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ऐनीसाई फ्रक्टस
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ऐनोजीसस लैटिफोलिया ऐनीसाई-फ्रक्टस-लेoanisi-fructus ] अनी- हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को और शिरःशूल सून ।
उत्पादक है। ऐनुद्दीक-[१०] गुजा । घुघची । रत्ती।
दर्पनाशक-धनियाँ और ताजा दूध या नोट-एक वृक्ष के बीज जो चपटे, गोल और
मक्खन या तुरंजबीन के फाण्ट (खेसादा ) के दृढ़ होते हैं। यह मुर्गी की आँख की तरह मालूम
साथ प्रयोग में लाना उचित है । होते हैं, इसी कारण इसका उक्त नामकरण हुश्रा।
मात्रा-१॥ मा० से ४॥ मा० तक। क्योंकि दीक मर्यो को कहते हैं। किसी-किसो के
गुण-धर्म-प्रयोग-यह बीज तफरीह (उल्लास) मतानुकूल यह पतंग माना जाता है, जिसे अरबी
पैदा करता है, अंगों को बलप्रदान करता है, शक्कियों में बक्रम कहते हैं और जिसको लकड़ी वस्त्र-रञ्जन
कोरक्षा करता, वार्धक्यका प्रतिषेधक और अत्यन्त के काम आती है। यह उसो के बीज का नाम है।
कामोत्पादक है। यह वीर्य को बढ़ाता है और पर बहुधा यह प्रसिद्ध है कि यह घुघची का नाम
माजून मलूकी ओर हाफ़िजुस्सिहत नामक योगों है। किंतु मुहीत .ज़म में इसे मिथ्या प्रमाणित
का प्रधान उपादान है। मुहीत में लिखा है कि किया गया है। उसमें लिखा है कि जिन्होंने ऐसा
इसमें रतूबत फललियः (अनामीकृत रतूरत) समझा है, उन्हें भ्रम हुआ है। गुजा को ऐसो
वर्तमान रहता है । या केशोत्पादक और हृदय प्राकृति नहीं होती । उन्होंने धुंधचो के प्रकरण में
बलदायक है तथा कफ एवं पित्त के विकारों को भी लिखा है कि जिन लोगों ने ऐनुद्दीक का हिंदी दूर करता है । यह नेत्रों को लाभकारी है। इसका नाम कुंघची लिखा है, उन्होंने भूल को है। इस
प्रलेप फोड़े-फुन्सो को गुणकारी है। यह पेट के बात को सिद्ध करने के लिये, उन्होंने यह लिखा है
कोड़ों को बाहर निकालता है। किसो-किसो के कि हकीमोंने ऐनुद्दीक के हृद्य एवं तफरीह ( उल्लास
अनुसार यह पित्तोत्पादक एवं वीर्यस्तम्भक है। प्रद) श्रादि जितने गुणों का उल्लेख किया है, वह (ख. श्र०) घुघची में बिलकुल नहीं पाये जाते; बल्कि यह तो ए.नुल्अअ लाऽ-[ ] बाबूनः गाव । उकह वान । उपविष-द्रव्यों में से है और इसके खाने से प्रायः ऐ नुलबक़र-[१०] (१) एक प्रकार का बड़ा अंगूर । अतिसार और वमन होने लगते हैं एवं निर्बलता (२) एक प्रकार का पालू । (३) उकह वान । तथा व्यग्रता होने लगती है । इसका केवल बहिर ऐ.नुलहज़ल-[अ०] एक प्रकार का उकडवान । प्रयोग होता है। इसका आंतरिक प्रयोग वज्यं है। ऐनुलह यात-अ.] रसायन की परिभाषा में पारे अस्तु, आपके अनुसार यह पतंग का बीज स्वीकार को कहते हैं । पारद । किया गया है। किंतु पतंग एक ऐसा तीव-तोषण ऐनुलहर:-[अ०] एक प्रकार का पत्थर । लहसुनिया । द्रव्य है, जिसे तृतीय कक्षा पर्यंत उष्ण एवं एनुलहीव:-[अ.] दे॰ “ऐनुल्ह यात" । चतुर्थ कक्षा तक रूने लिखा है। अस्तु, यदि ए नुलहुदहुद-[मु.] श्राज़ानुल-फ़ार रूमो । ऐनुद्दीक उसका बीज स्वीकार कर लिया जाय, तो ऐ नुस्सरतान-अ.] लिसोड़ा । श्लेष्मान्तक । वह भी इसके करीब करीब होना चाहिये। बल्कि लभेड़ा। पतंग को तो १७॥ माशे तक हकीमों ने सांघातिक ऐनेटिफार्म-अं. anaetiform ] दे. "उपलिखा है और धुंधची भी मानव प्रकृति के विरुद्ध
वृक्क"। एवं असात्म्य है । अस्तु, यह उन दोनों से पृथक् ऐनोजीसस एक्युमिनेटा-[ ले. anogeissus. कोई अन्य ही वस्तु है।
_acuminata, Wall.] चकवा-बं• । पर्या-चश्मख़रोश-फ़ा ।
पसी, पंची-उड़ि । फास-मरा० ।
... ऐनोजीसस-लैटिफोलिया-[ले. anogeissus. प्रकृति-यह तृतीय कक्षा में उष्ण और द्वितीय एना.
Jatifolia, Wall.] धव । धातकी । धौरा। कक्षा में 6 है । पर इसमें रतूबत फज़लियः है।
वकली।