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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरुड़ ( १०० ) गवाक्ष ऋषियोंको लेकर उड़नेकी अद्भुत घटना (आदि० २९। राजर्षि ययातिके पास चलनेका परामर्श (उद्योग० ११४ । ३७ से ३० । २५)। बालखिल्य मुनियोंद्वारा इनका १-८)। ययातिसे अपने आगमनका प्रयोजन बताना नामकरण (आदि० ३० । ६-७)। इनके पिताके स्तुति (उद्योग०११४ । ११-२०)। ययातिकी कन्याके करनेपर बालखिल्य मुनियोंद्वारा उस शाखाका मिलनेपर गालवसे विदा लेना (उद्योग० ११५।१६)। परित्याग (आदि०३०।१६) । इनके स्वर्गके समीप गालवको गुरुदक्षिणाके लिये छः सौ घोड़े और माधवीजानेपर वहाँ अनेक प्रकारके अशुभसूचक उत्पात होना __ को भी गुरुकी सेवामें समर्पित करनेके लिये सम्मति देना (आदि० ३० । ३२-३८)। भयभीत हुए इन्द्रको (उद्योग० ११९ । ९-१०)। इनके द्वारा स्कन्दको बृहस्पतिका अमृतके लिये गरुडके आनेकी सूचना देना अपने पुत्र मयूरका दान (शल्य. ४६ । ५१)। (आदि० ३० । ४०-४२)। अमृत हरण करनेके श्रीनारायणकी आज्ञासे राजा उपरिचर वसुको पातालसे लिये इनको स्वर्ग आते देख इन्द्रका देवताओंको सावधान उठाकर आकाशचारी बनाना ( शान्ति. ३३७ । करना (आदि० ३० । १२-१४)। इनकी जन्मकथा ३७)। ऋषियोंके समाजमें नारायणकी महिमाके विषयमें तथा इनका पक्षियोंके इन्द्रपदपर अभिषेक (आदि० ३१ । अपना अनुभव सुनाना ( अनु० १३ । दा० पाठ)। ३४-३५, आदि. ३२ । १-२५)। अपना लघु रूप इनका कार्तिकेयको मयूर भेंट करना ( अनु० बनाकर चक्रमें इनका धुसना और अमृतके स्थानमें प्रवेश ८६ । २०)। करना । वहाँ अमृतरक्षक अद्भुत पराक्रमी दो सपोको महाभारतमें आये हुए गरुड़के नाम-अरुणानुज, मारकर इनका अमृतपात्रको लेकर उड़ना (आदि० भुजगारि गरुत्मान्, काश्यपेय: खगराट, पक्षिराट पक्षिराज, ३३ । १-११)। मार्गमें इनका भगवान् विष्णुसे पतगपति, पतगेश्वर, सुपर्ण, ताय, वैनतेय, विनतानन्दउनके ध्वजपर रहने तथा बिना अमृत पिये अजर-अमर वर्धन, विनतासूनु, विनतासुत, विनतात्मज आदि । होनेका वर पाना एवं उनके लिये भी स्वयं वाहन होनेका वर देना (आदि. ३३ । १२-१६)। इन्द्रके साथ गरुड़व्यूह-सेनाकी मोर्चाबंदीकी एक विधि, जिसके अनुसार इनका युद्ध और मित्रता (आदि.३।२८से ३४। सैनिकोंको गरुड़की आकृतिमें खड़ा किया जाता ७) । इन्द्रके कथनानुसार गकड़के द्वारा नागोंका अमृत- है (भीष्म० ५६ । २)। की प्राप्तिसे वञ्चित होना, इन्द्रके मनोरथकी पूर्ति और गर्ग-एक प्राचीन महर्षि । इनका द्रोणाचार्यके पास आकर विनताका दासीभावसे छुटकारा (आदि० ३४ । ८- उनसे युद्धबंद करनेके लिये कहना(द्रोण० १९०।३५-४०)। २०)। इनके कुशोपर अमृत रखनेसे उनका पवित्र होना महाराज पृथुके दरबारमें ज्योतिषी होना (शान्ति. ५९ । ( आदि. ३४ । २४)। ये अर्जुनके जन्म-समयमें वहाँ १५)। महात्मा गर्गने किसी समय गन्धर्वराज पधारे थे ( आदि० १२२ । ५०)। श्रीकृष्णके ध्वजपर विश्वावसुको वेद्य तत्त्वकी नित्यताका उपदेश दिया था गरुडकी स्थिति (सभा० २४ । २२-२५)। इनका (शान्ति० ३१८ । ५९-६३)। शिवमहिमाके विषयमें ऋद्धिमान् नामक नागको पकड़ना (वन० १६०। युधिष्ठिरसे अपना अनुभव बताना ( अनु० १८ । १५)। इनकी गर्वपूर्ण आत्मप्रशंसा (उद्योग० १०५। ३८-३९)। ३-१७)। भगवान् विष्णुद्वारा इनके गर्वका नाश गर्गस्रोत-सरस्वतो-तटवर्ती एक तीर्थ, जहाँ तपस्यासे पवित्र (उद्योग० १०५।२२)। इनकी भगवान्से क्षमा अन्तःकरणवाले वृद्धगर्गने कालका ज्ञान, कालकी गति, याचना (उद्योग०१०५। २७-२९)। गुरुदक्षिणा- ग्रहों और नक्षत्रोंके उलट-फेर आदि बातोंकी जानकारी की के लिये चिन्तित हुए गालवको इनका आश्वासन देना (शल्य० ३७ । १४-१८)। (उद्योग० १०७ । १७-१९)। गालवसे पूर्व दिशाका गषय-एक महापराक्रमी वानरराज, जो एक अरब सेनाके वर्णन करना (उद्योग० १०८ अध्याय ) । गालवसे 'साथ श्रीरामके समीप पधारे थे (वन.२८३ । ३)। दक्षिण दिशाका वर्णन करना (उद्योग०१०९अध्याय)। गालवसे पश्चिम दिशाका वर्णन करना (उद्योग.११. गवल्गण-मुनियोक समान ज्ञानी एवं धर्मात्मा सञ्जयके पिता अध्याय) । गालवसे उत्तर दिशाका वर्णन करना (आदि० ६३ । ९०)। (उद्योग. १११ अध्याय)। ऋषभ पर्वतपर पंखहीन गवाक्ष-(१) एक गोलांगूल ( लंगूर ) जातिका वानर, होना और शाण्डिलीसे क्षमा याचना करना (उद्योगः जो देखने में बड़ा भयङ्कर था। अपने साथ साठ सहस्र ११३।८-११)। शाण्डिलीके वरदानसे पंखोकी प्राप्ति कोटि(६खरब)वानर-सेना लेकर श्रीरामके सामने उपस्थित (उद्योग० ११३। ७)। गालवको धनके लिये हुआ (वन० २८३ | ४)। (२) सुबलपुत्र शकुनिका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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