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________________ कल्वा २३४० कवटी कल्वा-[फा०] मुलूक। संज्ञा पुं॰ [सं० ली.] छत्राक । कुकुरमुत्ता। कल्विय्यत-[अ०] .Alkalinity. खारापन । यह अभक्ष्य है यथाक्षारत्व । शोरियत । "लशुनं गृञ्जनश्चैव पलाण्डु कवकानिच ।" कल्वी-[१०] Alkaline क्षारीय खारी। शोर । (मनु०) कल्वी-[ ते. ] कतीरा । गुलू । [३] करौंदा। | कवकुला-[ कना. ] वन लौंग | Gussiaca लु.क.। ___sufforticosa, Linn. कल्स-[१०] चूना । किल्स । कवच-संज्ञा पुं॰ [सं० पु; की० ] (१) पित्त कल्स-[१०] अपक्क आहार का एक बार मेदे से पापड़ा । पर्पटक । यथा- 'कवच: स्यात् पपमुँह में भर पाना । जब यही क्रिया दोबारा होती टके।" रा०नि० व०५। 'वचा कवचकच्छु।' है तब उसे ही कै कहते हैं । कलस । रीगर्जिटेशन रा०नि० व० २३ । (२) पारस पीपल का Regurgitation- (अं)। पेड़ । गर्दभाण्ड वृत्त । गाजीभाँट । (३) दारनोट-रीगर्जिटेशन रक्त के प्रत्यावर्तन (तकहक चीनी । (४) भोजपत्र का वृक्ष । भूर्जवृक्ष । (१) रुद्दम) के लिए भी प्रयोग में प्राता है। दे० नन्दी वृक्ष । बेलिया पीपर । मे० चत्रिकं । (६) "कहकरुद्दम"। श्रावरण | छाल । छिलका। कल्सा-[सिरि० ] सपिस्ताँ । लिसोड़ा। व.वचनामक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] पित्तपापड़ा । कल्सादलावहज-[ सिरि० ] कली का चूना । अन- पर्पटक। बुझा चूना। कवचपत्र-संज्ञा पुं॰ [सं० की. ] भोजपत्र । भूर्ज कल्साना-[ यू०] गुलेलाला । पत्र । श० च०। कल्सातीस- यू.] जरावंद । कवचा-[ गु०] केवाँच । वानरी । कल्साताना-[२०] शाह बलूत । कवचाख्य-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) घोड़े कल्सीस-[यू.] लह यतुत्तीस । ___ का सुम । अश्व खुर । (२) नखी नामक गंधद्रव्य। कल्सून-[ यू०, रू०] रसवत । कवची यन्त्र-संज्ञा पु[सं० क्रीन औषध पाकार्थ कल्सूफ़ादयून-[ यू.] एक प्रकार का पौधा जो ईधन यंत्र विशेष । पहले न बहत छोटी और न बहत के काम आता है। बड़ी एक काँच की दृढ़ कूपी लेकर उसके चारों कल्हक-संज्ञा० स्त्री० [देश॰] एक चिड़िया जो कबू. ओर गीली मिट्टी वा कीचड़ लगा हुआ वस्त्र तर के बराबर होती है । इसका रंग ईट का सा लपेट देवें, फिर उसपर मृदु मृत्तिका का लेप करके लाल होता है, केवल कंठ काला होता है, आँखें धूप में सुखा लेवें । इसके बाद कूपी में औषधि मोतीचूर होती हैं और पैर लाल होते हैं। भरकर कूपी का मुंह खड़िया का डाट लगाकर कल्हर-संज्ञा पुं० दे० "कल्लर"। मजबूती से बंदकर देवें । पुनः यथा विधि औषध कल्हरवा-संज्ञा पुं॰ [हिं० कल्हारना ] वह भक्ष्य पाक करें। यह 'कवची नामक यन्त्र' है। जो द्रव्य जो घी इत्यादि में तल कर और जीरे आदि रसादि पाचनके काम आता है । प्रात्रेयः । कच्चीसे बधार कर नमक मिर्च मिलाकर खाया जाता यन्त्र। है। जैसे, चने का कल्हरवा । कवछी-[ ता०] अपराजिता । कवा ठेठी । वि० घी में तला हुश्रा । घी वा तेल में भूना कवट-[मरा०, कना०] (Limonia Monoहुधा। philla) कल्हार-संज्ञा पु० दे० "कल्हार"। [मरा०] कैथ । कवय-संज्ञा पु० दे० "कौंच"। कवटा-[ मरा०, को०] मुर्गी का अंडा । कुक्कुटाँड । कवई-संज्ञा स्त्री० दे० "कवयो"। कवटी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कवाट । किवाड़ी। कवक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) घास । (२) संज्ञा स्त्री० [ देश०, बम्ब० ] सिहोर । शाखोकवन । मास । हे० च०। टक।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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