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गान्धारी
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( १०२ )
सौ पुत्रोंकी प्राप्ति के लिये वर याचना (आदि० ११४ । ८ ) । गान्धारीका गर्भ धारण । कुन्तीके पुत्र होनेका समाचार सुनकर महान् दुःखके कारण अपने उदरपर आघात और इनके गर्भ से एक मांस-पिंडका प्रादुर्भाव ( आदि० ११४ । ९-१२) । व्यासजीके आदेशानुसार सौ टुकड़ों में विभक्त हुए उस मांस-पिण्डकी रक्षा व्यवस्था होनेपर उससे सौ पुत्रोंकी उत्पत्ति (आदि० ११४ । १७-२२) । पुत्रीके लिये इनका मनोरथ एवं व्यासद्वारा उसकी पूर्ति ( आदि० ११५ । ९-१७ ) । इनके द्वारा धृतराष्ट्रको चेतावनी ( सभा० ७५ । २- १० ) । इनका दुर्योधनको समझाना ( उद्योग० ६९ । ९-१० ) । युद्ध होने के विषयमें इनका धृतराष्ट्रको ही दोषी बताना ( उद्योग ० १२९ । १०-१५ ) । पाण्डवको आधा राज्य देकर संधि करनेके लिये दुर्योधनको समझाना ( उद्योग ० १२९| १९–५४ ) । कर्णवधका समाचार सुनकर मूर्छित होकर गिरना (कर्ण० ४ । ५ कर्ण० ९६ । ५५) । श्रीकृष्ण के समझाने पर उन्हें उत्तर देना ( शल्य० ६३ । ६६ - ६८ ) । पाण्डवोंको शाप देनेकी इच्छा करना ( स्त्री० १४ । २ ) । व्यासजीके समझानेपर उन्हें उत्तर देना ( स्त्री० १४ । १४ - २१ ) । भीमसेनपर कुपित होकर उनसे अन्यायका कारण पूछना ( स्त्री० १५ । १२–१४; स्त्री० १५ । २१–२३ ) । युधिष्ठिरपर कुपित होकर उन्हें पूछना और इनकी तनिक-सी दृष्टि पड़ते ही युधिष्ठिरके पैरोंके नखोंका काला पड़ जाना ( स्त्री० १५ । २४-३० ) । कुन्ती और द्रौपदीको धीरज देना ( स्त्री० १५ । ४१-४४ ) | युद्धस्थलमें मारे गये स्वजनोंको देखकर श्रीकृष्णके समक्ष विलाप करना ( स्त्री० १६ । १८- ६० ) । दुर्योधनको मरा हुआ देखकर श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप करना ( स्त्री० १७ । ५ - ३२ ) । अपने अन्य पुत्र तथा दुःशासनको देखकर श्रीकृष्णके सम्मुख इनका करुण रोदन (स्त्री० १८ अध्याय ) । विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन, विविंशति और दुःसहको देखकर श्रीकृष्णके सम्मुख इनका विलाप ( स्त्री० १९ अध्याय ) । इनके द्वारा श्रीकृष्णसे उत्तरा और विराट-कुलकी स्त्रियोंके शोक और विलापका वर्णन ( स्त्री० २० अध्याय ) । कर्णके शवको देखकर उसके शौर्य तथा उसकी स्त्रीके विलापका श्रीकृष्णके सम्मुख वर्णन (स्त्री० २१ अध्याय ) । अवन्तीनरेश, जयद्रथ तथा दुःशलाको देखकर इनका श्रीकृष्णके सम्मुख शोक प्रकट करना ( स्त्री० २२ अध्याय ) । शल्य, भगदत्त, भीष्म और द्रोणको देखकर श्रीकृष्ण के सम्मुख इनका विलाप ( स्त्री० २३ अध्याय ) । भूरिश्रवाकी पत्नियोंका विलाप तथा शकुनिको देखकर श्रीकृष्ण के सम्मुख इनका शोकोद्वार ( स्त्री०
