विश्वरूप और चतुर्भुजरूपके दर्शनकी महिमा और केवल अनन्य भक्तिसे ही भगवान्की प्राप्तिका कथन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुस्कन्द ( भीष्म० ३५ अध्याय ) । साकार और निराकारके उपासकोंकी उत्तमताका निर्णय तथा भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं भगवत्प्राप्तिवाले पुरुषोंके लक्षणोंका वर्णन ( भीष्म० ३६ अध्याय ) । ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ और प्रकृति-पुरुषका वर्णन ( भीष्म० ३७ अध्याय ) | ज्ञानकी महिमा और प्रकृति- पुरुषसे जगत् की उत्पत्तिका, सत्त्व, रज, तम - तीनों गुणोंका, भगवत्प्राप्ति के उपायका एवं गुणातीत पुरुषके लक्षणोंका वर्णन ( भीष्म० ३८ अध्याय ) । संसार वृक्षका, भगवत्प्राप्तिके उपायका, . जीवात्माका प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूपका एवं क्षरअक्षर और पुरुषोत्तमके तत्त्वका वर्णन भीष्म० ३९ अध्याय ) । फलसहित दैवी और आसुरी सम्पदाका वर्णन तथा शास्त्रविपरीत आचरणोंको त्यागने और शास्त्रअनुकूल आचरण करने के लिये प्रेरणा ( भीष्म० ४० अध्याय ) | श्रद्धाका और शास्त्रविपरीत घोर तप करनेवालों का वर्णन, आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथकपृथक् भेद तथा ॐ तत् सत्के प्रयोगकी व्याख्या ( भीष्म० ४१ अध्याय ) । त्यागका, सांख्य सिद्धान्तका, फलसहित वर्ण-धर्मका, उपासनासहित ज्ञाननिष्ठाका, भक्तिसहित निष्काम कर्मयोगका एवं गीताके माहात्म्यका वर्णन ( भीष्म० ४२ अध्याय ) | गुडाकेश- अर्जुनका एक नाम ( आदि० १३८ । ८ ) । ( निद्राको जीत लेनेके कारण अर्जुनका नाम गुडाकेश हुआ ) | ( देखिये अर्जुन ) गुणकेशी-इन्द्रके प्रिय सारथि मातलिकी कन्या (उद्योग० ९७ । १३ ) | नागकुमार सुमुखके साथ विवाह हुआ ( उद्योग० १०४ । २९ ) । गुणमुख्या स्वर्गकी एक अप्सरा, जो अर्जुनके जन्मकाल में अन्य अप्सराओंके साथ नृत्य करने आयी थी ( आदि० १२२ । ६१ ) । गुणावती-एक नदी, जिसके उत्तर प्रान्त में परशुरामजी ने क्षत्रियोंका संहार किया था ( द्रोण० ७० । ८ )। गुणावरा स्वर्गकी एक अप्सरा, जो अर्जुनके जन्मकालमें अन्य अप्सराओंके साथ नृत्य करने आयी थी ( आदि० १२२ । ६१ ) । गुप्तक-सौवीर देशका राजकुमार, जो जयद्रथका साथी था ( वन० २६५ । १० ) । अर्जुनद्वारा इसका वध ( वन० २७१ । २७ ) । गुरुभार - गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग ० १०१ । १३ ) । गुरुस्कन्द - एक पर्वतराज ( आश्व० ४३ । ५ ) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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