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ऐन्द्रयव
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ऐन्द्रीरसायन
ऐन्द्रयव-संज्ञा पु० [सं० पु.] इन्द्रयव । कुड़ा का | वनस्पतियों वा जीवों में पाई जाती है। बीज । इन्द्रजौ । मद० व० १।
( Vital-force ) ऐन्द्र लुप्तिक-वि० [सं. वि.] इंद्रलुप्त का रोगी।
__ संज्ञा पु० [सं०] रसायन शास्त्र का वह ____ गंजा । खालित्थ रोगी।
विभाग, जिसमें ऐन्द्रियक द्रव्यों का ही उल्लेख ऐन्द्र-वायव-वि० [सं०] इंद्र वायु सम्बन्धी ।
हो। (Organic chemistry )। ऐन्द्रवारुणी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] इन्द्रायन । ऐटियकाम्ल-संज्ञा पुं० [सं.] ऐसा अम्ल जो ___ इन्द्रवारुणी लता । मद. व०१।
वनस्पतियों वा प्राणियों से या उनके किसी अंग ऐन्द्रशिर-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] हस्ति विशेष । एक
से उत्पन्न हो । वानस्पतिक अम्ल। (Organic. प्रकार का हाथी। ऐन्द्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] इन्द्रायन । इनारुन ।
acid)। ऐन्द्राग्न-वि० [सं० त्रि०] इंद्राग्नि-सम्बन्धी । विद्युत्
ऐन्द्री-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) बड़ी इलायची । से सम्बन्ध रखनेवाला।
वृहद् एला । (२) पूर्वादिक् । पूरब की दिशा । ऐन्द्रापौष्ण-वि० [सं० त्रि० ] इन्द्र एवं सूर्य
(३) छोटी इलायची । सूक्ष्म एला। रा०नि० सम्बन्धी।
व०६ । वै० निघ० २ भ० ताली शादि चूर्ण ।
(४) इन्द्रायन । इंद्रवारुणी। ५० मु० । रा० ऐन्द्रायुध-वि० [सं० त्रि०] (१) इन्द्रप्रदत्त अस्त्र
नि० व०३ । च० सू० ४ अ०। (५) गोरख विशिष्ट । (२) इन्द्र के धनुर्वाण से सम्बन्ध
ककड़ी । गोरक्ष कर्कटी । च० सू० ४ अ० प्रजारखनेवाला।
स्थापन | भा० अने। ऐन्द्रि-संज्ञा पु० [सं० पु.] कोना । काक । मे०
| ऐन्द्रीफल-संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] इनारुन । इन्द्रारद्विक। ऐन्द्रिय-वि० [सं०नि०] इन्द्री सम्बन्धी।
यन । इन्द्रवारुणीफल । “पक्कैन्द्रफलमूत्रजम्" च० संज्ञा पुं० सं०क्री०](6) आयुर्वेद का एक अंश
द० उन्मा०-चि०। विशेष, जिसमें केवल इन्द्रियों का विषय वर्णन एन्द्रीफल-नस्य-संज्ञा पुं० [सं० क्रो०] उन्माद में किया गया हो । (२) इन्द्रिय-ग्राम।
प्रयुक्त उक्र नाम का एक योग-सुपक इंद्रायन ऐन्द्रियक-वि० [सं० त्रि०] (१) इन्द्रिय ग्राह्य ।।
फल को गोमूत्र द्वारा पीस कर नास लेने से ब्रह्मजिसका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा हो । इन्द्रिय सम्बन्धी।
राक्षस के आवेश से उत्पन्न उन्माद नष्ट होता है। (२) इन्द्रियादित व्याधि विशेष । शब्दादि
च. द० उन्माद-चि०। विषय के मिथ्या योग, अतियोग वा प्रयोग से जो एन्द्रीरसायन-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री०] उक्र नाम का रोग उत्पन्न होता है वह "ऐन्द्रियक" कहलाता एक योग, जिसके सेवन से परम आयु, युवावस्था, है। च० ।
आरोग्यता और स्वर तथा वर्ण में उत्तमता पाती संज्ञा पुं० [सं०] जल का वह दोष जिसके | है तथा पुष्टि, मेधा, स्मृति, उत्तम वल एवं अन्य कारण प्राणियों से उत्पन्न मल वा स्वयं सूक्ष्म अभीष्ट सिद्धियों को भी प्राप्ति होती है। कीटाणु हो । सजीव दोष । (Organic im- योग-इन्द्रायन, ब्राह्मी, क्षीरकाकोली, गोरखpurities)
मुण्डी, महाश्रावणी (महामुडी) शतावर, विदासंज्ञा पुं॰ [सं०] वे द्रव्य जो प्राणिवर्ग से रीकंद, जीवन्ती, पुनर्नवा, गंगेरन, शालपर्णी, वच, सम्बन्ध रखते हैं अर्थात् उनसे ही उत्पन्न होते हैं । छत्र, अतिच्छना (अवाक्पुष्पी सौंफ), मेदा, यथा, शर्करा, आटा, नील, कपूर, गोंद, नख, महामेदा, और जीवनीयगण की ओषधियाँ-इन्हें दुग्ध, मूत्र, प्रोटीन, त्वचा, मांस, स्नायु आदि । दूध के संयोग से उत्तम चूर्ण प्रस्तुतकर यथा(Organic Substance)।
विधि सेवन करने से उक्त लाभ होते हैं । च० चि० संज्ञा पु० [सं०] वह जीवन शक्ति जो | ०१. .