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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गार्दभि ( १०३ ) गीता (अनु. १२७ । ९-१४)। (२) एक भारतीय गिरिका-शुक्तिमती नदीकी पुत्री, जिनका जन्म कोलाहल जनपद, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने जीता था (द्रोण पर्वतके द्वारा शुक्तिमतीके गर्भसे हुआ था (आदि. ११।१५)। ६३ । ३७)। यही राजा उपरिचर वसुकी पत्नी हुई गार्दभि-विश्वामित्रके एक ब्रह्मवादी पुत्र (अनु० ४।५९)। (आदि० ६३ । ३९)। गार्हपत्य-(१) सात पितरों से एक (सभा० ११ । ४६)। गिरिगह्वर-पूर्वोत्तर भारतका एक जनपद ( भीष्म (२) एक अग्नि (वन० २२४ । ३५)। ९। ४२)। गालव-युधिष्ठिरकी सभामें विराजनेवाले एक ऋषि (सभा. गिरिप्रस्थ-निषधदेशका एक पर्वत, जिसके आश्रयमें छिपे ४ । १५)।ये इन्द्रकी सभामें भी बैठते हैं (सभा०॥ १०)। गुरुदक्षिणा माँगनेके लिये इनका गुरु विश्वामित्र- रहकर इन्द्रने अपना कार्य सिद्ध किया था (वन० से हठ करना ( उद्योग० १०६ । २५)। गुरुदक्षिणाके ३१५। १३)। लिये आठ सौ घोड़े पानेकी चिन्ता ( उद्योग० १०७ । गिरिव्रज-मगधदेशकी प्राचीन राजधानी । जरासंध गिरिव्रज३-१५)। गरुडकी पीठपर बैठकर पर्व दिशाकी ओर में ही रहता था। उसके समयमें गिरिव्रजकी जो प्राकृतिक जाते हुए गरुडके वेगसे इनका व्याकुल होना (उद्योग स्थिति थी, उसका वर्णन श्रीकृष्णने अर्जुनसे इस प्रकार ११२।५-१८)। गरुडके साथ धनके लिये ययातिके पास किया था यहाँ पशुओंकी अधिकता है, जलकी सदा जाना ( उद्योग० ११४।९) । ययातिकन्या माधवी पूर्ण सुविधा रहती है, रोग-व्याधिका प्रकोप नहीं होता। को लेकर अयोध्यानरेश हर्यश्वके पास जाना ( उद्योग सुन्दर महलोंसे भरा-पूरा यह नगर बड़ा मनोहर जान ११५।१८)। राजा हर्यश्वसे दो सौ घोड़े शुल्करूपमें पड़ता है । यहाँ विहारोपयोगी विपुल, वराह, वृषभ लेकर माधवीको एक पुत्र उत्पन्न करनेके लिये उनके (ऋषभ), ऋषिगिरि ( मातंग) तथा चैत्यक नामक हाथमें सौंपना (उद्योग. ११६ | १५)। पुत्रोत्पत्तिके पर्वत हैं। बड़े-बड़े शिखरोंवाले ये पाँचों सुन्दर पर्वत बाद पुनः माधवीको लेकर इनका दिवोदासके पास जाना शीतल छायावाले वृक्षोंसे सुशोभित हैं और एक साथ (उद्योग. ११६ । २२)। दो सौ घोड़े शुल्करूपमें मिलकर एक-दूसरेके शरीरका स्पर्श करते हुए मानो लेकर माधवीको दिवोदासके हाथमें एक पुत्रकी उत्पत्तिके गिरिव्रज नगरकी रक्षा कर रहे हों। यहाँ अर्बुद और लिये देना ( उद्योग० ११७७)। पुत्रोत्पत्तिके पश्चात् शक्रवापी नामवाले दो नाग रहते हैं। स्वस्तिक और वहाँसे माधवीको लेकर गालवका उशीनरके पास जाना मणि नामक नागोंके भी यहाँ उत्तम भवन हैं । यहाँ और उशीनरको माधवीके गर्भसे दो पुत्र उत्पन्न करनेकी सदा मेघ समयपर वर्षा करते हैं (सभा० २१-१०)। प्रेरणा देते हुए उनसे चार सौ घोड़े माँगना ( उद्योग. यहाँ जरासंधने अपनेद्वारा जीते गये नरेशोंको कैद करके ११८। ३-८)। गरुडकी सलाहसे विश्वामित्रको छ: रखा था (सभा० १४ । ६३)। गिरिजजसे मथुराकी सौ घोड़े और माधवीको देकर गुरुदक्षिणा चुकाना ओर जरासंधने अपनी गदा फेंकी थी (सभा० १९ । (उद्योग० ११८।१४)। फिर एक पुत्रकी उत्पत्तिके २३-२४ )। श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेन गिरिव्रजमें बाद माधवीको राजा ययातिको लौटाकर इनका वनको गये । भीमने वहाँ जरासंधको मारा और भगवान् जाना ( उद्योग० ११८ । २४) । स्वर्गसे गिरे हुए श्रीकृष्णने बंदी राजाओंको कैदसे छुड़ाया। फिर भयभीत ययातिको इनका अपने तपका आठवाँ भाग देना हो शरणमें आये हुए जरासंधपुत्रको राजाके पदपर अभिषिक्त किया (सभा० २४ अध्याय)। भीमसेनने (उद्योग० १२१ । २८) । नारदजीसे श्रेयके विषयमें पूर्वदिग्विजयके समय जरासंधके पुत्रको 'कर' देनेकी प्रश्न करना (शान्ति. २८७ । ५-११)। शिवमहिमा शर्तपर उसके राज्यपर प्रतिष्ठित कर दिया (सभा. के विषयमें युधिष्ठिरसे अपना अनुभव सुनाना (अनु. ३० । १७-१८) । गिरिव्रजमें ही राजर्षि धुन्धुमार १८ । ५२-५८)। अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होने देवताओंके वरदानको त्यागकर सोये थे ( अनु. पर शपथ करना (अनु० ९४ । ३७)। महर्षि गालव विश्वामित्रजीके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक थे ( अनः ।। ६ । ३९)। ५२) । इनके पुत्रका नाम शृजवान था, जो एक गीताप्रया-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य.४६ । महर्षि थे और जिन्होंने वृद्धकन्यासे विवाह किया था )। (शल्य०५२ । १४-१५)। (२)एक बाभ्रव्यगोत्रीय गीता-कुरुक्षेत्रमें युद्धके अवसरपर स्वजनोंके वधकी ऋषि, जो वेदके क्रमविभागके पारङ्गत विद्वान् थे आशङ्कासे मोहग्रस्त हुए अर्जुनके शोक, चिन्ता और (शान्ति० ३४२। १०४)। दैन्यका निवारण करके उन्हें कर्तव्य कर्ममें निष्काम भावसे For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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