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________________ कवठ, कवथ २३४१ कवल कवठ,कवथ-[ मरा० ] कैथ । कपित्थ । कवर-संज्ञा पुं॰ [सं० कवल ] ग्रास। कौर । कवड़-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं०] (१) कवल । ग्रास। निवाला । सुकमा। कौर । (२) गंडूष । कुल्ला । रत्ना०। __ संज्ञा पु [सं० ० क्ली० ] [ स्त्री० कवरी ] कवडग्रह-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं० ] दो तोले का एक (१) बनतुलसी । कवरी । त्रिका । (२) मान । कर्ष । ५० प्र० १ ख०। च० द. खदिर नमक । लवण । (३) अम्ल । खटाई। मे० । वटी। हे० च०। (४) समुन्दर नोन । सामुद्र लवण । कवड़ी-संज्ञा स्त्री० दे० "कौड़ी"। र० मा०। (५) केशपारा । जुरुफ़ । (६) कवडोरी-[मरा०] बिजगुरिया । शिवलिंगी । गुच्छा । (७) चितकबा । वि० [सं०] (१) गुथा हुा । (२) कवण्डल-[ मरा०] लाल इन्द्रायन । मिला हुआ। कवण्डली- कों . ] इन्द्रायन । महाकाल । संज्ञा पुं॰ [फा०] कर्मव । करमकल्ला । (२) कवत-संज्ञा पु० [सं० कपित्थ ] कैथ । कवयि. कवयी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] एक प्रकार | कवरकोर:-[शीराज़ी] चील । करील । कबर । की मछली जो एक जलाशय से दूसरे जलाशय में कवरजुवे-[ते. ] जियापोता । पुत्रजीवक । सूखे-सूखे पलटा खाती हुई चली जाती है। कवरपुच्छी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (1) मयूरी । अन्यान्य मछलियों की अपेक्षा यह अधिक ___ मोरनी । (२) विचित्र-पुच्छविशिष्टा । चितकसमय तक जलशून्य स्थान में भी जी सकती है। बरी पूंछवाली (चिढ़िया प्रभृति)। यह किंवदन्ती सुनने में श्राती है कि यह तालवृक्ष कवरपुल्लु-[ मल० ] मकरा । मकरी । घुरचुत्रा । पर चढ़ जाती है। यह कान के पास के कण्टक के कवरबा-[फा०] करील के फल का श्राश । कबरबा । सहारे उच्च स्थान पर पहुँच जाती है। भूमि पर ___ कब्रियः। भी यह बहुत दूर तक चला करती है। बंगाल के कवरा, कवरी-संज्ञा स्त्री० [सं० : स्त्री०] वर्वरी। यशोर और फरीदपुर जिले में यह बृहदाकार देख बबई । श० २० । बनतुलसी । बर्बरी । श्रम । पड़ती है। (२) बबूल | वबूरक वृक्ष । (३)रक्र करवीर । - पर्या-कवयिः, कवयी, क्रकच, पृष्टी, (४) मैनसिल । (५) हिंगुपत्री । रा०नि० (त्रि०) कविका, (भा०), कवची (के.), व.६ । (६) केश विन्यास । चोटी। जूड़ा। कविकापुच्छ, चक्रपृष्टी, -सं० । कबई, कबई-सुभा | वेणी। -हिं० | कइमाछ -बं०। ऐनाबस स्कैण्डैन्स, | कवरीक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) एक प्रकार Anabas Scandens, Daldorf., की तुलसी का पौधा जिसकी पत्ती सुगंधित होती कोइयस कोबोइयस Coius Coboius. है। दुलाल तुलसी । यथा-"कस्तूरिकाचवेड़-ले। कई फिश Kai fish. क्राइम्बिग पर्च गंधः कवरीकः स्वनामकः ।" इति द्रव्याभिधानम् । Climbing Perch -अं०।। (२)एक प्रकार का चना । शुभ्र चतक । कावरी गुण-मधुर, स्निग्ध, कसेली, रुचिकारी, छोला (बं०)।के। किंचित् पित्तकारक, बल्य और वातनाशक है । कवरीकला-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] मैनसिल । (हारा०) कवरी कूटक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कवरी | बनकविका मधुरास्निग्धा कफघ्नी रुचिकारिणी। तुलसी । बबई । त्रिका०। किाश्चत्पित्त करी वातनाशिनी वह्निवर्द्धिनी॥ | कवल-संज्ञा० पु० [सं० पु.] [वि. कवलित] (भा० पू० १ भ० मत्स्य व०) (१)एक प्रकार को मछली । चिलिचिम मछली । कवई मधुर, स्निग्ध, कफनाशक, रुचिकारी, बेल मच्छी । श. च०। (२) अन्न वा भोज्य किंचित् पित्तकारक, वातनाशक और जठराग्नि- पदार्थ की वह मात्रा जो खाने के लिये एक बार बर्द्धक है। मुह में डाली जाय | ग्रास । गस्सा । कवर ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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