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गार्ग्य
२४ अध्याय ) । अन्यान्य वीरोंको मरा हुआ देखकर विलाप करना और कुपित होकर श्रीकृष्णको शाप देना ( स्त्री० २५ । १-३६ स्त्री० २५ । ४३-४६ । राजा धृतराष्ट्र के साथ इनका वनको प्रस्थान ( आश्रम ० १५ । ८- ९ ) । वनमें व्यासजीके समक्ष खड़ी होकर इनका उनसे महाराज धृतराष्ट्र तथा द्रौपदी, सुभद्रा, कुन्ती आदि सभी कुरुकुलकी स्त्रियोंके स्वजनोंके लिये होनेवाले शोकका वर्णन करना और सबको मरे हुए सम्बन्धियोंके दर्शन कराने का प्रस्ताव करना ( आश्रम० २९ । ३७ - ४९ ) । व्यासजीकी कृपासे इनका राजा धृतराष्ट्र तथा कुरुकुलकी स्त्रियोंके साथ गङ्गाजीसे प्रकट हुए अपने परलोकवासी स्वजनोंके दर्शन करना ( आश्रम० ३२ अध्याय ) | धृतराष्ट्र और कुन्तीके साथ इनका गङ्गाद्वारके वनमें दावानलसे दग्ध होना ( आश्रम ० ३७ । ३१-३२ ) । युधिष्ठिरका इनके लिये जलाञ्जलि देना तथा नाना प्रकारकी वस्तुओं का दान एवं श्राद्ध कर्म करना ३९ अध्याय ) | 'गान्धारीके शाप की सफलताका अवसर प्राप्त हुआ है' - ऐसी श्रीकृष्णकी मान्यता ( मौसल ० २ । २१ ) । धृतराष्ट्र के साथ इनको कुबेरके दुर्लभ लोकी प्राप्ति (स्वर्गा० ५। १४) । (३) उमादेवीकी
आश्रम ०
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अनुगामिनी सहचरी (वन० २३१ । ४८ ) । महाभारतमें आये हुए गान्धारीके नाम - गान्धारराजदुहिता,
सौबलेय, सौबली, सुबलजा, सुबलपुत्री, सुबलात्मजा आदि । गायत्री - चौबीस अक्षरोंका एक वैदिक मन्त्र; स्थावर-जङ्गम उन्नीस प्राणी हैं। इनके साथ पाँच महाभूतोंको गिन लेनेपर इनकी संख्या चौबीस हो जाती है । गायत्रीके भी इतने ही अक्षर होते हैं; इसलिये इन चौबीस भूर्तोको भी लोकसम्मत गायत्री कहते हैं । जो इस सर्वगुणसम्पन्न पुण्यमयी गायत्रीको यथार्थरूपसे जानता है वह कभी नष्ट नहीं होता है ( भीष्म० ४ । १५-१६ ) । गायत्री त्रिपुर - विजयके समय महादेवजीके रथके ऊपरी भागकी बन्धन-रज्जु बनी थी ( कर्ण० ३४ । ३५ ) । कन्या गायत्रीने कार्तवीर्य अर्जुनको ब्राह्मणोंकी श्रेष्ठताके विषय में चेतावनी देते हुए आकाशवाणीद्वारा अपना मन्तव्य प्रकट किया था ( अनु० १५२ । १४, २० ) । गायत्री-स्थान- एक तीर्थस्थान, जहाँ तीन रात निवास करनेवाला सहस्र गोदानका फल पाता है ( वन० ८५। २८ ) । गायन - स्कन्दका एक सैनिक ( शक्य० ४५ । ६७ ) । गार्ग्य ( १ ) - एक प्राचीन ऋषि, जो देवराज इन्द्रकी सभामें विराजमान होते हैं ( सभा० ७ । १८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५५ ) । इनके द्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन