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ऐनोडाइन
ऐन्द्रजल
विशेष।
। ऐनोडाइन-[अं॰ anodyne ] अङ्गमदंप्रशमन । नार्थ काष्टिक सोडा और कालोफोन रेजिन के ___ वेदनाहर । वेदनास्थापक । दे. "एनोडाइन"। साथ इसका दूधिया घोल उत्तम होता है । लाइऐनोना-[ लेanona ] दे. "अनोना"।
एण्ट्रल ( Liantr.al) भी इसी प्रकार का ऐन्थेमिक-एसिड-[ अं. anthemic-acid ] एक तैल है।
एक प्रकार का तिन सार जो बाबूने के फूल से प्राप्त ऐन्थिस्कस-सेरोफोलियम्-[ ले० anthriscus होता है।
_cerefolium, Hoffm.] पातरीलाल । ऐन्थेभिडिस-फ्लोरीज़-[ले. anthemidis-flo | ऐन्थ् सीन-[ अंo anthracene ] एक सत्व ___res ] बाबूने का फूल । गुल बाबूना। ऐन्थेमिस-[ ले० anthemis] चाबूना । दे. ऐन्थू सीन-पर्गटिह्वज़-[अं॰ antbracene-pu"बाबूना"।
__gatives ] एक प्रकार के विरेचन, जिनमें ऐन्येमिल-कोदयुला-[ले. anthemis-cotula] | ऐन्था-क्विनीन द्वारा निकले हुये सारभूत द्रव्य बाबूना बदबू ।
मिले होते हैं। ऐन्थेमिस-नोबीलिस- ले. anthemis-no- ऐन्थू क्स-[अंo anthrax ] एक संक्रामक व्याधि bitis, Linm. ] बाबूनः रूमी। बाबूनः |
जो प्रधानतः भेड़ों में हुआ करती है। परन्तु ऊन तुफ़फ़ाही।
धुननेवालों ार चमरंगों को भी हो जाती है। ऐ थेमिस-पायरीथम-[ ले . anthemis-py 1e.
इसका कारण एक विशेष प्रकार का अणुवीक्ष्य ___ thrum ] श्राकारकरभ । दे. "अकरकरा"।
__ कीटाणु है जिसे बैसिलस ऐन्) क्स कहते हैं। ऐन्थेल्पिण्टिक-[.anthelmintic] कृमिघ्न | |
नोट-लक्षणादि के लिये दे० "जमः" । कृमिनाशक।
| ऐन्दवी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] सोमराजी । बकुची। ऐन्थेल्मिण्टिक-बाबेरीज-[ अ. anthelmin-| रा०नि० व० ४।
tic-barbaries ] रसवत । दारुहरिद्रा | ऐन्द्र-संज्ञा पु- [सं० पु.] देवसर्षप का पौधा । सत्व।
___ संज्ञा पु. [सं. क्री० ] (१)एक प्रकार को
जड़ । वन अदरख । जंगली प्रादी। अरण्यजाऐन्थोसेफैलस-केडम्बा-[ले० anthocephaluscadamba, Mig.] कदम । कदम्ब वृत्त ।
गुण-यह कटु, अम्ल; रुचिकारक, वलकारक ऐन्था-ग्ल्यूको-सैग्रेडीन-[अं॰ anthra.gluco
और जठराग्निवर्द्धक है। रा. नि० व० ६ । (२) sagradin ] एक प्रकार का क्रियात्मक सार
वृष्टि का जल । वर्षा का जल । जो कैस्करा-सैग्रेडा से प्राप्त होता है।
वि० [सं० त्रि०] इंद्र संबन्धी। ऐन्था-पप्युरीन-डाइएसीटेट-[ अं० anthra-pu- | • संज्ञा पुं० [सं०पु.] जो ऐश्वर्य युक्र हो।जिसकी
_rpurin-di: cetate ] दे॰ "रेवन्दचीनी"। प्राज्ञा को लोग मानते हों, यज्ञ श्रादि करते हों ऐन्थारोबीन-[अं. antIrarobin ] एक प्रकार एवं शूर, प्रोजस्वी, तेजस्वी, अनिन्दित-कर्मा, दीर्घ
का धूसराभ पीत वर्णीय चूर्ण । दे॰ “अरारोबा"। दर्शी, अर्थ, धर्म और काम में प्रवृत्त हों । च० शा. ऐन्थासोल-[अं० anthrasol ] एक पाण्डु-पीत ४ श्र०।
वर्ण का तैलीय सांद्र द्रव, जो अलकतरे (Coal- ऐन्द्र-जल-संज्ञा पु० [सं० वी० ] श्राकाश का tar)द्वारा विशेष शोधन विधि से प्राप्त होता पानी। है। इसमें अलकतरे की सो तीब्र गंध आती है, वह जल जो प्राकारा से गिरता हुआ पृथ्वी पर किंतु इससे त्वचा पर धब्बा नहीं पड़ता । गुद-कंडू गिरने न पाया हो और ऊपर ही ऊपर शुद्ध पात्र में
को चिकित्सा में इसका १० प्रतिशत का घोल और ग्रहण किया गया हो ।यह जल राजाओं के पीने त्वचा के चित्कारो छिलके उताने के रोगों में २० योग्य होता है और सब जलों में प्रधान माना जाता प्रतिशत का माहम उपयोगी सिद्ध हुआ है । स्ना- | है।च० सू० अ० २७ ।