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गन्धर्वी
गरुड़
तहकी वायु इतनी जल्दी हल्की हो जाती है कि ऊपरकी गयशिर-गया तीर्थके अन्तर्गत जो गय नामक पर्वत है। वायु और ऊपर नहीं जा सकती । गन्धर्वनगरका फल उसीको गयशिर अथवा गयशीर्ष कहते हैं, वहीं अक्षयवट बृहत्संहितामें लिखा है-हिन्दी-शब्द-सागर ) । महर्षियोंके है (वन० ८७।११॥ वन. ९५।९)। अन्तर्धानको गन्धर्वनगरकी उपमा ( आदि. १२५ ।
गयशीर्ष-गयाका ही तीर्थविशेष, जहाँ अक्षयवट है और ३५)।
जहाँ पितरोंके लिये दिया हुआ अन्न अक्षय होता है गन्धर्वी-क्रोधवशाकी पुत्री। सुरभिकी कन्या । इससे घोड़ों
(वन० ८७ ॥ ११॥ वन. ९५। ९)। की उत्पत्ति हुई (आदि. ६५। ६७-६८)।
गया-एक परम पावन तीर्थ, जहाँ जाकर ब्रह्मचर्य-पालनगन्धवती-सत्यवतीने पराशरजीसे अपने शरीरके लिये उत्तम
पूर्वक एकाम-चित्त होनेसे मनुष्य अश्वमेध-यज्ञका फल सुगन्धका वर माँगा । वर पाकर वह गन्धवती' एवं
पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है (वन०८४ । योजनगन्धा' नामसे प्रसिद्ध हुई (आदि०६३।८०८३)। (देखिये सत्यवती)।
८२ वन० ९५ । ८)। गभस्तिमान् द्वीप-एक द्वीप, जिसे शक्तिशाली सहस्रबाहुने ।
, गरिष्ठ-एक मुनि, जो इन्द्रसभामें रहकर वज्रधारी इन्द्रकी जीता था (सभा० ३८। २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ
उपासना करते हैं (समा० . । १३)। पृष्ठ ७९२, कालम )।
गरुड़-कश्यप और विनताके परम तेजस्वी पुत्र, जो भगवान् गय-(१) आयु के द्वारा स्वर्भानुकुमारीके गर्भसे उत्पन्न विष्णुके वाहन और ध्वज हैं (भादि० २३ । १२)। चतुर्थ पुत्र । पुरूरवाके पौत्र (भादि० ७५ । २५)।
ये समय आनेपर अपनी माताकी सहायताके बिना ही (२) एक प्राचीन राजा, जो अमूर्तरयाके पुत्र और अण्डा फोड़कर बाहर निकल आये। इनमें महान् साहस राजर्षियोंमें श्रेष्ठ थे। शमठद्वारा इनके यज्ञका वर्णन और बल-पराक्रम था । ये अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओंको ( वन० ९५।१८-२९)। ये यमराजकी सभामें
प्रकाशित करते थे। इच्छानुसार रूप धारण करने, चलने, विराजमान होते हैं (सभा० ८।१८)। इन्होंने सम्पूर्ण
पराक्रम दिखानेमें समर्थ थे। प्रज्वलित अग्निपुञ्जके समान तीर्थोंकी यात्रा की और वहाँके पावन जलके स्पर्श तथा अत्यन्त भयङ्कर जान पड़ते थे। इनकी पिङ्गल-वर्णकी महात्माओंके दर्शनसे प्रचुर धन एवं यश लाभ किये थे आँखें बिजलीके समान चमकती थीं। ये पैदा होते ही (वन० ९४ । १८-१९ )। इनके यशकी प्रशंसा सहसा बढ़कर विशाल हो गये और आकाश उड़ चले। (वन. १२१ । ३-१३)। विराट-नगरमें गोहरणके देवता इनें बड़वानलके समान भीषण देख अग्निदेवकी समय अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध देखनेके लिये ये इन्द्र- शरणमें गये । अग्निदेवने बताया कि ये महातेजस्वी के विमानपर बैठकर आये थे (विराट० ५६ । ९-१०)। विनतानन्दन गरुड़ हैं। ये कश्यपकुमार देवताओंके हितैषी इन्होंने हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णकी मार्गमें परिक्रमा और सोंके संहारक हैं (आदि० २३।५-१५)। की थी (उद्योग० ८३ । २७) । इनपर मान्धाताकी देवताओंदारा इनकी स्तुति ( भादि० २३ । १५विजय (द्रोण.६२।१.)। सञ्जयको समझाते हुए २६)। देवताओंद्वारा स्तुति करनेपर इनका अपने नारदजीद्वारा इनके यज्ञका वर्णन (दोण०६६ अध्याय)। तेजको समेटना (आदि. २३ । २७, मादि.२४।२)। इन्होंने गयाम यज्ञ किया । इनके यज्ञमें आयी हुई अपने और माताके दास्यभावसे छूटनेके लिये इनका सरस्वतीका नाम विशाला' है (शक्य. १८ । २०-२१)। साँसे उपाय पूछना (आदि० २७ । १४-१५)। श्रीकृष्णद्वारा इनके यज्ञका वर्णन (शान्ति. २९ । स्वर्ग जाते समय इनके पूछनेपर माताका इनको मार्गका ११-११९)। इनके द्वारा ब्राह्मणको पृथ्वीदान भोजन बतलाना ( भादि० २८ । २)। माताका इनके (पान्ति० २३४ । २६)। इन्होंने मांस-भक्षणका पूछनेपर इन्हें ब्राह्मणकी महिमा बताना और उन्हें न निषेध किया था (अनु. ११५। ५९)। (३) एक
खानेका आदेश देना (आदि०२८।३-१२)। स्वर्ग परम पुण्यमय श्रेष्ठ पर्वतः जो राजा गयद्वारा सम्मानित
जाते समय इनको माताका आशीर्वाद (भादि० २८ । हआ है। वहीं देवर्षिसेवित कल्याणमय ब्रह्मसरोवर है। १५-१६)। निषादोंके साथ एक सस्त्रीक ब्राह्मणका गयामें जाकर श्राद्ध करनेसे मनुष्यकी बीस पीढ़ियोंका इनके मुँहमें आना, इनका कण्ठ जलना तथा इनके उद्धार हो जाता है (वन.८७।८-१.)। (४) बारा उसका परित्याग (आदि. २९ । २-५)। पिता एक देश, जिसके भीतर गय पर्वत और गया तीर्थ है। कश्यपका इनको कछुए तथा हाथीके पूर्वजन्मका इतिहास इस देशके लोग राजा युधिष्ठिरके यहाँ भेंट लेकर आये ये बताकर उन खानेका आदेश देना (नादि. २९ । (सभा०५२।१६)।
१५-३२)। इनके द्वारा हाथी, कछुए एवं बालखिल्य
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